हाल में इनके द्वारा बनाई गई इनके पति की पेंटिंग लगभग 11 करोड़ में बिकी. कैनवास पर ऑइल पेंटिंग वाली ये तस्वीर अमृता शेरगिल ने अपने ससुराल वालों को उपहार में दी थी. जब वो हंगरी छोड़कर वापस भारत आ रही थीं. हमेशा हमेशा के लिए. इस तस्वीर को आर्ट कलेक्टर मनोज इसरानी ने खरीदा. ऑनलाइन हुई इस नीलामी में सबसे ज्यादा कीमत इसी पेंटिंग की बताई जा रही है. लेकिन इस तस्वीर में दिख रहे डॉक्टर विक्टर इगन की कहानी क्या है? और कौन हैं इसे बनाने वाली अमृता शेरगिल, जिन्हें भारत ही नहीं, दुनिया भर की सबसे प्रभावी महिला कलाकारों में से एक कहा जाता है?

ऐ रंगरेज मेरे
कला से अमृता का वास्ता छुटपन में ही पड़ गया था. छोटी-सी उम्र में पियानो और वायलिन सीखने लगी थीं. शुरुआती बचपन हंगरी में बीता. लेकिन साल 1921 में इनका परिवार हंगरी से भारत शिफ्ट हो गया. शिमला में. वहीं रहकर अमृता ने प्रोफेशनली पेंटिंग सीखना शुरू किया. वैसे तो पांच साल की बच्ची थीं, तभी से ब्रश और कैनवस का चस्का लग गया था. लेकिन बाकायदा ट्रेनिंग आठ साल की उम्र से शुरू की उन्होंने, ऐसा पढ़ने को मिलता है.
ओ नादान परिंदे घर आ जा
बीच में अमृता ने इटली और फ्रांस में रहकर भी पेंटिंग सीखी और अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई. पेरिस में ख्याति पा चुकी थीं. साल 1932 में उनकी बनाई हुई पेंटिंग 'यंग गर्ल्स' बहुत लोकप्रिय हुई थी वहां. इसने उन्हें गोल्ड मेडल भी दिलाया. लेकिन कुछ अधूरा सा लग रहा था उन्हें. पेरिस में उनके एक प्रोफ़ेसर ने सलाह दी कि उनकी पेंटिंग्स का मिजाज़ पश्चिमी नहीं है. पूर्व की तरफ उन्हें बेहतर माहौल मिलेगा. इसके बाद साल 1934 में अमृता भारत लौटीं. इसके चंद साल बाद एक इंटरव्यू के दौरान अमृता ने कहा था,
"जैसे ही मेरे कदम भारत की ज़मीन पर पड़े, मेरी पेंटिंग में न सिर्फ विषय और आत्मा का बदलाव आया, बल्कि तकनीकी तौर पर भी मेरी अभिव्यक्ति भारतीय हो गई. मुझे अपने कलात्मक ध्येय का एहसास हुआ. भारतीयों, ख़ास तौर पर गरीब भारतीयों की जिंदगी को उकेरना. अनंत समर्पण और धैर्य की शांत तस्वीरें पेंट करना. कटावदार भूरे शरीरों को कागज़ पर उतारना. जो अपनी अवांछनीयता में भी खूबसूरत थे. उनकी उदास आंखों ने जो मुझ पर असर डाला था, मैं उसे कैनवास पर उतारना चाहती थी."अपनी एक दोस्त को लिखी गई चिट्ठी में अमृता ने लिखा था,
"मैं सिर्फ भारत में पेंट कर सकती हूं. यूरोप पिकासो, मटीस, ब्रौक का है. भारत सिर्फ और सिर्फ मेरा है."लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लालअमृता की पेंटिंग 'यंग गर्ल्स'. (तस्वीर साभार: नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, नई दिल्ली)
भारत लौटने के बाद से अमृता ने गांव और गंवई जीवन पर फोकस करना शुरू किया. उनकी बनाई हुई पेंटिंग्स के अधिकतर विषय वो लोग थे जिनके पास देने को कुछ नहीं था. सिवाय अपनी पनीली आंखों में थमे हुए भाव, और भूरी चमड़ी के. ऐसी चमड़ी, जिसके लिए एक सदी की गुलामी ने लोगों में एक अनचीन्ही नफरत भर दी थी. लेकिन अमृता ने वो भूरी चमड़ियां अपने कैनवास पर उतारीं. बेझिझक. अपने नग्न, उद्दाम रूप में.

साल 1937. इस दौरान अमृता अपने कलात्मक करियर की ऊंचाई पर थीं. इस दौरान उनकी कई पेंटिंग्स लगातार लोकप्रिय हुईं. दिल्ली में भी उनकी एग्जिबिशन लगी. कहते हैं कि नेहरू भी उनके इस एग्जिबिशन को देखने आए थे. दोनों की मुलाक़ात हुई. आपस में चिट्ठियों का लेनदेन भी होता था. कला की इतिहासकार यशोधरा डालमिया ने अमृता शेरगिल की जीवनी लिखी है. इसमें वो बताती हैं,
"नेहरू और अमृता के बीच का रिश्ता ठीकठाक आंकना मुश्किल है. इसलिए भी क्योंकि नेहरू की लिखी हुई कई चिट्ठियां उनके परिवार ने जला दी थीं, जब अमृता बुडापेस्ट में शादी करने गई हुई थीं तब."डालमिया लिखती हैं, इस पर नाराज़ होकर अमृता ने अपने पिता को चिट्ठी लिखी और कहा,
"मैं वो चिट्ठियां इसलिए छोड़कर नहीं गई थी कि वो मेरे बुरे अतीत की खतरनाक गवाह थीं बल्कि इसलिए छोड़ आई थी क्योंकि मैं अपना सामान और भारी नहीं करना चाहती थी. लेकिन मुझे लगता है कि अब मुझे एक सादा बुढ़ापा गुजारना पड़ेगा, जिसमें मुझे पुराने प्रेमपत्र पढ़ने का मनोरंजन भी हासिल नहीं होगा."नेहरू से इतनी गहरी दोस्ती होने के बावजूद अमृता ने कभी उनकी तस्वीर नहीं बनाई. इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि नेहरू ‘कुछ ज्यादा ही सुंदर’ दिखते थे.

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
साल 1938 में अमृता ने डॉक्टर विक्टर ईगन से शादी की. वो हंगरी की देना में डॉक्टर हुआ करते थे. शादी बुडापेस्ट में हुई, और उसके बाद वो अपने पैतृक शहर गोरखपुर आ गईं. वहां पर सराय नाम की जगह थी, जो चौरी-चौरा में पड़ती है. वहीं इनका घर था. अमृता की पेंटिंग्स की तारीफ बहुत होती थी, लेकिन उस समय उनकी पेंटिंग्स के खरीददार बहुत कम थे.
गोरखपुर से साल 1941 में पति-पत्नी लाहौर शिफ्ट हो गए जो अविभाजित भारत में पड़ता था. वहीं पर अमृता का एक बहुत बड़ा शो होने वाला था. लेकिन उस शो से पहले ही अमृता चल बसीं. 5 दिसंबर को. कई जगह पढ़ने को मिलता है कि इसके पीछे वजह एक गर्भपात था, जो ढंग से नहीं हो पाया. उसकी वजह से अमृता की जान गई. अमृता की मां ने बाद में विक्टर पर आरोप लगाए कि उन्होंने अमृता की हत्या की है. लेकिन अमृता को 28 साल की छोटी सी उम्र में चले जाना था. सो वो चली गईं. अपने पीछे कई कलाकृतियां छोड़ गईं.

आज भारत सरकार ने उनकी बनाई कलाकृतियों को राष्ट्रीय कला धरोहर घोषित कर दिया है. इसी वजह से अमृता की पेंटिंग्स देश से बाहर नहीं ले जाई जा सकतीं. उनकी कुल जमा दस से भी कम पेंटिंग्स देश से बाहर बेची गई हैं. अधिकतर पेंटिंग्स नई दिल्ली की नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में लगी हैं. साल 2013 को यूनेस्को ने उनकी जन्मशती के साल के तौर पर याद किया, और उसे नाम दिया- अमृता शेरगिल अंतरराष्ट्रीय दिवस. दिल्ली में उनके नाम पर एक सड़क भी है.
लेकिन अमृता इन पेंटिंग्स से आगे भी बहुत कुछ हैं. कई आर्टिस्ट्स आज भी उनसे प्रेरणा लेते हैं. एक ऐसी कलाकार से, जिसे बचपन में इसलिए स्कूल से निकाल दिया गया था क्योंकि उसने खुद को नास्तिक कहा था. ऐसी लड़की, जो पुरुषों और स्त्रियों से समान प्रेम करती थी. एक ऐसी आइकन से, जिसे लोग भारत की फ्रीडा काहलो भी कहते हैं.