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नादिरा बब्बर: NSD की वो गोल्ड मेडलिस्ट नाटककार जिन्होंने सैकड़ों को एक्टिंग सिखाई

न कि वो औरत जिसे एक पुरुष ने स्मिता पाटिल के लिए 'छोड़ दिया'.

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नादिरा बब्बर 50 साल से थियेटर में एक्टिव हैं. उन्होंने 80 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन किया है. फोटो- Facebook/Ekjute Theatre group
राज बब्बर के धोखे से टूट गई थीं नादिरा बब्बर
स्मिता पाटिल के लिए राज ने छोड़ा था नादिरा का साथ
नादिरा से तलाक लिए बिना स्मिता के साथ रहने लगे थे राज

ये कुछ हेडलाइंस हैं, जो हमें नादिरा बब्बर के जन्मदिन पर पढ़ने को मिलीं. वो खबरें जिन्होंने नादिरा बब्बर के पूरे जीवन को, उनकी सारी उपलब्धियों को एक लव ट्रायंगल में समेटकर परोस दिया. एक वेबसाइट पर यह भी पढ़ने को मिला,
"नादिरा बब्बर की एक सबसे बड़ी पहचान यह भी है कि वे मशहूर अभिनेता और भारतीय राजनीति में अपना प्रभाव रखने वाले राज बब्बर की पत्नी हैं. (शब्दशः)"
जनवरी, 2020 में नादिरा ने 'द हिंदू' को एक इंटरव्यू दिया था. इसमें उन्होंने कहा था,
"हम अपनी शादी में किन चीज़ों से गुज़रे वो अब मायने नहीं रखता. मैं अब उस बारे में सोचती नहीं. मायने ये रखता है कि मैं पढ़ती हूं, लिखती हूं, सोचती हूं, प्ले डायरेक्ट करती हूं और इंस्पायरिंग लोगों से मिलती हूं."
कहने का मतलब ये कि नादिरा उस एक किस्से से बहुत आगे बढ़ चुकी हैं. इसलिए हम जानने की कोशिश कर रहे हैं उन नादिरा बब्बर को जो  थिएटर की दुनिया का जाना माना नाम हैं. लेकिन शुरुआत तो बचपन की शैतानियों से हुई थी नादिरा बब्बर के पेरेंट्स का नाम रज़िया और सज्जाद ज़हीर था. दोनों उर्दू के लेखक थे. चार बहनों में तीसरे नंबर की नादिरा 20 जनवरी, 1948 को पैदा हुई थीं.
नादिरा के बारे में जानने के लिए हमने उनकी बेटी जूही बब्बर सोनी से बात की. जूही ने नादिरा के बचपन से जुड़ा एक किस्सा बताया. साथ में ये डिस्क्लेमर भी दिया कि ये किस्सा अगर उनकी मां ने बताया होता तो वो कभी यकीन नहीं करतीं. लेकिन उनकी मौसियों ने बताया था, इसलिए वो इसे पूरा सच मानती हैं. जूही ने बताया,
“ये मम्मी के बहुत बचपन की बात है. तब वो एक दो महीने की ही थीं. मेरी नानी ने उन्हें नहलाया, मालिश की और आंगन में रखे पालने पर सुला दिया. कुछ देर बाद मम्मी पालने से गायब थीं. बहुत खोजने पर भी नहीं मिलीं. आखिर में पता चला कि एक बंदरिया उन्हें उठाकर ले गई है. उस बंदरिया ने कुछ टाइम पहले अपना बच्चा खोया था. शायद उसने मम्मी को अपना दूध भी पिलाया था. लोग परेशान थे कि मम्मी को बंदरिया से कैसे छुड़ाएं, इस बात का डर था कि वो उन्हें फेंक देगी. लेकिन बाद में बंदरिया खुद मम्मी को लेकर पेड़ से नीचे उतरी और उन्हें पालने में डाल दिया.”
जूही कहती हैं कि नादिरा बचपन में बड़ी ही शैतान हुआ करती थीं. दीवारों पर चढ़कर कूद जातीं. मोहल्ले में बदमाश बच्ची के नाम से फेमस थीं. वो बताती हैं कि परिवार में इस बात को लेकर मज़ाक भी होता है कि बंदर ने दूध पिलाया इसी वजह से नादिरा इतनी शैतान थीं.
Nadira Babbar Raj Babbar नादिरा बब्बर और राज बब्बर की मुलाकात NSD में हुई थी. फोटो- Facebook/Ekjute Theatre Group
पढ़ाई में फिसड्डी, क्या करेगी ये लड़की? नादिरा की दोनों बड़ी बहनें पढ़ाई में तेज़ थीं. एक बाद में साइंटिस्ट बनीं और दूसरी हिस्टोरियन. लेकिन नंबरों में आंका जाए तो नादिरा पढ़ाई में फिसड्डी थीं. पेरेंट्स को चिंता थी कि वो क्या करेंगी. लोग लाइब्रेरियन का कोर्स कराने का सजेशन देते कि 'लाइब्रेरियन ही बन जाए'.
नादिरा के करियर की चिंता के बीच उनके पिता की मुलाकात इब्राहिम अल्काज़ी से हुई. अल्काज़ी तब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर थे. अल्काज़ी ने उनसे कहा कि उसे मुझसे मिलवाओ, देखते हैं अगर यहां कुछ हो पाए तो.
इस तरह नादिरा की NSD में एंट्री हुई. पहला साल उनके लिए मुश्किल रहा. जो नादिरा कभी स्कूल में भी स्टेज पर नहीं चढ़ी थी, उसके लिए NSD का माहौल बहुत नया, बहुत अलग था. लेकिन नादिरा ने कड़ी मेहनत की और बेस्ट स्टूडेंट के तौर पर गोल्ड मेडल के साथ NSD से निकलीं. स्कॉलरशिप, जर्मनी में पढ़ाई, एक बुरी खबर और राज से मुलाकात गोल्ड मेडल के साथ नादिरा को आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिली. वो जर्मनी गईं. लेकिन वो कोर्स बीच में ही छोड़कर 1973 में उन्हें लौटना पड़ा. क्योंकि उनके पिता का निधन हो चुका था. वापस आकर उन्होंने बतौर ड्रामा टीचर काम शुरू किया. उन्होंने NSD में भी पढ़ाना शुरू किया, इसी दौरान उनकी मुलाकात राज बब्बर से हुई.
Ashish Vidyarthi Dayashankar Ki Diary नादिरा के लिखे पहले नाटक 'दयाशंकर की डायरी' में आशीष विद्यार्थी ने ऐक्ट किया था. फोटो- Ekjute Theatre Group
नादिरा ने लिखना क्यों और कैसे शुरू किया? नादिरा बब्बर एकजुट नाम का एक थिएटर ग्रुप चलाती हैं. जब नादिरा और राज बब्बर दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हुए, उसी दौरान NSD से पढ़े कई और कलाकारों ने मुंबई का रुख किया था. सतीश कौशिक, अनुपम खेर आदि. जूही ने बताया कि तब नादिरा ग्रुप नहीं बनाना चाहती थीं, और दूसरे थिएटर ग्रुप्स में काम ढूंढ रही थीं. तब इन कलाकारों ने उन्हें कन्विंस किया कि वो ग्रुप शुरू करें और वो सब उसमें काम करेंगे. इसके बाद अप्रैल, 1981 में शुरू हुआ एकजुट. ‘यहूदी की लड़की’ इस ग्रुप का पहला प्रोडक्शन था. लगभग 40 सालों में ये ग्रुप 80 से ज्यादा नाटक प्रोड्यूस कर चुका है.
एक वक्त के बाद नादिरा को लगने लगा कि नए मटीरियल की ज़रूरत है. ऐसे में उन्होंने लिखना शुरू किया. पहला नाटक लिखा ‘दयाशंकर की डायरी’. ये एक सोलो नाटक था जिसे आशीष विद्यार्थी ने परफॉर्म किया था. अगला नाटक उन्होंने लिखा ‘सकुबाई’. मुंबई की एक आम हाउसहेल्प की कहानी मज़ेदार तरीके से बताता ये प्ले भी सोलो था. जिसमें सरिता जोशी ने परफॉर्म किया था. इनके बाद नादिरा ने कई और नाटक लिखे. किस बात की कसक रह गई? जूही बताती हैं कि नादिरा को इस बात की हमेशा कसक रही कि उन्हें अच्छे रोल नहीं मिले. इसकी एक वजह ये रही कि वो ग्रुप के काम, लिखने और डायरेक्शन में इतनी व्यस्त रहीं कि एक्टिंग के लिए उतना वक्त नहीं निकाल पाईं. 'ब्राइड एंड प्रेज्यूडिस', 'जय हो', 'मीनाक्षी', 'घायल वन्स अगेन' जैसी फिल्मों में नादिरा ने काम किया लेकिन उनका प्यार थियेटर ही रहा. उन्होंने 'संध्या छाया' और 'बेगम जान' में जो भूमिकाएं निभाईं वो रंग प्रेमियों के ज़ेहन में अब भी हैं.
द हिंदू को दिए इंटरव्यू में नादिरा ने कहा था,
“एक्टिंग मेरी सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन मैं ग्रुप को मैनेज करने में इतनी व्यस्त थी कि अपने लिए रोल चुनने का वक्त नहीं मिला. कॉमेडी मेरा फोर्टे है, लेकिन कभी मुझे कॉमेडी करने का मौका नहीं मिला. मुझे इस बात का बुरा लगता है कि मैंने सकुबाई खुद नहीं की. लेकिन वो दूसरा ही नाटक था जो मैंने लिखा था, और मेरे अंदर इतना कॉन्फिडेंस नहीं था कि मैं डायरेक्ट भी कर सकूं और ऐक्ट भी. अब मैं एक ऐसा प्ले लिखना चाहती हूं जिसमें मैं ऐक्ट भी कर सकूं.”
Sarita Joshi Sakubai सरिता जोशी ने 'सकुबाई' के किरदार को यादगार बना दिया. पर नादिरा को ये किरदार न निभा पाने की कसक रही. फोटो- Ekjute Theatre Group

जूही बताती हैं कि 90 के दशक में नादिरा ने सोचा कि अगर थियेटर को आगे बढ़ाना है तो इसे लोगों को सिखाना होगा. इसके लिए उन्होंने वर्कशॉप करना शुरू किया. एकजुट साल में दो बार वर्कशॉप करता है और एक्टर्स को ट्रेनिंग देता है. जूही कहती हैं कि आधे घंटे के लिए टीवी देख लो तो कई सारे एक्टर्स तो एकजुट वाले ही दिखते हैं. अब थोड़ी फैमिली की बात जूही बताती हैं कि अपने बिज़ी शेड्यूल के बावजूद राज और नादिरा दोनों ये सुनिश्चित करते थे कि बच्चों को पर्याप्त टाइम दें. वो कहती हैं कि बाकी बच्चे जहां प्ले ग्राउंड में खेलते थे, वहीं उनका खेल-होमवर्क सब रिहर्सल के बीच चलता था. वो कहती हैं कि इससे उन्हें एक्टिंग के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला.
जूही बताती हैं कि नादिरा ने हमेशा उन्हें रिश्तों की इज्ज़त करना और प्यार करना सिखाया. बकौल जूही, उनके लिए आर्य और प्रतीक में कोई अंतर नहीं है. न ही नादिरा ने कभी तीनों बच्चों के बीच कोई अंतर किया. जूही की अपने पति अनूप सोनी से मुलाकात भी नादिरा के एक प्ले के दौरान ही हुई थी. दोनों ने मार्च, 2011 में शादी की. जूही बताती हैं कि नादिरा उनके बेटे ईमान से बहुत अधिक अटैच्ड हैं. जूही ने ईमान से जुड़ा एक किस्सा बताया,
‘डेढ़-दो साल पहले मम्मी की तबीयत बहुत खराब थी. वो आईसीयू में थीं. किसी से बात नहीं कर रही थीं. न ही किसी को पहचान रही थीं. डॉक्टर ने कहा कि मैं उनसे बात करती रहूं. तो मैं उनसे इधर-उधर की बात करती रहती थी. मैंने कहा कि मम्मी ईमान को लाऊं, इतने में मम्मी की आंखों में हरकत हुई. ईमान फुटबॉल प्रैक्टिस में था, मैं उसे लेकर आई. ICU में उसे ले जाने की परमिशन ली. वो मैदान वाले गंदे कपड़ों में ही ICU पहुंचा था. और उसे देखने के बाद मम्मी ठीक होने लगीं.’
Nadira Babbar Anup Soni Juhi Babbar एकजुट के एक नाटक में नादिरा बब्बर, जूही बब्बर और अनूप सोनी. जूही और अनूप ने साल 2011 में शादी की थी. फोटो- Facebook/ Ekjute Theatre Group

नादिरा की उपलब्धियों को, उनके काम को शब्दों में समेटा नहीं जा सकता. लेकिन इतना पढ़ने के बाद आप ये ज़रूर समझ गए होंगे कि नादिरा की 'सबसे बड़ी' पहचान वो नहीं है जो आपने इस आर्टिकल की शुरुआत में पढ़ा.
जन्मदिन की शुभकामनाएं नादिरा!