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थोड़ा चलने से पैर दुखते हैं? बैठते, सोते वक्त भी दर्द रहता है? अगर हां, तो आपको ये बीमारी हो सकती है

इस बीमारी में धमनियों के अंदर कोलेस्ट्रॉल और कैल्सियम की एक परत जम जाती है. इस वजह से धमनियां पतली हो जाती हैं और धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं.

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थोड़ा सा चलने पर अगर पिंडलियों और मांसपेशियों में दर्द हो तो एक बार चेकआपण जरूर कर लें (सांकेतिक फोटो)

हमारे एक पाठक/दर्शक हैं अनुज. वो ‘सेहत’ देखते हैं. उन्होंने हमें अपनी एक समस्या को लेकर मेल किया. लिखा कि उनके पैरों में थोड़ा सा चलते ही दर्द होने लगता है, ऐसा लगता है कि जैसे पैरों में दम ही न हो. लेकिन जैसे ही वो कुछ मिनट रुकते हैं उन्हें आराम मिलता है. परेशान होकर अनुज डॉक्टर के पास गए, जहां उन्हें पता चला कि उनके पैरों में मौजूद आर्टरीज में रुकावट है. इस बीमारी को पेरिफेरल आर्टरियल डिज़ीज़ कहते हैं. शॉर्ट में इसका नाम है PAD. चलिए डॉक्टर से जानते हैं कि ये बीमारी है क्या और क्यों होती है. 

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पेरिफेरल आर्टरियल डिजीज क्या है?

ये हमें बताया डॉ हिमांशु वर्मा ने. 

(डॉक्टर हिमांशु वर्मा, सीनियर कंसल्टेंट, वैस्कुलर सर्जन, फोर्टिस, गुरुग्राम)

हमारा दिल खून पम्प करता है. जो नसें इस खून को पूरे शरीर में लेकर जाती हैं, उन्हें आर्टरी या धमनी कहते हैं. पूरे शरीर में मौजूद आर्टरी के इस नेटवर्क को तीन हिस्सों में बांट सकते हैं. सेंट्रल हिस्सा यानी पेट और छाती, दूसरा हिस्से में दिमाग और तीसरे हिस्से में पेरिफेरी वाले अंग आते हैं यानी हाथ और पैर. हाथ-पैरों में मौजूद आर्टरी में अगर ब्लॉकेज आ जाए तो उसे पेरिफेरल आर्टरियल डिज़ीज़ कहते हैं.

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ये बीमारी किस वजह से होती है?

ये समस्या एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) नाम की बीमारी की वजह से होती है. इस बीमारी में धमनियों के अंदर कोलेस्ट्रॉल और कैल्शियम की एक परत जम जाती है. इस वजह से धमनियां पतली हो जाती हैं और धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं.

लक्षण

इसे एक आसान से उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिये किसी की आर्टरीज में एक तय वक्त के भीतर 100 ml खून जाता है. धमनियां पतली हो जाएं, तो उतने ही वक्त में आर्टरीज़ 40 ml खून ले जा पाएंगी. ऐसे में खून की सप्लाई पूरी नहीं पड़ेगी. इससे बैठे रहने के दौरान तो कोई समस्या नहीं होती, लेकिन थोड़ा सा चलने पर मांसपेशियों को खून की जरूरत पड़ती है, जिस वजह से पिंडलियों और जांघों में दर्द होता है. वहीं अगर कुछ देर खड़े हो जाएं तो मांसपेशियों को आराम मिलेगा, और दर्द बंद हो जाता है. इसे क्लॉडिकेशन (Claudication) कहा जाता है. ये पेरिफेरल आर्टरियल डिज़ीज़ का पहला लक्षण है. बहुत सारे डायबिटीज के मरीजों में ये लक्षण नहीं दिखता.

अगर धमनियों में रुकावट बढ़ती रही तो जहां पहले सिर्फ 40 ml खून आ रहा था अब वो घटकर सिर्फ 10 ml भी हो सकता है. ऐसा हुआ तो दूसरा लक्षण दिखता है जिसे रेस्ट पेन (rest pain) कहते हैं. रेस्ट पेन का मतलब है, सोते समय या बैठे हुए भी लगातार पैरों में दर्द होना. इस दर्द की वजह से मरीज ठीक से सो भी नहीं पाते. कई मरीज बैठे-बैठे सोते हैं ताकि ग्रैविटी से खून पैरों में नीचे जाए और उन्हें दर्द से राहत मिले. अगर ये समस्या बढ़ी तो गैंगरीन भी हो सकता है, इसमें हाथ-पैर की उंगलियां काली पड़ जाती हैं. गैंगरीन होने पर इस समस्या का कोई इलाज नहीं हो सकता, गैंगरीन वाले अंग को काटना ही पड़ेगा.

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डायबिटीज के मरीजों में ये इस समस्या का जल्दी पता नहीं चलता. क्योंकि खून की सप्लाई कम होने पर उन्हें पैरों में दर्द महसूस नहीं होता. इस वजह से कई बार इंफेक्शन हो जाता है और घाव ठीक नहीं होता.

इलाज

समय रहते पता चलने पर दवाइयों से इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है. लेकिन बीमारी गंभीर होने पर पैरों में तुरंत खून की सप्लाई बढ़ाने की जरूरत होती है. खून की सप्लाई को दो तरीकों से बढ़ाया जा सकता है. पहला है, धमनियों को एंजियोप्लास्टी, स्टेंट और गुब्बारे की मदद से अंदर से चौड़ा किया जाए. दूसरा तरीका है बाइपास सर्जरी का. अगर धमनियों में ज्यादा रुकावट हो, तब इसका सहारा लिया जाता है. मरीज के इलाज में एंजियोप्लास्टी की जरूरत पड़ेगी या बाइपास सर्जरी की, ये विशेषज्ञ ही बता सकता है. यानी पेरिफेरल आर्टरियल डिजीज के इलाज के लिए किसी वैस्कुलर सर्जन के पास ही जाएं. क्योंकि एंजियोप्लास्टी और बाइपास सर्जरी दोनों को सिर्फ वैस्कुलर सर्जन ही कर सकता है. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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