रेहाना फातिमा. एक्टिविस्ट हैं. केरल की रहने वाली हैं. 2018 में सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी, तब काफी ज्यादा चर्चा में आई थीं. उस वक्त उनकी एक टॉपलेस तस्वीर काफी वायरल हुई थी, उसमें वो अपने हाथों में तरबूज पकडे़ दिख रही थीं. जमकर बवाल मचा था सोशल मीडिया पर. भयानक भला-बुरा कहा गया था. ये बात थी अक्टूबर, 2018 की. अब एक बार फिर रेहाना खबरों में है. इस बार उनका एक सेमी न्यूड वीडियो वायरल हुआ है.
रेहाना फातिमा का सेमी न्यूड वीडियो कानूनी तौर पर कितना अश्लील है?
हमारे कानून में अश्लीलता क्या होती है?

क्या दिख रहा है वीडियो में?
रेहाना टॉपलेस हैं. बिस्तर पर लेटी हैं. उनके दो छोटे बच्चे, एक बेटा और एक बेटी उनके शरीर पर पेंटिंग कर रहे हैं. 'दी न्यूज़ मिनट' की रिपोर्ट के मुताबिक, रेहाना ने 19 जून को फेसबुक पर ये यूट्यूब वीडियो शेयर किया था. हैशटैग बॉडी आर्ट पॉलिटिक्स (#BodyArtPolitics) के साथ. रेहाना के मुताबिक, उन्होंने ये वीडियो ये बताने के लिए बनाया था कि औरत को सोसायटी के सामने अपने शरीर और सेक्स को लेकर ओपन होने की ज़रूरत है, उस सोसायटी के सामने जहां सेक्स और न्यूडिटी को टैबू माना जाता है.
कैप्शन में रेहाना ने लिखा कि औरत का शरीर, उसकी नग्नता 55 किलो मांस से कहीं ज्यादा है. आगे लिखा कि औरतें अगर लेगिंग्स भी पहनती हैं, तो पुरुषों को उत्तेजना हो जाती हैं, लेकिन पुरुष कैसे भी अपनी आधी टांगें खुली करके घुमता रहता है. उनके शरीर को लेकर कोई जज नहीं करता. सेक्शुअलिटी से जुड़ी जानकारी लोगों को गलत तरीके से दी जा रही है. आगे कहा,
'जैसे सुंदरता देखने वालों की आंखों में होती है, वैसे ही पॉर्न भी देखने वालों की आंखों में ही होता है. कोई भी बच्चा जो अपनी मां को नग्न देखता है, कभी भी किसी औरत के शरीर को प्रताड़ित नहीं करेगा. इसलिए औरतों के शरीर और सेक्शुअलिटी को लेकर जो गलत धारणा बन गई है, उसे खत्म करने की वैक्सीन घर से ही शुरू की जानी चाहिए.'
वीडियो पर बवाल और रेहाना पर केस
वीडियो के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर जमकर बवाल हुआ, अभी भी हो रहा है. इधर केरल की थिरुवल्ला पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है. BJP लीडर ए.वी. अरुण प्रकाश की शिकायत पर मुकदमा हुआ. 'दी न्यूज़ मिनट' के मुताबिक, तीन धाराओं के तहत केस हुआ-
- IT एक्ट (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट) के सेक्शन 67. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक या अश्लील मटेरियल पोस्ट करने या शेयर करने पर लगती है.
- जूवेनाइल जस्टिस एक्ट के सेक्शन 75. बच्चे के साथ क्रूरता के मामले में ये धारा लगती है.
- केरल पुलिस एक्ट की धारा 120. कम्यूनिकेशन के किसी भी माध्यम से, चाहे कॉल, लेटर, मैसेज, ई-मेल या मैसेंजर के ज़रिए किसी व्यक्ति के लिए बाधा खड़ी करना.
ये केस दर्ज होने के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर कहा कि पॉक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल एब्यूज) के तहत भी केस दर्ज होना था, जो कि नहीं हुआ. इसके अलावा रेहाना के वीडियो को अश्लील भी कहा जा रहा है. और पुलिस ने भी इस मामले की एक धारा रेहाना पर लगाई है. आईटी एक्ट वाली.

रेहाना के खिलाफ हुआ ट्वीट.
अश्लील शब्द का इस्तेमाल अक्सर होता है, लेकिन सवाल ये है कि भारतीय कानून की नज़र में अश्लीलता क्या है?
ये जानने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट की वकील विजया लक्ष्मी से बात की. उन्होंने बताया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) में अश्लील और अश्लीलता को स्पष्ट तरीके से डिफाइन अभी तक नहीं किया गया है. इसके मायने समय के हिसाब से बदलते रहे हैं. फिर भी IPC के कुछ सेक्शन इस पर बात करते हैं.
IPC का सेक्शन 292-
इसके सब-सेक्शन (1) में ये बताया गया है कि क्या अश्लील होगा. सब-सेक्शन (2) में बताया गया है कि कौन व्यक्ति अश्लीलता फैलाने का आरोपी होगा.
सब-सेक्शन (1)- कोई किताब, पैम्फ्लेट, पेपर, लेख, चित्र, ड्रॉइंग, पेंटिंग, कोई आकृति या किसी भी चीज़ को तब अश्लील समझा जाएगा, जब वो कामुक हो, या फिर कामुकता की अपील करता हो, या फिर उसे देखने, पढ़ने, सुनने वाले यानी कि उसका इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को दुराचारी और भ्रष्ट बनाता हो.
सब-सेक्शन (2) के तहत कौन अश्लीलता फैलाने का आरोपी होगा-
(a) जो भी इस तरह की अश्लील चीज़ों को बेचे, किराए पर दे, बांटे, लोगों को दिखाए या किसी भी तरह से सर्कुलेशन में लाए, या ऐसी चीज़ों को बनाए.
(b) कोई भी व्यक्ति ऐसी अश्लील चीज़ों का आयात-निर्यात करे, ये जानते हुए कि इन चीज़ों को आगे बेचा जाएगा, किराए पर दिया जाएगा या फिर सर्कुलेट किया जाएगा.
(c) कोई व्यक्ति अश्लील चीज़ों के बेचने, सर्कुलेट करने, लोगों तक पहुंचाने जैसे बिज़नेस में शामिल हो, या फिर ऐसे बिज़नेस से जिसे फायदा हो रहा हो.
(d) कोई व्यक्ति किसी अश्लील चीज़ का प्रचार-प्रसार करे. लोगों को अश्लील चीज़ तक पहुंचने का रास्ता बताए.
क्या सज़ा होगी?
(e) पहली बार अगर अश्लीलता फैलाने का दोष सिद्ध होता है, तो दो साल तक की सज़ा और दो हज़ार रुपए का जुर्माना होगा. अगर दूसरी या तीसरी या उससे ज्यादा बार व्यक्ति दोषी सिद्ध होता है, तो पांच साल तक की सज़ा और पांच हज़ार रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है.
लेकिन कुछ अपवाद भी हैं.
अपवाद, यानी सेक्शन 292 के तहत मेंशन किए गए काम कोई करेगा, लेकिन फिर भी अश्लीलता फैलाने का आरोप नहीं लगेगा. सब-सेक्शन (2) के तहत, ये अपवाद हैं-
(a) अगर अश्लील समझी जाने वाली कोई वस्तु का पब्लिकेशन या प्रोडक्शन लोगों की भलाई के लिए किया गया हो. जैसे कि साइंस की किताबें, पढ़ाई के लिए, लिटरेचर के लिए, या फिर आर्ट के लिए. इसके अलावा अगर अश्लील समझी जाने वाली कोई चीज़ का मकसद धार्मिक हो, जैसे कि मूर्ति, ड्रॉइंग वगैरह, तो वो भी अपराध की कैटेगिरी में नहीं आएगा.
(b) कोई मूर्तिकला (स्कल्प्चर्ड), या किसी पत्थर पर उकेर कर बनाई गई कोई आकृति, या कोई पेंटिंग, जिनमें अश्लीलता नज़र आ रही हो, लेकिन ये या तो मंदिर में रखे गए हों, या फिर पुरातात्त्विक सर्वे में रखा गया हो, तब ये सब 292 के तहत अपराध नहीं माने जाएंगे. क्योंकि ये सब इतिहास को, कला को, धर्म को दर्शाते हैं.
इसके अलावा IPC की धारा 293 भी अश्लीलता से डील करती है.
IPC के सेक्शन 292 के तहत जिन चीज़ों को अश्लील बताया गया है, वही चीज़ें अगर कोई व्यक्ति किसी 20 बरस से छोटे व्यक्ति को बेचता है, किराए पर देता है, डिस्ट्रिब्यूट करता है या ये सब करने की कोशिश करता है, तो वो सेक्शन 293 के तहत आरोपी होगा.
क्या सज़ा होगी-
पहली बार दोष सिद्ध होने पर तीन साल तक की सज़ा और दो हज़ार रुपए का जुर्माना होगा. अगर दूसरी या उससे आगे भी कई बार वो व्यक्ति दोषी पाया गया, तो सात साल तक की सज़ा हो सकती है, साथ ही पांच हज़ार रुपए का जुर्माना भी देना होगा.
सेक्शन 294-
कोई व्यक्ति अगर सार्वजनिक जगहों पर अश्लील हरकत करे, जैसे कोई भद्दे इशारे करे या कोई अश्लील गाना गाए. तब इस सेक्शन के तहत वो आरोपी होगा.
क्या सज़ा होगी-
तीन महीने की सज़ा या फिर जुर्माना या फिर दोनों ही.
IT एक्ट का सेक्शन 67-
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील मटेरियल पोस्ट करने या शेयर करने को अपराध माना गया है. यहां पर भी अश्लील चीज़ों की डेफिनेशन वही है, जो सेक्शन 292 में बताई गई है. यानी कोई ऐसा मटेरियल जो कामुक हो, या फिर कामुकता की अपील करता हो, या फिर उसे देखने, पढ़ने, सुनने वाले यानी कि उसका इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को दुराचारी और भ्रष्ट बनाता हो.
ये भी नोट करना ज़रूरी है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से फैलाई गई अश्लीलता पर केवल IT एक्ट के तहत ही कार्रवाई होगी, इस पर IPC का कोई दूसरा एक्ट नहीं लगेगा.
क्या सज़ा होगी?
पहली बार दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की सज़ा और पांच लाख तक का जुर्माना हो सकता है. दूसरे या उससे ज्यादा बार दोषी पाए जाने पर पांच साल तक की सज़ा और दस लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.
भारत में अदालतों ने अश्लीलता पर क्या-क्या कहा?
भारतीय अदालत ने पहली बार रंजीत डी. उदेशी वर्सेस स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (1964) के केस में अश्लीलता को डिफाइन किया था. केस ये था कि रंजीत का एक बुक स्टॉल था, जहां एक किताब थी 'लेडी चैटरलीज़ लवर'. काफी विवादित किताब थी. इस किताब के अंदर कुछ ऐसी चीज़ें थीं, जिन्हें अश्लील कहा गया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसमें कोर्ट ने हिकलिन टेस्ट का इस्तेमाल किया. कहा कि अश्लील चीज़ वो है जो किसी ऐसे व्यक्ति को दुराचारी और भ्रष्ट करती है, जिसका दिमाग इस तरह की अनैतिक चीज़ों के लिए खुला हो.
इसके बाद कोर्ट ने 'लेडी चैटरलीज़ लवर' किताब की जांच की और ये नतीजा निकाला कि हिकलिन टेस्ट के तहत ये किताब अश्लील है. किताब को बैन कर दिया गया.
सवाल- क्या है हिकलिन टेस्ट?
थोड़ा पीछे चलिए. 1857 के आस-पास. जगह- यूनाइटेड किंगडम. 1857 में UK में ऑब्सीन पब्लिकेशन एक्ट (अश्लील प्रकाशन अधिनियम) आया था. यहीं से अश्लीलता पर मॉडर्न इंग्लिश लॉ की शुरुआत मानी जाती है. इसी दौरान एक आदमी, जिसका नाम था हेनरी स्कॉट. उसने कुछ पैम्फ्लेट लिखे, जिसमें उसने चर्च के खिलाफ कुछ बातें लिखी, जिनको अनैतिक समझा गया. फिर उस पैम्फ्लेट पर एक जांच आयोग ने बैन लगा दिया.
फिर स्कॉट ने एक कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की. कोर्ट में बेंजामिन हिकलिन, जो कि एक वकील थे और जिनके पास किसी चीज़ को बैन या रद्द करने का अधिकार था, उन्होंने पैम्फ्लेट पर लगे बैन को हटा दिया. कहा कि स्कॉट का मकसद भ्रष्ट नहीं था, उसने केवल चर्च में भ्रष्टाचार से जुड़ी गतिविधियों को सामने रखा है.
फिर क्या हुआ?
हिकलिन के फैसले के खिलाफ भी अपील की गई. और भी ऊपरी अदालत में. जस्टिस कॉकबर्न ने मामला सुना और फिर से पैम्फ्लेट पर बैन लगा दिया गया. और कहा-
'अगर किसी चीज़ में कुछ ऐसा कॉन्टेंट है, जो किसी ऐसे व्यक्ति को दुराचारी और भ्रष्ट बनाता हो, जिसका दिमाग अनैतिक प्रभावों के लिए पहले से ही खुला हो, वो चीज़ अश्लील होगी.'
बस यही है हिकलिन टेस्ट. और इसी के आधार पर रंजीत डी उदेशी वाले मामले में किताब पर बैन लगा दिया गया.
'बैंडिट क्वीन' वाला मामला
इसके अलावा भी कई सारे मामले कोर्ट में पहुंचते रहे, अश्लीलता से टॉपिक से जुड़े हुए. एक काफी अहम मामला था फिल्म 'बैंडिट क्वीन' का. इसमें फूलन देवी की लाइफ की कहानी दिखाई गई है. फिल्म में रेप और क्रूरता के सीन थे. इसे लेकर विरोध हुआ था. 1995-96 की बात है. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. तब कोर्ट ने ये फिल्म देखी और काफी अहम बात कही. जस्टिस जे भरूचा ने कहा कि रेप और क्रूरता के सीन अश्लील नहीं हैं. फिल्म के लिए ज़रूरी हैं, एक संदेश दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन सीन्स को बिना सेंसर किए ही फिल्म को 'A' सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए.

'बैंडिट क्वीन' का वो सीन जिसका विरोध हुआ था.
कानून के एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
वकील विजया लक्ष्मी इन सारे एक्ट्स और मामलों में आए फैसलों के आधार पर कहती हैं,
'भारतीय अदालतों ने इस तरफ कई बार इशारा किया है कि अश्लीलता का कॉन्सेप्ट समय के साथ बदलता रहता है. हो सकता है कि किसी वक्त पर कोई चीज़ अगर अश्लील मानी जा रही है, तो आगे चलकर वो अश्लील न मानी जाए. यहां ये नोट करना जरूरी है कि फिल्मों, तस्वीरों, पेंटिंग्स और लिटरेचर में अश्लीलता को किस स्तर तक स्वीकार किया जाएगा, ये अभी तक भारत में ठीक से तय नहीं हो पाया है. अभी इस पर बहुत सी बातें करना बाकी हैं.'
रेहाना फातिमा के केस में विजया लक्ष्मी कहती हैं कि इस केस में अश्लीलता को लेकर फैसला कोर्ट के ऊपर ही निर्भर करता है. हो सकता है कि कोर्ट इसे कला के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें छोड़ भी दे, या फिर आगे कार्रवाई हो. आगे उन्होंने कहा,
'वैसे भी कई सारे फैशन शो ऐसे होते हैं, जिसमें सेमी न्यूड रैंप वॉक होते हैं. वहां तो बच्चे भी अलाउड होते हैं. क्योंकि उसे कला का प्रदर्शन माना जाता है.'
वहीं रेहाना के केस लोग POCSO एक्ट नहीं लगाने पर भी विरोध कर रहे हैं, इस पर विजया लक्ष्मी का कहना है कि वीडियो में बच्चों के साथ सेक्शुअल हैरेसमेंट होता नहीं दिख रहा है. दूसरी बात बच्चे उस महिला के खुद के हैं. तो हो सकता है कि इस वजह से पॉक्सो एक्ट न लगाया गया हो.
खैर, रेहाना फातिमा वाला मामला अभी पुलिस के पास है. जांच चल रही है.
वीडियो देखें: हाती चाय नाम की इस कंपनी ने 'दलित रिंग' बेची, लोगों ने आईना दिखा दिया