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चकाचौंध लाइटों से भूलने की बीमारी का खतरा! नई रिसर्च ने बचने के तरीके भी बता दिए

Light Pollution: रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1993-2013 के बीच नई दिल्ली, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में ‘बहुत ज्यादा प्रकाश प्रदूषण’ में बढ़त देखी गई है. अब एक हालिया रिसर्च में प्रकाश प्रदूषण और भूलने की बीमारी में संबंध की बात कही जा रही है.

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कुछ छोटे बदलाव करके लाइट पॉल्युशन से बचा जा सकता है (सांकेतिक तस्वीर: विकीमीडिया)

अल्जाइमर्स (Alzheimer's) बीमारी, डिमेंशिया (Dementia) के सबसे आम रूपों में से एक है. इसमें भूलने से शुरुआत होती है, जो धीरे-धीरे बात ना कर पाने और अपने आस-पास की चीजों को ना समझ पाने तक बढ़ सकती है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत में 60 साल से ऊपर के 7.6% लोग अल्जाइमर्स से जूझ रहे हैं, करीब 88 लाख लोग. वैसे तो इस बीमारी के पीछे की वजहों को समझने की कोशिश की जा रही है, अब एक हालिया रिसर्च लाइट पॉल्युशन को भी इस बीमारी की एक संभावित वजह बता रहा है.

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हमने हवा और पानी के प्रदूषण के बारे में तो खूब सुना है. कई बार साउंड या ध्वनि प्रदूषण भी सुनने को मिलता है. लेकिन प्रकाश या लाइट पॉल्युशन के बारे में कम ही चर्चा होती है. यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम (UNEP) के मुताबिक, लाइट पॉल्युशन- कुदरती रौशनी और अंधेरे के पैटर्न में बदलाव करता है.

जैसे रात में लगातार तेज रौशनी, सीधे पड़ने वाली चमक या लप-झप करती आर्टिफिशल लाइट. या फिर रात में बिल्डिंगों से आती लाइट - गाड़ियों की लाइट वगैरह-वगैरह.

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लाइट के प्रदूषण वजह से रात में तारे देखना भी मुश्किल (विकीमीडिया)

बताया जाता है, ये लाइट पॉल्युशन, जीव-जंतुओं से लेकर पेड़-पौधों पर भी खराब असर डाल सकता है.

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लाइट पॉल्युशन की जद में 80% आबादी

अब ये हालिया रिसर्च लाइट पॉल्युशन की वजह से अल्जाइमर्स के खतरे की बात भी कह रहा है. समझते हैं इसका पूरा मामला.

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बताया जाता है कि दुनिया की करीब 80% आबादी ज्यादा या खराब तरह की लाइट के माहौल में रहती है. इसकी वजह से इंसानों के सोने के पैटर्न में बदलाव की बात भी कही जाती है.

माने जो हमारा नेचुरल रिदम है कि हम दिन में सूरज की रौशनी देखकर जागते हैं. रात में हमारे शरीर को पता चलता है कि अब रौशनी नहीं है, सोने का टाइम हो चला. ये नेचुरल पैटर्न भी रात में आर्टिफिशल लाइट की वजह से खराब हो सकता है. और नींद का पैटर्न बिगड़ सकता है.

डाउन टू अर्थ की खबर के मुताबिक, साल 1993-2013 के बीच नई दिल्ली, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में ‘बहुत ज्यादा प्रकाश प्रदूषण’ (very high light pollution) में बढ़त देखी गई है.

फ्रंटियर्स इन न्यूरोसाइंस जर्नल में छपे इस रिसर्च में अमेरिका में अल्जाइमर्स के मरीजों और रात में लाइट के बीच संबंध देखने की कोशिश की गई है. रिसर्च से जुड़े, रश यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉबिन वोइट जुवाला साइंस डेली को बताते हैं,

हमारी रिसर्च में अमेरिका में अल्जाइमर्स बीमारी और रात में लाइट एक्सपोजर के बीच संबंध दिखाया गया है. खासकर 65 साल से कम उम्र के लोगों में ये खतरा हो सकता है.

कम मेहनत में कर सकते हैं बड़े बदलाव

रॉबिन वोइट आगे ये भी बताते हैं कि इसमें एक ठीक बात ये है कि कुछ आम बदलावों और कम से कम एफर्ट लगाकर, हम लाइट की मौजूदगी को कम कर सकते हैं. जैसे कि खिड़कियों में काले पर्दे लगाना या फिर सोते वक्त आंखों में मास्क लगाना. 

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हालांकि वोइट ये भी कहते हैं कि यह रिसर्च एक छोटी आबादी पर की गई है, बाहरी लाइट और अल्जाइमर्स में संबंध जानने के लिए अभी और रिसर्च की जरूरत है. फिर भी एक सेफ साइड के लिए हम गैरजरूरी लाइटों को बंद कर सकते हैं.

बहरहाल नुकसान का तो पता नहीं, पर बिजली का बिल बचाकर फायदा जरूर हो सकता है.

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