तीन दिन बाद लड़की की मां ने बच्चे के रोने की आवाज़ सुनी. उसके बाद तुरंत लड़की और बच्चे को अस्पताल ले जाया गया. दोनों को मेडिकल सुपरविज़न में रखा गया है. चूंकि लड़की नाबालिग है तो अस्पताल ने चाइल्ड वेलफेयर कमीशन (CWC) को इस घटना की सूचना दे दी, CWC ने घटना की जानकारी पुलिस को दी. पुलिस ने POCSO एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए, आरोपी लड़के को गिरफ्तार कर लिया है. कितना खतरनाक है इस तरह बच्चे की डिलिवरी करना? डॉक्टर प्रियंका. गायनेकोलॉजिस्ट. LNJP अस्पताल, दिल्ली.
इस मामले में गनीमत ये रही कि लड़की और बच्चे को कोई मेजर हेल्थ ईशूज़ नहीं हुए और दोनों की जान बच गई. लेकिन इस तरह बिना किसी मदद के और घर पर डिलीवरी करना बेहद खतरनाक हो सकता है. इतना कि मां और बच्चे की जान पर भी बन आती है. होम डिलिवरी के खतरे को समझने के लिए हमने बात की डॉक्टर प्रियंका से. वो दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में गायनेकोलॉजिस्ट और IVF एक्सपर्ट हैं. उन्होंने बताया-
मां और बच्चा दोनों हेल्दी रहें इसके लिए ज़रूरी है कि प्रेग्नेंसी, डिलिवरी के दौरान और डिलिवरी के बाद उनका सही ख्याल रखा जाए. बच्चे की डिलिवरी और पोस्ट पार्टम केयर (डिलिवरी के बाद की केयर) अस्पताल में अच्छी तरह से हो पाती है. उसके लिए सारे इक्विपमेंट्स अस्पताल में होते हैं. किसी भी इमरजेंसी को हैंडल करने के लिए डॉक्टर-नर्स वहां पर मौजूद होते हैं. जबकि घर में ये पॉसिबल नहीं है.डॉक्टर प्रियंका ने बताया कि Non institutional delivery में क्या-क्या खतरे हो सकते हैं.
- डिलिवरी के दौरान महिला के शरीर से खून निकलता है. कई बार खून बहुत ज्यादा बह जाता है. इसे पोस्ट पार्टम हेमरेज कहते हैं. ऐसी स्थिति में ब्लड चढ़ाने की ज़रूरत पड़ती है. घर में होने वाली डिलीवरी में इसका पता नहीं चल पाता है. इसकी वजह से महिला की जान जा सकती है. इंडिया में औरतों का एक बड़ा प्रतिशत एनिमिया से ग्रस्त है. इसमें हार्ट फेल तक का खतरा मां पर मंडराता है.
- कुछ औरतों को ब्लड प्रेशर, शुगर की दिक्कत होती है. डिलिवरी के दौरान इन दोनों को मॉनिटर करना बेहद ज़रूरी होता है. ये मॉनिटर करना भी ज़रूरी होता है कि महिला ठीक से हाइड्रेटेड है या नहीं. होम डिलिवरी में मेडिकल एक्सपर्ट की एब्सेंस में ये मॉनिटर कर पाना संभव नहीं होता है.
- डिलिवरी के दौरान या उसके बाद होने वाली मौतों की एक वजह सेप्सिस भी है. सेप्सिस यानी सही साफ-सफाई नहीं होने की वजह से होने वाला इंफेक्शन. डिलिवरी के बाद मां और बच्चा दोनों ही वल्नरेबल होते हैं. उन्हें किसी भी प्रकार के इंफेक्शन से बचाकर रखना बेहद ज़रूरी होता है.
- कई बार बच्चे की पोज़िशन सही नहीं होती है, वो उल्टा पैदा होता है, ऐसे में उसकी गर्दन के फंसने का रिस्क होता है, स्टिल बर्थ का खतरा होता है. अस्पताल में डॉक्टर्स अल्ट्रासाउंड की मदद से पहले ही बच्चे की पोज़िशन देख लेते हैं, इससे उन्हें डिलिवरी को लेकर फैसला लेने में आसानी होती है कि बच्चा नॉर्मल डिलिवर हो पाएगा या सीज़ेरियन करना होगा. ये बच्चे और मां दोनों के लिए ही बेहद ज़रूरी होता है.
- बच्चे के पैदा होते ही उसके वाइटल्स यानी नब्ज़, सांस की गति आदि चेक करते हैं. कोई दिक्कत होने पर, वज़न कम होने पर या फिर प्री-मैच्योर डिलिवरी होने पर उसे तुरंत स्पेशल केयर में रखा जाता है. उसकी ब्रेस्ट फीडिंग का ध्यान रखा जाता है.
आपको बता दें कि इंस्टीट्यूशनल बर्थ यानी अस्पतालों में डिलिवरी को प्रमोट करने के लिए सरकार की तरफ से जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इसके तहत अस्पताल में डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं को और उन्हें अस्पताल तक लेकर जाने वाली ANM/ आशा कार्यकर्ताओं को केंद्र सरकार की तरफ से इंसेंटिव मिलता है.