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"नाबालिग बच्ची के पीठ और सिर पर 'बड़ी हो गई है' कहकर हाथ फेरना यौन उत्पीड़न नहीं" - बॉम्बे हाईकोर्ट

निचली अदालत ने आरोपी को 6 महीने की सजा सुनाई थी.

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सांकेतिक तस्वीर (साभार- AFP)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल में यौन उत्पीड़न के एक मामले में फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि अगर एक व्यक्ति किसी नाबालिग लड़की की पीठ और सिर पर बिना गलत इरादे से हाथ फेरकर कहता है कि "वो बड़ी हो गई है" तो ये यौन उत्पीड़न के दायरे में नहीं आएगा. यह कहते हुए कोर्ट ने मयूर येलोर नाम के एक आरोपी को सजा से मुक्त कर दिया. हाई कोर्ट में जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल जज की बेंच ने फैसले में कहा कि लड़की का यौन उत्पीड़न हुआ, इसके लिए वकील ने कोई साक्ष्य पेश नहीं किया जिससे पता चले कि आरोपी का ऐसा कोई इरादा था.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला 11 साल पुराना था. तब आरोपी 18 साल का था और पीड़ित लड़की 12 साल की थी. आरोपी मयूर एलोर के खिलाफ उसी दौरान यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज हुआ था. शिकायत के मुताबिक, 15 मार्च 2012 को पीड़ित लड़की के घर गया था, जब वो अकेली थी. आरोपी उसके घर कुछ डॉक्यूमेंट्स देने गया था. घर में आने के बाद उसने लड़की को पानी लाने के लिए कहा और पास रखी कुर्सी पर बैठ गया. लड़की ने उसे पानी दिया और अपना होमवर्क करने लगी. थोड़ी देर बाद आरोपी कुर्सी से उठकर उसके नजदीक आया, उसकी पीठ और सिर पर हाथ को फेरा और कहा कि वह बड़ी हो गई है.

निचली अदालत ने 6 महीने की सजा सुनाई

शिकायत में कहा गया था कि नाबालिग लड़की ने उस दौरान चिल्लाकर मदद मांगी थी. पड़ोस के लोग घर पहुंचे तो आरोपी को पकड़ा गया. लड़की की मां को फोन कर बुलाया गया. मां के आने के बाद उसे जाने दिया गया, क्योंकि वो उसे पहचानती थी. बाद में लड़की की मां चेतावनी देने के लिए उसके घर गई, लेकिन आरोपी ने उन्हें धमकाया था. इसके बाद मां ने लड़के के खिलाफ केस दर्ज करवाया. मामले में सुनवाई हुई तो मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उसे दोषी पाया और 6 महीने की सजा सुनाई. इसे सेशंस कोर्ट ने भी बरकरार रखा. इसी फैसले को आरोपी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

हाई कोर्ट ने मामले में 10 फरवरी को फैसला सुनाया था. लेकिन फैसले की कॉपी 13 मार्च को सामने आई. जस्टिस भारती डांगरे ने सजा को रद्द करते हुए कहा कि ऐसा नहीं लगता कि आरोपी का कोई गलत इरादा था, बल्कि उसकी बात से लगता है कि उसने उसे बच्ची के तौर पर ही देखा था. कोर्ट ने कहा, 

“महिला के साथ यौन उत्पीड़न करने के लिए, वैसी मंशा रखना महत्वपूर्ण है. 12 साल की पीड़िता ने भी किसी तरह के गलत इरादे की बात नहीं की. हालांकि उसने कहा कि उसे कुछ असहज महसूस हुआ था.”

जस्टिस डांगरे ने कहा कि दोनों अदालतों ने फैसला सुनाने में गलती की. अभियोजन पक्ष के पास किसी तरह का सबूत नहीं है जिससे आरोप साबित हो सके. कोर्ट ने कहा कि मामले को पहली बार में देखने से लगता है कि आरोपी ने बिना किसी गलत नियत के लड़की के सिर और पीठ पर हाथ फेरा था.

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