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कैंसर के अलग-अलग स्टेज का क्या मतलब होता है? इसका कैसे पता चलता है?

Cancer का स्टेज 1, स्टेज 2, स्टेज 3 और स्टेज 4. जानिए कैंसर के ये अलग-अलग स्टेज कैसे तय किए जाते हैं.

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अगर कैंसर का पता समय रहते लग जाए, तो इलाज आसान हो जाता है.

कुछ दिनों पहले टेलीविजन एक्ट्रेस हिना खान को कैंसर (Hina Khan Cancer) होने की खबर आई. पता चला कि हिना खान स्टेज 3 ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) से जूझ रही हैं. उनका इलाज चल रहा है. आपने कई बार सुना होगा कि फलां-फलां को स्टेज 1 कैंसर हुआ है. किसी को स्टेज 4 कैंसर हो गया है. हम जब भी कैंसर की बात करते हैं, इसके स्टेज का भी ज़िक्र आता है. स्टेज 1, स्टेज 2, स्टेज 3 और स्टेज 4. आखिर इनका मतलब क्या है? 

किस स्टेज के कैंसर में इलाज मुमकिन है? कौन-सी स्टेज जानलेवा है और कौन-सी नहीं? डॉक्टर से इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे. ये भी समझेंगे कि कैंसर की कितनी स्टेज होती हैं, ये कैसे तय की जाती हैं? और, हर स्टेज का क्या इलाज है?

Cancer के कितने स्टेज होते हैं?

ये हमें बताया डॉक्टर अरुण कुमार गोयल ने. 

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डॉ. अरुण कुमार गोयल, चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, एंड्रोमेडा कैंसर हॉस्पिटल, सोनीपत

कैंसर का स्टेज बताने के लिए TNM स्टेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. TNM में T का मतलब ट्यूमर है. इससे पता चलता है कि ट्यूमर का साइज़ कितना है. ये T1 से लेकर T4 तक हो सकता है. इसके बाद TNM में N आता है. N यानी नोड. ये बताता है कि हमारे गले या बगल में मौजूद लिम्फ नोड्स (lymph nodes) में कैंसर के सेल्स हैं या नहीं. ये N1 से लेकर N3 तक हो सकता है. फिर TNM में M आता है. M यानी मेटास्टेसिस. ये बताता है कि कैंसर कहीं शरीर के दूसरे हिस्से में तो नहीं फैल गया. अगर M ज़ीरो है तो इसका मतलब कोई बीमारी नहीं है. M1 यानी बीमारी शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल गई है. 

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TNM से कैंसर की स्टेज तय की जाती है, जिसे स्टेज ग्रुप कहते हैं. स्टेज ग्रुप में स्टेज जीरो, स्टेज 1, स्टेज 2, स्टेज 3 और स्टेज 4 होते हैं. स्टेज जीरो यानी कैंसर अभी शरीर के दूसरे हिस्सों में नहीं फैला है. इसे नॉन इनवेज़ियन या इन सीटू कैंसर भी कहते हैं. लेकिन, जब कैंसर में फैलने की क्षमता आ जाए तो वो काफी तेज़ी से फैल सकता है. ये स्टेज 1 से लेकर स्टेज 4 तक होता है. 

कैंसर के अलग-अलग स्टेज का मतलब

स्टेज 1 यानी कैंसर जहां शुरू हुआ है, वहीं पर है और उसका साइज़ छोटा है. 

स्टेज 2 यानी कैंसर जहां शुरू हुआ है, वहां उसका साइज़ थोड़ा बढ़ गया है. कुछ मामलों में ये लिम्फ नोड्स में भी फैल जाता है.

स्टेज 3 यानी कैंसर का साइज़ काफी ज़्यादा बड़ा हो गया है या वो जहां से शुरू हुआ था, अब उसके आसपास फैलने लगा है  या लिम्फ नोड्स में काफी ज़्यादा फैल गया है. 

हालांकि, स्टेज 1, स्टेज 2 और स्टेज 3 में कैंसर शरीर के बाकी अंगों में नहीं फैलता. इसलिए स्टेज 1 और स्टेज 2 को आमतौर पर शुरुआती कैंसर माना जाता है. स्टेज 3 एडवांस्ड या लोकली एडवांस्ड कैंसर है यानी कैंसर बढ़ गया है, लेकिन अभी शरीर के दूसरे अंगों में नहीं फैला है. 

स्टेज 4 को मेटास्टेटिक कैंसर कहते हैं यानी जब वो शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने लगे. आमतौर पर पहले यही माना जाता था कि स्टेज 4 कैंसर का इलाज नहीं हो सकता क्योंकि दूसरे हिस्सों में फैलने के बाद उसे ठीक नहीं किया जा सकता था. हालांकि, अब ऐसा नहीं है. 

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कैंसर के इलाज का पहला तरीका सर्जरी है 

कैंसर का इलाज कैसे होता है?

कैंसर के इलाज के तीन तरीके हैं. पहला तरीका सर्जरी है. दूसरा तरीका रेडियोथेरेपी है. इसमें हाई एनर्जी एक्स-रेज़ का इस्तेमाल किया जाता है. तीसरा तरीका दवाइयां हैं. दवाइयों में कीमोथेरेपी शामिल है. कुछ हॉर्मोन्स की दवाइयां भी दी जाती हैं, टारगेटेड थेरेपी की जाती है और इम्यूनोथेरेपी की दवाइयां भी दी जाती हैं. किस मरीज़ का क्या इलाज होगा, वो उसकी स्टेज और कैंसर के प्रकार पर निर्भर करता है. 

स्टेज 1 कैंसर का इलाज थोड़ा आसान होता है. ज्यादातर मामलों में सर्जरी या सिर्फ रेडिएशन से इलाज हो जाता है. इसमें सक्सेस रेट 90 परसेंट से ज्यादा है. ये बढ़कर 95 से 99 परसेंट भी जा सकता है.

स्टेज 2 कैंसर का शुरुआती चरण है. इसमें भी इलाज काफी सफल रहता है. इसका सक्सेस रेट 80 से 90 फीसदी है.  

स्टेज 3 में इलाज थोड़ा मुश्किल हो जाता है. इस स्टेज के कई मामलों में सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी, तीनों का ही इस्तेमाल करना पड़ सकता है. कई बार पहले कीमोथेरेपी देकर फिर ऑपरेशन किया जाता है या रेडियोथेरेपी दी जाती है, या फिर दोनों का ही इस्तेमाल होता है. स्टेज 3 में सक्सेस रेट 50 से 65 परसेंट के आसपास रहता है.

स्टेज 4 को पहले लाइलाज माना जाता था और इसका सक्सेस रेट 0 माना जाता था. लेकिन, अब स्टेज 4 में भी 5 से 10 फीसदी मरीज़ों की बीमारी जड़ से खत्म कर दी जाती है. अगर बीमारी जड़ से खत्म नहीं भी होती, तो भी मरीज़ लंबी जिंदगी जी सकते हैं.

साफ है, अगर कैंसर का पता समय रहते लग जाए, तो इलाज आसान हो जाता है. अगर देर से चले, तो कैंसर शरीर के बाकी अंगों में फैल जाता है. ऐसे में इलाज मुश्किल होता है, पर नमुमकिन हरगिज़ नहीं. इसलिए ज़रूरी है जागरूक होना और कैंसर के लक्षणों को पहचानना.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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