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केंद्र ने पूछा- सेना में परमानेंट कमीशन कैसे दें? महिला अफसरों ने इतनी वजहें गिना दीं

अभी महिलाएं 14 साल में रिटायर कर दी जाती हैं, कमांड पोस्ट तक नहीं पहुंचतीं.

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नेवी और एयर फ़ोर्स में महिलाएं कॉम्बैट रोल निभा रही हैं. केवल आर्मी मेंही उन्हें कॉम्बैट रोल्स में नहीं रखा गया है. (सुप्रीम कोर्ट और महिला सैनिकों की सांकेतिक तस्वीर: PTI/ट्विटर )
केंद्र सरकार और फीमेल ऑफिसर्स के बीच सुप्रीम कोर्ट में ठनी हुई है. फीमेल ऑफिसर्स ने सुप्रीम कोर्ट के पास लिखित स्टेटमेंट दर्ज कराया है. इसमें लिखा है कि किस तरह उन्हें परमानेंट कमीशन न देना बेहद भेदभाव भरा डिसीजन है. फीमेल ऑफिसर्स द्वारा जमा किए गए इस सबमिशन के मुख्य पॉइंट्स हैं:

# महिलाएं पिछले 27-28 सालों से कॉम्बैट सपोर्ट ग्रुप्स में ड्यूटी कर रही हैं.  मुश्किल समय में उन्होंने हमेशा अपनी हिम्मत और बहादुरी का परिचय दिया है.

# केंद्र सरकार ने महिलाओं को कमांड पोजीशन न देने के पीछे जो वजहें बताई है, वो बेहद पिछड़ी हुई और रिकॉर्ड किए गए स्टैटिस्टिक्स के खिलाफ है.

# खुद आर्मी ने उन्हें कॉम्बैट सपोर्ट आर्म्स के लीडिंग रोल्स में रखा है. शान्ति हो या युद्ध, दोनों के दौरान फीमेल ऑफिसर्स ने सैनिकों की टुकड़ियां लीड की हैं. इस दौरान ऐसा कोई मौका नहीं आया जब पुरुष सैनिकों ने किसी महिला का कमांड मानने से मना किया हो.

#केंद्र सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट को जो दलीलें पेश की गई हैं, वो महिला ऑफिसर्स से उनका जायज़ हक़ छीनने की कोशिश है. फरवरी, 2019 में केंद्र सरकार ने निर्णय लिया था कि आर्मी के 10 सहायक कॉम्बैट समूहों में  शार्ट सर्विस कमीशन पर तैनात महिला ऑफिसर्स को परमानेंट कमीशन दिया जायेगा. इस वक़्त जो दलीलें दी जा रही हैं, ये उस निर्णय के भी खिलाफ जाती हैं.


Bhavna Kasturi Lieutenant 2019 के रिपब्लिक डे पर मार्च में पुरुषों की एक टुकड़ी को लीड करतीं लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी. (तस्वीर: PTI)

# अपने साथियों के साथ महिला ऑफिसर्स कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही हैं. कैप्टन और मेजर के पद पर मौजूद फीमेल ऑफिसर्स कॉम्बैट जोन में रह चुकी हैं और वहां भी हिम्मत और बहादुरी दिखाई है. जैसी भारतीय आर्मी की वैल्यूज हैं, बिलकुल उनके मुताबिक़.

# उन्हें अगर कमांड अपॉइंटमेंट्स नहीं दी गईं, तो ये एक बेहद पिछड़ा कदम होगा. जो इन बहादुर महिलाओं के सम्मान को काफी चोट पहुंचाएगा.

पूरा मामला क्या है?
आर्मी में कॉम्बैट रोल में अभी भी महिलाएं नियुक्त नहीं की जातीं. अभी उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन में सपोर्ट रोल/स्टाफ रोल मिलते हैं. यानी जंग के मैदान के अलावा आर्मी के सपोर्ट में जो टुकड़ियां होती हैं, उसमें उन्हें नियुक्त किया जाता है. 14 साल बाद ही उन्हें रिटायर होना पड़ता है. यानी महिला ऑफिसर्स निचली रैंक्स पर ही रह जाती हैं, उन्हें उंची पोस्ट्स (जिन्हें कमांड पोस्ट कहा जाता है) तक पहुंचने का समय नहीं मिलता. फीमेल ऑफिसरों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया कि उन्हें भी कमांड पोस्ट दी जाए. परमानेंट कमीशन में उन्हें भी ऊंची पोस्ट पर नियुक्ति का मौका मिले. दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में ये निर्णय सुनाया था कि महिला ऑफिसर्स को भी परमानेंट कमीशन मिलना चाहिए. इसे चैलेन्ज किया था केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में. इसी मामले पर सुनवाई चल रही थी.
इस सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील पेश की थी कि महिलाओं को कमांड पोस्ट्स नहीं दी जा सकती. केंद्र सरकार और महिला ऑफिसर्स के वकीलों की तरफ से क्या दलीलें पेश की गईं, वो आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

परमानेंट कमीशन है क्या?
परमानेंट कमीशन यानी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में सेवाएं देना. शॉर्ट सर्विस कमीशन में 14 साल की लिमिट होती है. महिला ऑफिसर सिर्फ शॉर्ट सर्विस कमीशन के ज़रिये आर्मी ज्वाइन करती हैं. 14 साल के बाद उन्हें आर्मी से ऑप्ट आउट करना ही होता है. दूसरी ओर पुरुष परमानेंट कमीशन के लिए अप्लाई कर सकते हैं.


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