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सिर्फ अनुष्का क्यों, प्रेग्नेंसी में देश की हर महिला आरामदायक कपड़े क्यों नहीं पहन सकती?

औरतों को पेट पर पेटीकोट और सलवार के नाड़े कसना क्यों जरूरी है?

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Anushka ने अपनी Maternity ड्रेस सेल पर लगाई है. उन्होंने इसी साल जनवरी में बेटी वामिका को जन्म दिया है.
अनुष्का शर्मा. इस साल जनवरी में मां बनी हैं. बेटी का नाम उन्होंने वामिका रखा है. प्रेग्नेंसी के दौरान अनुष्का ने कई सारी मैटरनिटी ड्रेसेस खरीदी थीं. पर अब उन्हें उन ड्रेसेस की ज़रूरत नहीं है. तो उन्होंने उन ड्रेसेस को रीसेल करने का फैसला किया है. नहीं, नहीं. ये वो पैसों के लिए नहीं कर रही हैं. कपड़े की बिक्री से मिले पैसे स्नेहा फाउंडेशन को जाएंगे. और इन पैसों से फाउंडेशन मैटरनल हेल्थ के लिए काम करेगा. ये तो हुई एक बात. दूसरी बात ये है कि अनुष्का सर्कुलर फैशन को सपोर्ट करने के लिए ऐसा कर रही हैं. पर ये Circular Fashion होता क्या है? सर्कुलर फैशन यानी किसी कपड़े, जूते या एक्सेसरी को अपने इस्तेमाल के बाद आगे पास ऑन कर देना. और ये तब तक करते जाना जब तक वो डिस्कार्ड करने लायक हो जाए. मतलब जब तक कोई कपड़ा पोछा बनाने लायक न हो जाए तब तक. इसे लेकर अनुष्का ने एंटरटेनमेंट टाइम्स से बात की. उन्होंने कहा
"सर्कुलर फैशन को अपनाकर हम पर्यावरण पर बड़ा सकारात्मक असर डाल सकते हैं. अगर शहरों में रहने वाली एक प्रतिशत प्रेग्नेंट महिलाएं भी अगर नए की जगह इस्तेमाल किया हुआ एक मैटरनिटी ड्रेस भी खरीदती हैं, तो हर साल हम कम से कम इतना पानी बचा सकते हैं जो एक व्यक्ति 200 साल तक पी सकता है! इस तरह एक व्यक्ति का छोटा सा कदम एक बड़ा बदलाव ला सकता है."
Anushka Sharma Virat Kohli Vamika बेटी वामिका के साथ ये पहली फोटो थी जो विराट कोहली और अनुष्का शर्मा ने सोशल मीडिया पर डाली थी.
कॉमन ऑब्जेक्टिव
.  ये फैशन इंडस्ट्री का एक बिजनेस नेटवर्क है. दुनिया के कई देशों में काम करता है. इसके मुताबिक, रुई उगाने से लेकर कपड़ों को डाय करने तक फैशन इंडस्ट्री में भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है. इसके मुताबिक,
- एक किलो रुई उगाने में करीब 10 हज़ार लीटर पानी लगता है. - कॉटन या पॉलिएस्टर या किसी और मटेरियल के एक किलो धागा बनाने, उसे रंगने और उसे फिनिशिंग देने में 100-150 लीटर पानी लगता है. - इस तरह कॉटन की केवल एक शर्ट बनाने में करीब तीन हज़ार लीटर पानी लगता है.
यानी अपने मैटरनिटी वाले कपड़े रीसेल करके, उससे मिलने वाले रुपयों से अनुष्का न केवल ज़रूरतमंद लोगों की मदद करेंगे. बल्कि ये पर्यावरण को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा और ज़रूरी कदम है.

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वैसे तो सर्कुलर फैशन हर तरह के कपड़ों, जूतों और एक्सेसरीज़ के लिए काम करता है. पर अनुष्का ने अपनी मैटरनिटी ड्रेस को रीसेल के लिए डाला है. तो क्यों न हम भी आज मैटरनिटी वाले खास आरामदायक कपड़ों पर बात कर लें. प्रेग्नेंसी में आपके आसपास के लोग आपका थोड़ा ज्यादा ख्याल रखने लगते हैं. आपको थोड़ा ज्यादा प्यार करने लगते हैं. आपको थोड़ी ज्यादा हिदायतें देने लगते हैं, खानपान को लेकर. वज़न उठाने, झुकने को लेकर. आपके आराम का खास ख्याल रखा जाने लगता है. लेकिन, इन सबके बीच जो कंफर्टेबल कपड़ों को सबसे ज्यादा नज़रअंदाज़ किया जाता है.
आप Maternity Dress गूगल करेंगे और तमाम ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट की लिस्ट खुल जाएगी. इन वेबसाइट्स पर दिखेंगी अलग-अलग लेंथ की, अलग-अलग डिज़ाइन की मैटरनिटी ड्रेस. सिल्क, कॉटन जिस फैब्रिक में चाहिए उसमें. जिस बजट में चाहिए उसमें. अपैरल रिसोर्स डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में भारत का मैटरनिटी वियर मार्केट 2000 करोड़ का था. जो हर साल 15 से 17 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहा है. एक वक्त था जब औरतें टमी छिपाने के लिए पति की लूज़ टी शर्ट का सहारा लेती थीं, घर में रहने वाली औरतें नाइट गाउन्स का सहारा लेती थीं. लेकिन अब वो ऐसे कपड़े लेना प्रिफर करती हैं जो खास प्रेग्नेंसी की ज़रूरतों के हिसाब से बने हैं. इसकी वजह क्या है? बड़ी वजह है आराम. तमाम डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट इस बात पर ज़ोर देते हैं कि महिलाओं को प्रेग्नेंसी में आरामदेह कपड़े पहनने चाहिए. ऐसे कपड़े जिन्हें पहनने-उतारने में उन्हें खास दिक्कत न हो. जिनका रख-रखाव आसान हो. शरीर ऑलरेडी कई बदलावों से गुज़र रहा होता है, हॉर्मोनल चेंजेस की वजह से मन भी खराब होता है. ऐसे में टाइट कपड़े और ज्यादा परेशान कर सकते हैं. दूसरी बड़ी वजह है, स्टाइल को लेकर महिलाओं का कॉन्शियस होना. वो महिलाएं जो दफ्तर जाती हैं. उनके लिए आराम के साथ-साथ ज़रूरी होता है कि वो प्रेज़ेंटेबल भी लगें. इस वजह से मैटरनिटी वियर का मार्केट तेज़ी से बढ़ रहा है. मैटरनिटी वियर में केवल मैटरनिटी गाउन नहीं आते, अलग-अलग तरह की ड्रेसेस और अंडर गारमेंट्स भी आते हैं, जो प्रेग्नेंसी और पोस्ट-पार्टम की खास ज़रूरतों के लिए बनते हैं.
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प्रेग्नेंसी में खाने-पीने का ख्याल रखने के साथ-साथ आरामदायक कपड़े पहनना भी बहुत ज़रूरी है.
मार्केट तेज़ी से बढ़ने की जानकारी हमें मिल गई. डेटा भी हमने देख लिया. लेकिन फिर भी जब हम अपने आस-पास देखते हैं तो बहुत कम प्रेग्नेंट औरतें इस तरह के कम्फर्ट वियर में दिखती हैं. भाभियां, दीदियां, पड़ोस की कोई महिला, दफ्तर की कोई कलीग. बहुत कम ऐसा होता है कि वो खास मैटरनिटी क्लॉथ्स में दिखती हों. आखिर ऐसा क्यों है? ये समझने के लिए हमने बात कि कुछ महिलाओं से, जो प्रेग्नेंट रह चुकी हैं और उनसे पूछा प्रेग्नेंसी के दौरान उनके कपड़ों की चॉइस के बारे में.
मेरी बात भारती (बदला हुआ नाम) से हुई. वो छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में रहती हैं. सरकारी कर्मचारी हैं. उनका दो साल का बेटा है. उन्होंने बताया,
'मैं प्रेग्नेंसी के टाइम घर में तो आरामदायक कपड़े पहनती थी. कोई गाउन पहन लिया या लूज़ टीशर्ट. लेकिन ऑफिस जाने के लिए लूज़ कुर्ती के साथ लेगिंग्स या पलाज़ो पहनना प्रिफर करती थी. पेट के थोड़ा नीचे से पहनती थी. ताकि पेट पर प्रेशर न पड़े. साड़ी एक दो बार ट्राई किया पर वो बिल्कुल भी कंफर्टेबल नहीं होता था क्योंकि साड़ी के लिए पेटिकोट थोड़ा टाइट ही बांधना पड़ता है. प्लस वेट बढ़ा होता है तो ब्लाउज़ भी टाइट लगता है.'
भारती ने बताया कि उनका काम ऐसा है कि उन्हें रोज़ कई लोगों से मिलना पड़ता है. साथ ही वहां का माहौल भी ऐसा नहीं है कि वो मैटरनिटी ड्रेस वगैरह पहनने के बारे में सोचतीं. इसलिए जो कपड़े वो रेगुलर पहनती हैं, उन्हीं में थोड़ा फेरबदल करके वो प्रेग्नेंसी के दौरान पहनती थीं.
राजस्थान में हुए इस मामले के बाद मानवाधिकार आयोग भी हैरान है. भारत में ज्यादातर औरतों को प्रेग्नेंसी के दौरान साड़ी ही पहनना पड़ता है. टाइट पेटिकोट बांधना और टाइट ब्लाउज़ पहनना प्रेग्नेंसी में खासी उलझन पैदा करता है.. (सांकेतिक फोटो)

मेरी बात गाज़ियाबाद में रहने वाली प्रतिभा भारद्वाज से हुई. वो डेली हंट में काम करती हैं. उनकी सात महीने की एक बेटी है. और वो अपने ससुराल वालों के साथ ही रहती हैं. उन्होंने बताया,
'मैं लॉकडाउन के दौरान ही प्रेग्नेंट हुई. वर्क फ्रॉम होम चल रहा था तो ऑफिस में क्या पहनें वाला सीन हुआ ही नहीं. मेरे इन-लॉज़ काफी सपोर्टिव हैं हर चीज़ को लेकर. कपड़ों को लेकर कोई ईशू कभी नहीं हुआ उनकी तरफ से. मैं घर पर वैसे भी आरामदायक कपड़े ही पहनती हूं. तो प्रेग्नेंसी के लिए मैंने कॉटन की लूज़ ड्रेसेस खरीदी थीं.'
वहीं, दिल्ली में रहने वाली खुशबू से मेरी बात हुई. उनका बेटा एक साल का है. वो गवर्नमेंट एम्प्लॉयी हैं. खुशबू ने बताया,
"पहले मैं ऑफिस में जींस टॉप या कुर्ती वगैरह पहनकर ही जाती थी. प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में बड़े हैज़िटेशन के साथ मैंने ड्रेस पहनकर जाना शुरू किया. शुरुआत में कुछ दिन अजीब लगा, लेकिन फिर उसी में आराम लगने लगा. प्रेग्नेंसी के दौरान जब मेरे इन लॉज़ आए, तब भी मैंने घर पर भी ड्रेसेस ही पहनी थीं. हालांकि, मैंने देखा है कि मेरे ऑफिस की ही कुछ औरतों ने प्रेग्नेंसी में ढीले कुर्ते बनवाए थे, उनका कहना होता था कि बाद में ऑल्टर करवाकर पहन लेंगी. इसका बड़ा रीज़न ये था कि वो गाउन या ड्रेस पहनने को लेकर सहज नहीं थीं या फिर उनके घर वाले इसमें सहज नहीं थे."
अक्सर प्रेगनेंट औरतों को राय के नाम पर कुछ ऐसी चीज़ें बताई जाती हैं जो सही नहीं होतीं. सांकेतिक फोटो.
दिल्ली में रहने वाली प्रीति एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. अपने पति और चार साल की बेटी के साथ रहती हैं. वो अभी प्रेग्नेंट हैं. वो बताती हैं,
"बेटी के टाइम पर मैंने तीन-चार मैटरनिटी ड्रेस खरीदे थे. नो डाउट वो बहुत आरामदायक होते हैं. पर केवल कुछ महीनों के लिए आप कितने कपड़े खरीदोगे? बाद में वो काम भी नहीं आते. और आप रोज़ वही तीन चार कपड़े रिपीट करके भी नहीं जा सकते. तो उन ड्रेसेस के साथ मैंने कुछ लूज़ कुर्तियां खरीद ली थीं. वो ही बदल-बदलकर पहनकर जाती थी. इस बार तो वर्क फ्रॉम होम ही चल रहा है, तो मैं घर के आरामदायक कपड़े पहनकर रहती हूं. इन लॉज़ आते हैं तो लूज़ कुर्ती और लैगिंग पहनकर दुपट्टा डाल लेती हूं."
इसी तरह मेरी बात दुर्ग में रहने वाली एक हाउसवाइफ रितिका से हुई. उनकी 6 महीने और चार साल की दो बेटियां हैं. रितिका जॉइंट फैमिली में रहती हैं. उन्होंने बताया,
'परिवार में आप क्या पहनते हैं, कैसे रहते हैं इसका बहुत फर्क पड़ता है. गाउन भी आप रात में सबके सोने के बाद पहन सकते हो. वो भी सुबह सबके उठने से पहले बदलना पड़ता है. पूरे टाइम साड़ी पहनकर रहना पड़ता है. मायके जाती हूं तब सूट या गाउन वगैरह पहनकर रहती हूं.'
क्या टाइट नाड़ा बांधना प्रेग्नेंट महिला और बच्चे के लिए नुकसानदेह नहीं है? ये सवाल मैंने पूछा डॉक्टर प्रियंका से. जो दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में गायनेकोलॉजिस्ट हैं. डॉक्टर प्रियंका ने बताया,
'मेडिकली देखा जाए तो नाड़ा बांधने से कोई नुकसान बच्चे या मां को नहीं होता है. लेकिन प्रेग्नेंसी में पेट फूला होता है. ऐसे में उस पर टाइट नाड़ा बांधने पर रैशेस आ सकते हैं. खुजली हो सकती है. साथ में वो बहुत अनकम्फर्टेबल होता है. हालांकि, गवर्नमेंट सेटअप में हमारे पास ऐसे मरीज़ आते हैं जिन्हें हम गाउन या मैटरनिटी ड्रेस खरीदने का सुझाव भी नहीं दे सकते. वो उनके लिए एक्स्ट्रा खर्च होगा. मरीज़ों के चेकअप के दौरान मैंने पाया है कि ज्यादातर साड़ी पहनने वाली औरतें पेटीकोट टमी के ऊपर पहनने लगती हैं. वहीं, सलवार पहनने वाली औरतें टमी के नीचे नाड़ा बांधने लगती हैं. ये उनका अपना तरीका है जो साधन उपलब्ध है उसी में अपना कम्फर्ट ढूंढने का.'
तो आपने उन महिलाओं के अनुभव पढ़े जो प्रेग्नेंट रह चुकी हैं. उनमें से कुछ का कहना है कि उनके पास ऑप्शन ही साड़ी या सलवार-कमीज़ के अलावा कोई ऑप्शन ही नहीं होता है. इसकी वजह पारिवारिक भी है, माहौल भी जिम्मेदार है और आर्थिक वजहें तो हैं ही. आखिर में मैं इतना ही कहूंगी कि अगर आपके आसपास कोई प्रेग्नेंट महिला है, तो उनके खानपान के साथ-साथ हर एंगल से उनके आराम का भी ख्याल रखें.