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औरतों को नग्न करने, उनकी शादी करवाने से कृपा बरसाने वाली परंपराएं

मध्य प्रदेश के दमोह में छोटी बच्चियों को निर्वस्त्र करके परेड निकाली गई.

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बारिश करानी हो, चाहे ईश्वर की कृपा दृष्टि हासिल करनी हो. प्रथाओं के नाम पर बच्चियों और महिलाओं के यौन शोषण को बढ़ावा दिया जाता है. फोटो- Pixabay
मध्य प्रदेश का दमोह जिला. यहां का जबेरा ब्लॉक. बारिश नहीं होने की वजह से यहां के लोग परेशान हैं. और इस उम्मीद में हैं कि अंधविश्वास का कोई टोटका कर देने से इलाके में बारिश हो जाएगी. यहां के एक गांव में नाबालिग बच्चियों को निर्वस्त्र करके घुमाया गया. इस उम्मीद में कि इससे इंद्र देव खुश होकर गांव को बारिश का आशीर्वाद देंगे. इस घटना का एक वीडियो सामने आया है. जिसमें छह छोटी बच्चियां निर्वस्त्र दिख रही हैं. दो बच्चियों के कंधे पर एक मूसल रखा गया है, और उनके पीछे औरतों का समूह है. जो गाना गा रही हैं. गाने के बोल में बार-बार 'पानी बरसे खेत में' सुनाई पड़ रहा है.
आज तक से जुड़े शांतनु भारत की रिपोर्ट के मुताबिक, घटना 5 सितंबर की है. इस कुप्रथा में बच्चियों को पूर्ण नग्न किया जाता है. उनके कंधों पर मूसल रखा जाता है, इस मूसल में मेंढक को बांधा जाता है. बच्चियां पूरे गांव में घूमती हैं और उनके पीछे महिलाएं गाने गाती हुई चलती हैं. रास्ते में पड़ने वाले घरों से ये महिलाएं आटा-दाल मांगती हैं. इससे जो राशन जमा होता है उससे गांव के मंदिर में भंडारा किया जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक इस इलाके के लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से बारिश होती है. कुछ महिलाओं का वीडियो भी सामने आया है. इन महिलाओं का कहना था कि बारिश बिल्कुल नहीं हो रही है और धान की फसल सूख रही है. फसल बचाना ज़रूरी है इसलिए इन लोगों ने ये सब किया. औरतों का कहना था कि इससे बारिश हो जाती है.
ये एक कुप्रथा है जो अंधविश्वास पर आधारित है. इतना ही नहीं ये उन बच्चियों का शोषण भी है जिन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया जा रहा है. इस मामले में दमोह जिले के एसपी डीआर तेनिवार ने कहा कि अखबारों के माध्यम से उन्हें इस घटना की जानकारी मिली है. उन्होंने कहा कि पुलिस मामले की जांच कर रही है, अगर किसी बच्ची से जबरदस्ती ऐसा कराया गया है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
हमारा सवाल ये है कि नन्ही बच्चियों को नग्न करके घुमाया गया है. पांच, छह साल की बच्चियां हैं. उन्हें इस तरह की सिचुएशन में डालना पूरी तरह अनुचित है. उनके राइट्स को प्रोटेक्ट करना प्रशासन की जिम्मेदारी है. ऐसे में सहमति या जबरदस्ती का एंगल क्यों?
Mp Police दमोह के एसपी का कहना है कि इस मामले में बच्चियों से बात की जाएगी, अगर सामने आता है कि उनके साथ जबरदस्ती हुई तो कार्रवाई की जाएगी. सांकेतिक फोटो

दूसरी तरफ इस मामले में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने संज्ञान लिया है और इस मामले में दमोह जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है. इस मामले में दमोह के कलेक्टर एस कृष्णा चैतन्या ने कहा कि जिला प्रशासन इस मामले में बाल संरक्षण आयोग को रिपोर्ट सौंपेगा. साथ ही उन्होंने कहा कि अंधविश्वास के ऐसे मामलों में जागरूकता ज़रूरी है. उन्होंने कहा,
"ऐसे मामलों में प्रशासन केवल ग्रामीणों को जागरूक कर सकता है कि इस तरह के अंधविश्वास और टोटके किसी काम के नहीं होते हैं."
पर क्या ये ऐसी इकलौती कुप्रथा है?
इस सवाल का जवाब है नहीं. ऐसी तमाम कुप्रथाएं हैं, जिनकी मान्यता है लड़कियों और औरतों की किसी से शादी कर देने से या उनको नग्न करके कोई क्रियाकरम करवा देने से कृपा आती है. लड़की को निर्वस्त्र कर खेतों की जुताई बारिश को लेकर ही एक और कुप्रथा है. जो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित है. इसमें अविवाहित लड़कियों को निर्वस्त्र करके आधी रात में उनसे खेत की जुताई करवाई जाती है. मंत्रोच्चार करवाए जाते हैं इसके पीछे मान्यता है कि ये देखकर इंद्रदेव को शर्म आएगी और वो बारिश करवा देंगे. कुछ-कुछ समय में इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं. साल 2009 में इस तरह की घटना बिहार से रिपोर्ट हुई थी. इस कुप्रथा में लड़कियों के साथ गांव की महिलाएं शामिल होती हैं. जो घेरा बनाती हैं ताकि बाहर का कोई लड़की को देख न सके. ये खबर रॉयटर्स ने प्रकाशित की थी.
Farm India अच्छी फसल और बारिश के लिए परंपराओं के नाम पर लड़कियों से अनुचित काम करवाए जाते हैं. सांकेतिक फोटो- पिक्साबे
लड़कियों की मेंढक से शादी इसी तरह लड़कियों की कुत्ते या मेंढक से शादी की खबरें भी अक्सर सुनने में आती हैं. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु-पुडुचेरी की सीमा पर स्थिति एक गांव में हर साल एक छोटी लड़की की शादी मंदिर के तालाब से निकले मेंढक से करवाई जाती है. इसके लिए लड़की को एकदम दुल्हन की तरह सजाया जाता है. शादी की पूरी रस्में होती हैं. शादी के बाद भोज का आयोजन भी किया जाता है. सारी रस्में खत्म होने के बाद मेंढक को तालाब में वापस छोड़ दिया जाता है. ये कुप्रथा सदियों से निभाई जा रही है. ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा करने से गांववाले बुरे साए से बचे रहते हैं. यहां कहानी प्रचलित है कि कई साल पहले गांव में कई बच्चों और बड़ों की कोलेरा और दूसरी बीमारियों से मौत हो गई थी. जब गांववालों ने मरियम्मन भगवान की पूजा की तो देवी एक व्यक्ति के सपने में आईं. उन्होंने कहा कि तालाब से निकलने वाला मेंढक भगवान शिव का रूप है. और हर साल एक लड़की की शादी शिव से कराने से गांव पर ईश्वर की कृपा बनी रहेगी. देवदासी प्रथा ये कुप्रथा सदियों से भारत में चल रही है. इसके तहत परिवार अपनी बेटियों को ईश्वर के नाम पर दान कर देते हैं. ये लड़कियां मंदिरों में या मंदिर परिसरों में बने घरों में रहती हैं. आइडियली इनका काम ईश्वर की सेवा करना होता है. लेकिन इन मंदिरों के पुजारी ईश्वर के खुश करने के नाम पर इन औरतों का यौन शोषण करते हैं. साल 1982 में भारत में देवदासी निर्मूलन कानून लागू हुआ था. लेकिन अब भी देवदासी प्रथा के जारी रहने की खबरें आती हैं. दो हफ्ते पहले दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की
थी. इसके मुताबिक, इस साल फरवरी में कर्नाटक की 22 साल की एक लड़की ने देवदासी प्रथा से बचने के लिए मदद मांगी थी, तब जाकर सामने आया था कि ये प्रथा देश में अब भी लागू है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक सरकार ने साल 2008 में सर्वे किया था. जिसके मुताबिक राज्य में करीब 40,600 देवदासियां हैं. वहीं, 2018 में एक विदेशी NGO और कर्नाटक राज्य महिला विश्वविद्यालय की स्टडी में सामने आया था कि राज्य में 90 हज़ार देवदासियां हैं. ये भी सामने आया था कि उत्तरी कर्नाटक की 20 प्रतिशत से ज्यादा देवदासियों की उम्र 18 से कम है.
इन प्रथाओं में दो चीज़ें कॉमन है. ईश्वर और औरत. सवाल ये उठता है कि ईश्वर को खुश करने या एम्बैरेस करने के लिए एक लड़की को ही टूल क्यों बनाया जाता है? अगर आप ईश्वर में यकीन रखते हैं तो ये ज़रूर मानते होंगे कि ईश्वर के लिए महिला और पुरुष दोनों बराबर हैं. फिर प्रथाएं ऐसी क्यों हैं जिनमें औरते के साथ ऐसी भद्दी हरकतें होती हैं?