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CAR-T सेल थेरेपी: कैंसर का ये 'भारतीय' इलाज मरीजों का बहुत सारा पैसा बचाएगा

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने हाल ही में एक CAR-T सेल थेरेपी का IIT-बॉम्बे में उद्घाटन किया है. ये थेरेपी पूरी तरह से भारत में तैयार की गई है. इससे अब देश में कैंसर के मरीज़ों को दूसरे देशों की तुलना में सस्ता इलाज मिलने लगेगा.

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पहली 'मेड इन इंडिया' CAR-T Cell थेरेपी लॉन्च हो गई है

कैंसर बहुत ही खतरनाक बीमारी है. इसके मरीज़ों को लंबे इलाज से गुज़रना पड़ता है. कैंसर शरीर तो खोखला करता ही है, इसके इलाज में होने वाला खर्चा पेशेंट और उसके घरवालों की जेबें भी खोखली कर देता है. पर अब एक राहत की खबर आई है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने हाल ही में IIT-बॉम्बे में एक CAR-T सेल थेरेपी का उद्घाटन किया. ये पूरी तरह भारत में तैयार की गई है. 

दूसरे देशों में CAR-T सेल थेरेपी से इलाज कुछ समय से होता आ रहा है. पर ये बहुत ज़्यादा महंगा है. भारत में दी जाने वाली ये CAR-T सेल थेरेपी, दूसरे देशों की तुलना में 90 फीसदी तक सस्ती होगी. सोचिए, ये कितना मददगार साबित होने वाला है. आज डॉक्टर से जानेंगे कि CAR-T सेल थेरेपी क्या है? यह कैसे की जाती है? कैंसर के किन मरीज़ों को यह थेरेपी दी जाती है और इसकी लागत कितनी आती है?

CAR-T सेल थेरेपी क्या है?

ये हमें बताया डॉ. समीर तुलपुले ने.

डॉ. समीर तुलपुले, कंसल्टेंट, हेमाटो-ऑन्कोलॉजी, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल.

CAR-T सेल थेरेपी एक आधुनिक ट्रीटमेंट है. यह एक इम्यूनोथेरेपी या सेल थेरेपी है जो कैंसर से लड़ने में काफी मददगार है. इसका पूरा नाम काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर-टी सेल थेरेपी है. हमारे शरीर का खून बोन मैरो के अंदर बनता है. बोन मैरो हड्डियों के बीच एक मुलायम स्पंज जैसा टिशू होता है, जिसमें खून बनाने वाले सेल्स होते हैं. इसमें रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स होते हैं. इसका एक भाग लिम्फोसाइट होता है. अब लिम्फोसाइट भी दो तरह का होता है- बी सेल और टी सेल. टी सेल लिम्फोसाइट हमें इंफेक्शन से बचाता है, काफी हद तक कैंसर से भी. वैज्ञानिकों ने सोचा कि अगर टी सेल लिम्फोसाइट कैंसर से बचाता है, तो इसे और शक्तिशाली कैसे बनाया जाए ताकि वो अपने ही शरीर का कैंसर मिटा सके. फिर काफी रिसर्च के बाद टी सेल्स में जेनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा बदलाव किया गया.

CAR-T सेल थेरेपी कैसे की जाती है?

CAR-T सेल थेरेपी करने के लिए पहले मरीज़ की फिटनेस जांची जाती है. फिर उसे एक मशीन के साथ कनेक्ट किया जाता है. इसका नाम एफेरेसिस मशीन है. इसमें मरीज़ का खून लिया जाता है, जो इस मशीन में तेज़ी से घूमता है. यह मशीन खून में लिम्फोसाइट अलग कर देती है. इस लिम्फोसाइट को लैब में भेजा जाता है, जहां टी सेल्स को अलग कर उसमें बदलाव किए जाते हैं. फिर मरीज़ की दो-तीन दिन कीमोथेरेपी करने के बाद, वापस उसके शरीर में टी सेल्स डाल दिए जाते हैं. इसके बाद आठ से दस दिनों के लिए मरीज़ को हॉस्पिटल में रखा जाता है. फिर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाता है और ओपीडी में उनका फॉलोअप लिया जाता है. 

CAR-T Cell थेरेपी कुछ तरह के ब्लड कैंसर में बहुत कारगर है

कैंसर के किन मरीज़ों को CAR-T सेल थेरेपी दी जाती है?

यह थेरेपी हर तरह के कैंसर के लिए असरदार नहीं है. कुछ तरीके के ब्लड कैंसर में CAR-T Cell थेरेपी कारगर है. जैसे बी सेल लिम्फोमा यानी गांठ का कैंसर और बी-सेल ल्यूकेमिया. मल्टीपल मायलोमा नाम के ब्लड कैंसर में भी यह काफी असरदार है. जब भी लिम्फोमा या बी-सेल ल्यूकेमिया के मरीज़ डॉक्टर के पास जाते हैं तो पहले उनका सामान्य उपचार किया जाता है. इससे काफी मरीज़ ठीक हो जाते हैं. लेकिन जो ठीक नहीं हो पाते और जिन पर रिपीट कीमोथेरेपी भी असर नहीं करती, उन मरीज़ों को CAR-T सेल थेरेपी दी जाती है.

CAR-T सेल थेरेपी का खर्चा?

पश्चिमी देशों में इस थेरेपी की लागत 4 से 5 करोड़ रुपये है. हालांकि भारत में यह थेरेपी कराने पर करीब 40 लाख रुपये का खर्च आता है. अब इस थेरेपी का भारत में सस्ता इलाज मिलने से कैंसर के मरीज़ों को ज़रूर राहत मिलेगी.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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