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क्या लड़कियां पीरियड के दर्द के नाम पर बहाना करती हैं?

Menstrual Cramps को लेकर अक्सर लड़कियों को सिखाया-समझाया जाता है कि उन्हें उसे सहने की आदत डालनी चाहिए. एक तो पीरियड पर बात ही एक टैबू है, उस पर औरतें जब पीरियड में होने वाले दर्द का जिक्र करती भी हैं तो कई लोग उसे बहाना मान लेते हैं.

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चीन की खिलाड़ी झेंग किनवेन चौथे राउंड तक पहुंचीं. मैच के बीच उनको तेज़ मेंस्ट्रुअल क्रैम्पस होने लगे और वो ठीक से खेल नहीं पाईं

स्वीटी जब 15 साल की थी तो अपनी चाची के घर गई थी. गर्मी की छुट्टियां मनाने. उसे बड़ा मज़ा आता अपनी चचेरी बहनों के साथ गोबर से आंगन लीपने में, बाहर से पानी भरकर लाने में. वो खूब मन से ये सारे काम करती. एक दिन स्वीटी को पीरियड्स आ गए. वो दर्द में थी, बिस्तर से उठ नहीं पा रही थी. इतने में चाची ताना देते हुए बोली- दुनिया में यही अनोखी हैं जिनको माहवारी आई है, हमको भी होता था, पर हम ऐसे नखरे नहीं करते थे. उसके बाद स्वीटी को लगने लगा कि जिस तरह पीरियड आना नैचुरल है, उसी तरह पीरियड का दर्द होना. उसे लगने लगा कि पीरियड में होने वाला दर्द सहते हुए भी सारे काम करना उसके लिए ज़रूरी है.

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आज बात महिलाओं को पीरियड में होने वाले दर्द की. इस दर्द पर बात करने की वजह है फ्रेंच ओपन टूर्नामेंट. टेनिस के सबसे बड़े टूर्नामेंट्स में से एक. चीन की खिलाड़ी झेंग किनवेन चौथे राउंड तक पहुंचीं. मैच के बीच उनको तेज़ मेंस्ट्रुअल क्रैम्पस होने लगे और वो ठीक से खेल नहीं पाईं. वो हार गईं और टूर्नामेंट से बाहर हो गईं. हार के बाद झेंग ने कहा,

"मेरे पेट में इतना दर्द था कि मैं टेनिस नहीं खेल पा रही थी. ये लड़कियों की परेशानी है. पहला दिन हमेशा इतना मुश्किल होता है, और फिर आपको खेलना होता है. मुझे हमेशा पहले दिन बहुत दर्द होता है और मैं नेचर के खिलाफ नहीं जा सकती. काश मैं खेलते वक्त मर्द हो पाती, मैं सच में चाहती हूं कि काश मैं मर्द होती तो मुझे इससे जूझना नहीं पड़ता."

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चीन की खिलाड़ी झेंग किनवेन

झेंग का ये स्टेटमेंट आया और कई जगहों पर उनकी आलोचना शुरू हो गई. लोग कहने लगे कि खराब खेल की वजह से बाहर हुईं और पीरियड के दर्द का बहाना बना रही हैं. पर 30 मई को मैच के पहले सेट में झेंग ने इगा को 6-7 से टक्कर दी थी, माने वो आगे थीं. अगले सेट के बीच में उन्हें मेडिकल इमरजेंसी के चलते ब्रेक लेना पड़ा और उसके बाद वो खेल ही नहीं पाईं, अगले दो सेट में 6-0, 6-2 का स्कोर रहा और वो हार गईं.

आमतौर पर जब कोई लड़की कहती है कि उसे पीरियड का दर्द हो रहा है, वो दफ्तर नहीं आ पाएगी या घर के काम नहीं कर पाएगी तो उसे पिछले जनरेशन की औरतों के उदाहरण दिए जाते हैं. कि देखो हमारी मां ने तो कभी छुट्टी नहीं ली, हमको तो कभी पता भी नहीं चलता था कि उनके ‘महीने के वो दिन’ कब आते हैं. कभी किसी खिलाड़ी को देखा है, पीरियड के दर्द के नाम पर ब्रेक लेते. सच ये है कि औरतों की इन दोनों ही प्रजातियों के पास कभी पीरियड में रेस्ट करने का ऑप्शन ही नहीं रहा. मांओं के हिस्से में हमेशा रही घर की पूरी जिम्मेदारी, खाना नहीं बनाएंगी तो पति-बच्चे खाएंगे क्या, घर बिखरा पड़ा है कोई आएगा तो क्या कहेगा. और वो काम में लगी रहीं, पीरियड के दर्द में, बुखार में, शरीर के दर्द में.

दूसरी प्रजाति है स्पोर्ट्स पर्सन्स की. क्या उनके पास पीरियड में रेस्ट करने का ऑप्शन रहा? हमारे स्पोर्ट्स एडिटर सूरज बताते हैं कि पीरियड में होने वाले दर्द को लेकर किसी भी खेल अथॉरिटी में कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है. इसे वैसे ही ट्रीट किया जाता है जैसे किसी इंजरी को. माने अगर कोई महिला खिलाड़ी पीरियड में खेल रही है तो बढ़िया. अगर पीरियड के दर्द की वजह से नहीं खेल सकती तो उसे वैसे ही ट्रीट किया जाएगा जैसे किसी इंजर्ड खिलाड़ी को किया जाता है. इसके पीछे लॉजिक ये है कि एक खिलाड़ी के लिए शिड्यूल नहीं बदला जा सकता है. कई बार प्लेयर्स पीरियड के दर्द के बावजूद खेलने उतरती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका महिला होना, उनके खेल में बाधा नहीं बनना चाहिए.

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झेंग के केस में कुछ लोगों ने ये सवाल भी उठाया कि ऐसे कैसे पहले सेट में एकदम ठीक थीं, और उसके बाद इतनी हालत खराब हो गई. असल में पीरियड का दर्द हर शरीर में अलग होता है. कई लड़कियों को बिल्कुल दर्द नहीं होता. उनके पीरियड वाले दिन भी वैसे ही गुज़रते हैं जैसे आम दिन. लेकिन कई लड़कियों को इतना दर्द होता है कि दवा लेकर भी उन्हें आराम नहीं मिलता, कई को इस हद तक दर्द होता है कि उन्हें अस्पताल तक जाना पड़ता है. इंजेक्शन लेना पड़ता है, उसके बाद आराम होता है. कई लोगों को एपिसोड्स में पीरियड का दर्द होता है. माने अचानक कुछ मिनटों के लिए तेज़ दर्द हुआ और फिर सब एकदम नॉर्मल हो गया. माने हर शरीर में अलग दर्द.

पर सवाल तो उठता है कि पीरियड का दर्द होता क्यों है, अलग-अलग औरतों को अलग-अलग दर्द क्यों होता है? ये समझने के लिए हमने बात की डॉक्टर प्रियंका से. डॉक्टर प्रियंका गायनेकलॉजिस्ट हैं. उन्होंने बताया,

अमूमन औरतों को दो तरह का दर्द होता है. कंजेस्टिव और स्पास्मैटिक पेन. स्पास्मैटिक पेन पीरियड के दौरान ही होता है. पीरियड के दौरान शरीर में जो हॉर्मोन्स रिलीज़ होते हैं उनसे कॉन्ट्रैक्शन होता है और उसकी वजह से दर्द होता है. इसे ही डिस्मेनोरिया कहते हैं. इसके लिए ही एंटी स्पास्मैटिक दवाएं दी जाती हैं. कंजस्टिव पेन पीरियड से पहले शुरू होता है और कुछ औरतों में पीरियड खत्म होने के बाद तक भी रहता है. ये दर्द तब होता है जब किसी महिला को कोई डिसऑर्डर हो, जेनाइटल एरिया में टीबी हो या यूटरस और उसके आसपास कोई दिक्कत हो, कोई एक्स्ट्रा टिशूज़ हों. इस तरह के दर्द के लिए उन दिक्कतों को ट्रीट किया जाता है.

डॉक्टर प्रियंका ने बताया कि किसी को कम या किसी को ज्यादा दर्द महसूस होने की एक वजह ये भी है कि दर्द सहने की हर शरीर की क्षमता अलग-अलग होती है. हो सकता है कि जो दर्द एक व्यक्ति को बहुत ज्यादा लग रहा हो, उतना ही दर्द दूसरे को नॉर्मल लगे. इसलिए किसी-किसी को पेन किलर्स या इंजेक्शन की ज़रूरत पड़ती है और कुछ का काम मालिश या सिंकाई से चल जाता है.

पीरियड हर महीने होने वाली एक नैचुरल प्रक्रिया है. उसमें होने वाला दर्द भी उसका एक पार्ट है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उस दर्द में आपको रेस्ट करने का अधिकार नहीं है.

विडियो: क्यों पीरियड्स में पैड के बजाए कपड़ा इस्तेमाल कर रही हैं औरतें?

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