रिया और चिंटू भाई-बहन हैं. दोनों के बीच केवल दो साल का गैप है. रिया बड़ी है. बचपन में जब भी चिंटू कुछ शैतानी करता था, उसकी मां रिया से कहती- "वो तुमसे छोटा है, सीख जाएगा बाद में". रिया घर के हर काम में बचपन से ही अपने पैरेंट्स की मदद करती. वहीं चिंटू को हर चीज़ हाथ में मिलती. जब चिंटू 17 साल का हुआ, तो मां के कहने पर रिया ने उसके कॉलेज का निबंध एडिट किया. कॉलेज जाने के लिए चिंटू को कार चाहिए थी, मम्मी ने मना कर दिया, ये कहकर कि उसे खतरा होगा. उसकी जगह वो ट्रांसपोर्ट का कोई और साधन खोज ले, वो पे कर देंगी. अब चिंटू थोड़ा बड़ा हो गया है, लेकिन हर चीज़ को लेकर कन्फ्यूज़ रहता है, उसकी मां रिया से कहती हैं कि वो उसकी मदद करे. ये सब इसलिए हुआ क्योंकि चिंटू हमेशा से ही ममाज़ बॉय रहा.
'मां दा लाडला' या 'पापा की परी' होना आपको क्यूट लगता है तो आपको दिक्कत होने वाली है
आप अपने लिए एक कष्टकारी जीवन की तैयारी कर रहे हैं.

ये कहानी जो अभी आपको हमने सुनाई, ये कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है. कोरा पर एक लड़की ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया था. बताया था कि उसका भाई ममाज़ बॉय है, और इस वजह से उसे अब काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
क्या है ममाज़ बॉय का मतलब?
हमने अक्सर ही देखा है कि जो लड़का, फिर चाहे वो बच्चा हो या फिर बड़ा हो जाए, अपनी मां की हर बात मानता हो, उसे लोग प्यार से ममाज़ बॉय कहते हैं. क्यूट न? सुनने में ये शब्द कितना अच्छा लगता है. लेकिन क्या वाकई ममाज़ बॉय होना इतना ही क्यूट है? सच्चाई क्या है? 'वेरी वेल माइंड' नाम की एक वेबसाइट है, मेंटल हेल्थ के मुद्दों पर इसमें आर्टिकल्स लिखे जाते हैं. इसके एक आर्टिकल के मुताबिक-
"सामन्य तौर पर 'ममाज़ बॉय' शब्द का इस्तेमाल एक स्लैंग के तौर पर उस आदमी के लिए होता है जो हर काम के लिए अपनी मां के ऊपर पूरी तरह डिपेंड होता है, वयस्क होने के बाद भी. क्योंकि वयस्क होने के बाद लोगों से उम्मीद की जाती है कि वो इंडिपेंडेंट रहें, माने किसी पर निर्भर न रहें."
इसी वेबसाइट के मुताबिक, "ममाज़ बॉय" टर्म को सबसे पहले 1900 के शुरुआती बरसों में इस्तेमाल किया गया था. थ्योरिस्ट और चाइल्ड डेवलपमेंट रिसर्चर्स सिगमंड फ्रॉयड और बेंजामिन स्पॉक के कामों में इस टर्म की जड़ पाई जाती है.

'बेटा' फिल्म में अनिल कपूर पूरी तरह के ममाज़ बॉय की तरह था, इतना कि इसकी वजह से शादी तक प्रभावित हुई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
ममाज़ बॉय के साथ क्या दिक्कतें हैं?
अब आप अपने आस-पास नज़र दौड़ाइए. आपको ऐसे कई लड़के मिलेंगे, जो हर चीज़ के लिए अपनी मां से परमिशन लेते हैं, और अगर उनकी मां उन्हें कोई आदेश दे, फिर चाहे वो लॉजिकली सही नहीं भी हों, तब भी वो उनकी बात मानते हैं. 'ममाज़ बॉय' की लाइफ में ज्यादा दिक्कतें कब आती हैं, ये जानने के लिए हमने बात की मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर अखिल अग्रवाल से-
"मां के ऊपर डिपेंड रहने की एक उम्र होती है. जब आप किसी 10 साल के बच्चे को 'ममाज़ बॉय' बुलाते हैं, तो वो वाकई क्यूट लगता है. लेकिन वयस्क होने के बाद भी अगर आप 'ममाज़ बॉय' ही हैं, तो आपकी ज़िंदगी में काफी दिक्कत आती है. प्रोफेशनली आप अपने फैसले खुद नहीं ले पाते, ऐसे में आप हमेशा परेशान रहते हैं. दूसरा आपकी पार्टनर या पत्नी के साथ आपका रिश्ता भी इससे प्रभावित हो सकता है. मेरे पास कई मामले आते हैं, जिनमें मैंने देखा है कि कुछ आदमी अपनी पत्नी के लिए एक सैनिटरी नैपकिन तक लाने के लिए अपनी मां से परमिशन लेते हैं. उसे बाहर खाना खिलाने ले जाने के लिए भी परमिशन लेते हैं. हर एक काम के लिए वो मां पर डिपेंड होते हैं. इस वजह से उनकी पत्नी के साथ रिश्ते कभी भी हेल्दी नहीं रह पाते. मैंने तो ये भी देखा है कि ऐसे लड़कों की मां की जब मौत होती है, तो वो डिप्रेशन में तक चले जाते हैं. एक उम्र के बाद आपको ये डिपेंडेंसी छोड़ देनी चाहिए."

डॉ. अखिल अग्रवाल, मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल
कुछ लोगों के एक्सपीरियंस भी जानिए
राधिका वाज़ एक फेमस कॉमेडियन और राइटर हैं. उन्होंने 'TOI' में इस मुद्दे पर एक आर्टिकल लिखा था. एक ममाज़ बॉय की कहानी बताई थी, लिखा था-
"मैं एक ऐसे आदमी को जानती थी जो डेनमार्क की एक महिला के साथ रिलेशनशिप में था. दोनों की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड ने करवाई थी. कुछ दिन बाद लड़के ने लड़की को कॉल करना बंद कर दिया. कॉमन फ्रेंड्स ने लड़की को बताया कि इंडिया में उस लड़के ने सगाई कर ली है. उसकी मां ने एक लड़की पसंद की थी, उसी से."
कोरा पर 'ममाज़ बॉय' से जुड़े एक सवाल के जवाब में एक लड़की ने लिखा-
"मैं एक इंडियन गर्ल हूं और मेरी अरैंज मैरिज हुई थी. मेरे एक्स हसबैंड ममाज़ बॉय थे. उनकी मां जो कह देती थीं, वही उनके लिए सबसे अहम होता था. हमारा बच्चा भी हो गया था, फिर भी ये सब तीन साल तक चलता रहा. झगड़े होने लगे, आखिर में हम अलग हो गए."
ऐसे कितने ही एक्सपीरियंस हमें कोरा पर मिले. 'TLC' नाम का एक टीवी नेटवर्क है. इस पर पिछले साल एक शो शुरू हुआ था, टाइटल था- "I Love a Mama's Boy". कुछ ऐसे कपल्स की स्टोरी थी, जिनमें लड़के अपनी मां के बहुत क्लोज़ थे, इतने कि इसका गलत असर उनकी लव लाइफ पर भी पड़ने लगा था.
हम ये नहीं कह रहे कि 'ममाज़ बॉय' होना गलत है. या फिर ये टर्म गलत है. बिल्कुल नहीं है. लेकिन सच ये है कि आपको कभी न कभी बड़ा होना होगा. आप हमेशा मां पर डिपेंड नहीं रह सकते. क्योंकि आपका हर काम हमेशा आपकी मां नहीं करेंगी, और हर फैसला हमेशा वो नहीं ले सकतीं. और जो नखरे आपकी मां सहन करती हैं, उतने नखरे आपकी पत्नी सहन नहीं करेंगी. कभी न कभी आपको खुद की ज़िंदगी की कमान अपने हाथों में लेनी होगी. मां की रिस्पेक्ट करिए, वो ज़रूरी है, लेकिन हर रिलेशन में स्पेस भी उतना ही ज़रूरी है. डॉक्टर अखिल अग्रवाल कहते हैं-
"आपकी लाइफ में मां, पत्नी, बहन और बेटी, ये सब आपके साथ होते हैं. हर किसी के साथ आपका रिश्ता कीमती है. लेकिन किसी एक रिश्ते पर इतना निर्भर न रहें, जिससे बाकी रिश्ते प्रभावित होने लगें."
'पापा की परी' होना भी क्यूट नहीं है
अगर हम लड़कियों के सेंस में बात करें, तो उनके लिए 'पापा की परी' शब्द का इस्तेमाल होता है. या 'डैडीज़ गर्ल'. इन टर्म्स का इस्तेमाल उन लड़कियों के लिए होता है जो अपने पिता के काफी क्लोज़ होती हैं और उनकी लाडली होती हैं. इन टर्म्स के लिए भी डॉक्टर अखिल कहते हैं कि बचपन में अगर आप किसी को डैडीज़ गर्ल बोलें तो वो जस्टीफाई होता है, वो क्यूट लगता है. लेकिन लड़की जब बड़ी हो जाए, तो उसे डैडीज़ गर्ल नहीं रहना चाहिए. इसका कारण भी सेम वही है जो 'ममाज़ बॉय' के लिए है. क्योंकि ज़रूरी नहीं कि जो नखरे आपके पिता ने आपके सहन किए हों, वो आपके पार्टनर भी करें. इससे डेफिनेटली रिश्तों में दरार आ सकती है.
'डैडीज़ गर्ल' होना एक और वजह से खतरनाक है. चूंकि हमारा समाज ऐसा है कि लड़कियों और महिलाओं को पहले ही आश्रित की तरह ट्रीट करता है. अभिभावक और शुभचिंतक होने के नाम पर पहले ही उनपर तमाम बंदिशें लगाता है. ऐसे में 'पापा की परी' या घर की 'प्रिंसेस' होना लड़कियों को इंडिपेंडेंट होने से रोकता है. उनको खुद के फैसले लेने से रोकता है.
बेहद ज़रूरी है कि माता-पिता से होने वाले प्रेम और उनपर आश्रित होना- इन दोनों चीजों को मिलाया न जाए. समझा जाए कि कहीं हम उनके प्रेम और लाड की आड़ में अपना ही जीवन मुश्किल तो नहीं बना रहे.