(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
बगलें, गला, जांघें काली पड़ने की वजह ये है
अगर इस कंडीशन में ब्लड टेस्ट करवाया जाए तो पता चलेगा कि फ़ास्टिंग में इंसुलिन लेवल हाई रहता है.

हमारे शरीर पर ऐसी बहुत जगहें हैं जहां स्किन फोल्ड होती है. यानी एक तरीके का क्रीस पड़ता है. जैसे हमारे अंडरआर्म्स यानी कांख, गला, जांघें. ये सब ऐसी जगहें हैं जहां स्किन होल्ड होती है. अब क्या आपके ये स्पॉट्स बाकी स्किन की तुलना में ज़्यादा डार्क हैं? या यहां की स्किन ज़्यादा मोटी है? अगर हां, तो इसके पीछे ज़िम्मेदार हो सकती है एक स्किन कंडीशन जिसे कहते हैं एकैंथोसिस नाइग्रीकांस.
हमें मेल आया है नरेश का. 40 साल के हैं और उन्हें ये दिक्कत बहुत समय से है. उन्होंने कभी डॉक्टर को नहीं दिखाया है, इसलिए उन्हें इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है. वो चाहते हैं हम उनकी मदद करें. उनकी स्किन ऐसी क्यों है और इसका इलाज क्या है, डॉक्टर्स से पूछकर बताएं.
ये हमें बताया डॉक्टर रिंकी कपूर ने.

-एकैंथोसिस नाइग्रीकांस सुनने में एक बहुत बड़ा शब्द लगता है.
-पर इसको डायग्नोज़ करना बहुत आसान है.
-इसमें स्किन पर पिगमेंटेशन होने लगता है.
-एकैंथोसिस नाइग्रीकांस में इंसुलिन रेज़िस्टेंस होता है.
-इंसुलिन रेज़िस्टेंस मतलब शरीर के अंदर एक हॉर्मोन होता है, जिसे इंसुलिन कहते हैं.
-डायबिटीज को ठीक करने के लिए भी इंसुलिन देना पड़ता है.
-जब शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है तब शरीर में मौजूद इंसुलिन हॉर्मोन उस शुगर को पचाता है.
-उससे एनर्जी मिलती है.
-अगर इंसुलिन काम करना कम कर दे यानी बॉडी के सेल्स इंसुलिन को रेज़िस्ट करने लगें,
-इंसुलिन का उनपर कोई असर न हो,
-तब उसे इंसुलिन रेज़िस्टेंस कहा जाता है.
-इंसुलिन रेज़िस्टेंस की वजह से ये बीमारी होती है.
लक्षण-स्किन पर काले-काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं.
-जैसे गर्दन के दोनों तरफ़ या पूरी गर्दन पर.
-गर्दन काली पड़ने लग जाती है.
-स्किन मोटी होने लग जाती है.
-कांख काले पड़ने लगती हैं.

-जांघों के अंदर की तरफ़ वाली स्किन काली पड़ जाती है.
-उंगलियों की स्किन काली पड़ने लगती है.
-मुंह के आसपास की स्किन काली पड़ जाती है.
-कई लोगों के डार्क सर्किल पड़ जाते हैं.
-ये नॉर्मल डार्क सर्किल जैसे नहीं दिखते.
-कोई भी त्वचा रोग विशेषज्ञ स्किन देखकर इसका डायग्नोसिस कर सकते हैं.
-आमतौर पर एकैंथोसिस नाइग्रीकांस से ग्रसित पेशेंट ओवरवेट होते हैं.
-ओवरवेट, डायबिटीज और हॉर्मोन्स की दिक्कत से जूझ रहे लोगों में ये प्रॉब्लम पाई जाती है.
कारण-हमारे शरीर में इंसुलिन रेज़िस्टेंस हो जाता है.
-शरीर में मौजूद इंसुलिन हॉर्मोन सेल्स के अंदर पाए जाने वाले ग्लूकोस या शुगर को तोड़ नहीं पाता.
-इसलिए इसे इंसुलिन रेज़िस्टेंस कहा जाता है.
-अगर इस कंडीशन में ब्लड टेस्ट करवाया जाए तो पता चलेगा कि फ़ास्टिंग में इंसुलिन लेवल हाई रहता है.
-8-10 के बीच नॉर्मल माना जाता है.
-पर एकैंथोसिस नाइग्रीकांस के पेशेंट्स में 20-25 से ऊपर चला जाता है.
इलाज-एक है बाहरी इलाज.
-जब स्किन काली पड़ जाती है या धब्बे दिखने लगते हैं तब उसका इलाज किया जाता है.
-इसे ठीक करने के लिए क्रीम, लेज़र और पील्स इस्तेमाल किए जाते हैं.
-इनसे पिगमेंटेशन कम किया जा सकता है.
-पर इसका मूल इलाज है वज़न कम करना.

-जब तक वज़न कम नहीं करेंगे तब तक बीमारी का हल नहीं हो सकता.
-एक्सरसाइज करना बहुत ज़रूरी है.
-अगर खून में इंसुलिन की मात्रा ज़्यादा है तो हॉर्मोन स्पेशलिस्ट को दिखाएं.
-क्योंकि उसके हिसाब से दवाई दी जाएगी.
-मेटफोर्मिन नाम की दवा दी जाती है.
-इससे इंसुलिन रेज़िस्टेंस काफ़ी हद तक कम हो जाता है.
-इसलिए इस कंडीशन का इलाज अंदरूनी भी है और बाहरी भी.
-बाहरी इलाज त्वचा रोग विशेषज्ञ करते हैं और अंदरूनी इलाज हॉर्मोन स्पेशलिस्ट करते हैं.
ये बात तो समझ में आ गई कि एकैंथोसिस नाइग्रीकांस के पीछे डायबिटीज का बड़ा हाथ है. इसके अलावा ये कंडीशन कुछ ख़ास दवाइयों के इस्तेमाल से भी हो सकती है. इसलिए अगर बिना डायबिटीज आपको ये दिक्कत हो रही है और आप किसी भी तरह की पिल ले रहे हैं तो अपने डॉक्टर से ज़रूर मिलें. वो आपकी दवा बदल देंगे.
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