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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दंगे क्यों हो रहे हैं, पूरी कहानी जानिए

ये मामला अब संसद तक पंहुच गया है.

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सांकेतिक फोटो (साभार: आजतक)

भारत में शायद ही कोई बड़ा पद होगा, जहां तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले लोग नहीं पहुंचे होंगे. 135 साल के इतिहास में इसने भारत को राष्ट्रपति दिए, प्रधानमंत्री दिए, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दिए, मुख्यमंत्री दिए. IPS-IAS की लिस्ट निकालेंगे तो अलग से एक लिखना पड़ेगा. लेकिन एक वक्त जिस जगह तालीम का ऐसा माहौल था कि उसे ऑक्सफोर्ड ऑफ ईस्ट कह दिया जाता था, आज कल उसकी चर्चा किन विषयों को लेकर हो रही है? मारपीट, बलवा, आगज़नी गोली चलना और आंदोलन. फीस वृद्धि और छात्रसंघ की बहाली का मुद्दा सुलझा नहीं था, कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में 19 दिसंबर के रोज़ फिर मारपीट और आगज़नी हुई. बात एक पूर्व छात्र के साथ हुई बदतमीज़ी और फिर उसके बाद हुए बलवे भर की नहीं है. बात है उस संस्कृति के क्षरण की, जिसके लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी जानी जाती थी. गौर इस बात पर, कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में चल क्या रहा है?

19 दिसंबर को AU में जो हुआ, उसमें गलती किसकी थी, इसका फैसला करने से पहले हमें घटनाओं का क्रम जान लेना चाहिए. तमाम सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ की ही तरह AU में भी पोस्ट ऑफिस, बैंक जैसी सुविधाएं हैं, जो छात्रों, फैकल्टी और स्टाफ के काम आती हैं. इनमें से बैंक एक ऐसी संस्था है, जिससे छात्र अपनी पढ़ाई के बाद भी जुड़े रहते हैं, क्योंकि खाता वहां खुला होता है. ऐसा ही एक खाता था पूर्व छात्र विवेकानंद पाठक का. विवेकानंद का एक और परिचय ये है कि वो यूपी कांग्रेस के महासचिव हैं. और पार्टी के छात्र संगठन NSUI में भी रहे हैं. 

पाठक, 19 दिसंबर के रोज़ यूनिवर्सिटी परिसर स्थित बैंक जाना चाहते थे. लेकिन यूनिवर्सिटी के गेट पर उनकी गाड़ी को सुरक्षा गार्ड ने रोका. इसके बाद गार्ड और विवेकानंद के बीच जो हुआ, उसे लेकर दोनों पक्षों के अलग अलग वर्ज़न हैं. हम आपको दोनों ही बताएंगे. इंडिया टुडे के लिए प्रयागराज से संतोष कुमार शर्मा ने AU की घटनाओं पर रिपोर्ट की है. वो लिखते हैं, विवेकानंद ने कथित रूप से गार्ड को थप्पड़ मारा, जिसके बाद सुरक्षा गार्ड्स ने पाठक के साथ मारपीट की. इसके बाद गार्ड्स और छात्रों के बीच संघर्ष हुआ. इस दौरान पत्थरबाज़ी हुई और आगज़नी भी. लेकिन घटना के रोज़ जब प्रेस ने विवेकानंद से बात की, तो उनका कहना था कि गार्ड ने उनके साथ बदतमीज़ी की थी.  

प्रेस से बात करते हुए और उससे पहले के कई वीडियोज़ में विवेकानंद के सिर से बहता खून साफ नज़र आ रहा है. इसका मतलब विवेकानंद से मारपीट तो हुई है, जिसमें वो चोटिल हुए. इस मामले में सुरक्षा गार्ड और विवेकानंद - दोनों की ओर से FIR दर्ज कराई गई है. दोनों कॉपीज़ दी लल्लनटॉप के पास हैं. विवेकानंद द्वारा दर्ज कराई गई FIR में गार्ड प्रभाकर सिंह, एमके पांडेय, तारा चंद्र और 30-40 अज्ञात गार्ड्स पर आरोप लगाए हैं. विवेकानंद अपनी शिकायत में लिखते हैं कि विवाद के बाद असिस्टेंट प्रॉक्टर राकेश सिंह और इंस्पेक्टर कर्नल गंज ने गार्ड्स को समझाया था, बावजूद इसके गार्ड्स ने उनपर जानलेवा हमला किया.

प्रभाकर सिंह की ओर से दर्ज FIR में विवेकानंद के अलावा राहुल पटेल, अजय सम्राट, अभिषेक यादव, नवनीत सिंह, हरेन्द्र यादव, आयुष प्रियदर्शी और सत्यम कुशवाहा पर आरोप लगाए गए हैं. इसमें सिंह ने आरोप लगाया है कि उन्होंने विवेकानंद से छोटे गेट से अंदर आने को कहा था, क्योंकि बड़ा गेट खोलने के आदेश नहीं हैं. इसके बाद विवाद शुरू हुआ. इसी में सिंह ये भी लिखते हैं कि छात्रों ने पत्थर बाज़ी की और आगज़नी भी.

लेकिन छात्र आगज़नी और पत्थर बाज़ी के लिए गार्ड्स को ही दोषी ठहरा रहे हैं. हमने विवेकानंद से ही बात कर ली. हमने आपको विवेकानंद और गार्ड दोनों का पक्ष बता दिया. गार्ड कह रहे हैं कि छात्रों ने आगज़नी की. और छात्र कह रहे हैं कि छात्रों को बदनाम करने की मंशा से गार्ड्स ने तोड़फोड़ की. लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल अनेक वीडियोज़ के आधार पर मामले को जानने वाले दावा कर रहे हैं कि गार्ड्स पर लगे आरोपों में दम ज़रूर है, लेकिन छात्रों की ओर से भी हिंसा हुई थी. हंगामे के दौरान गमले तोड़े गए, गाड़ियों के शीशे फोड़े गए. एक आम सड़क को जाम करने की भी कोशिश हुई, लेकिन पुलिस ने जाम लगने नहीं दिया. अब ये सब किया किसने, उसे लेकर दोनों तरफ से आरोप लग रहे हैं. दो बातें प्रमुखता से कही जा रही हैं - छात्र भी उग्र हुए और गार्ड्स की ओर से हवाई फायर भी किए गये.

अब आते हैं एक तीसरे पक्ष पर. इलाहाबाद विश्वविद्यालय. गार्ड्स निजी एजेंसी के थे. और पीड़ित शख्स एक पूर्व छात्र. लेकिन हुआ सब कुछ AU कैंपस में ही है. और AU को नुकसान भी पहुंचा है. क्योंकि कुछ वीडियोज़ में उपद्रवियों को इमारतों की खिड़कियों के कांच तोड़ते देखा जा सकता है. हमने 19 दिसंबर की घटनाओं को लेकर AU की जनसूचना अधिकारी से बात करने का प्रयास किया, जो कि हो नहीं पाई. अगर बातचीत हो जाती है, तो हम आने वाले एपिसोड्स में उसे शामिल करेंगे.  तब तक के लिए हम आपको AU के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर मौजूद जानकारी दे रहे हैं. AU ने छात्र शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है. लिखा है कि उपद्रवी तत्वों ने अभद्रता, मारपीट, आगज़नी और फायरिंग की. गार्ड्स ने गोली नहीं चलाई. 19 दिसंबर को ही AU रजिस्ट्रार कार्यालय ने एक नोटिस जारी करते हुए 20 दिसंबर, माने आज के लिए कक्षाएं स्थगित कर दीं. इस नोटिस में भी स्टूडेंट शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था. अननोन एलिमेंट्स लिखा गया था.

उपद्रवी और अननोन एलिमेंट्स. इनसे किसी की पहचान ज़ाहिर नहीं होती. लेकिन FIR में तो साफ साफ नाम लिखे हुए हैं. एक नाम है अजय यादव सम्राट का. ये भी पूर्व छात्र हैं. और 882 दिनों से यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ की बहाली के लिए आंदोलन चला रहे हैं. उनका कहना है, कि उनका नाम इस मामले में जबरन घसीटा गया है. अजय का आरोप गंभीर है. उनका कहना है कि चूंकि वो आंदोलनरत हैं, इसीलिए एक दूसरे मामले में उनका नाम भी ले लिया गया. आगे की कार्यवाही पुलिस जांच और अदालत की सुनवाई के रास्ते से होकर जाएगी. सो उसपर हम टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे. लेकिन इस सवाल का वज़न अपनी जगह है कि अगर 882 दिनों से छात्रसंघ के लिए आंदोलन चल रहा है, तो उसपर से रोक न हटाने की वजह क्या है. छात्र राजनीति अगर वाकई खराब है, तब भारत के सभी विश्वविद्यालयों में इसे क्यों बंद नहीं करा दिया जाता. इस बात पर गतिरोध बना हुआ है और छोटी-मोटी बहस भी अब छात्र बनाम यूनिवर्सिटी प्रशासन हो जा रही है. एक और मुद्दा है, जिसे लेकर छात्र लगातार आवाज़ उठाते रहते हैं - AU में कुलपति की नियुक्ति, जिससे छात्र संतुष्ट नहीं हैं. आज मध्यप्रदेश से कांग्रेस सांसद राजमणि पटेल ने इस मुद्दे को राज्यसभा में उठाया.

बीते कुछ दिनों में ये दूसरी बार था कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का ज़िक्र राज्यसभा में हुआ. 12 दिसंबर को ही कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राज्यसभा में AU फीसवृद्धि का ज़िक्र किया था. मारपीट से बड़ा मुद्दा है फीस वृद्धि का. छात्र कभी अनशन करते हैं, तो कभी आंदोलन. आत्मदाह का प्रयास तक किया जा चुका है. कोई कह सकता है कि 400 फीसदी बढ़ा, फिर भी कम है. लेकिन हमें ये देखना होगा कि हम किस बैकग्राउंड से आने वाले छात्रों की बात कर रहे हैं. क्या उनके घर में फीस के लिए चंद हज़ार, जिसे कम बताया जा रहा है, उतने पैसे भी हैं. खासकर हॉस्टल की फीस वाकई कई लोगों की जेब से बाहर जाने लगी है. फिर छात्रों को लगता है कि उन्हें इकट्ठा होने से रोकने के लिए छात्रसंघ को बैन किया गया है. और जब वो आंदोलन करते हैं, तो उसपर कान नहीं दिया जाता. इसी से इकट्ठा हो रहा गुस्सा बाहर आने के लिए छोटे छोटे बहाने खोज रहा है.

हम यहां एक और बात कहना चाहते हैं. जो छात्रों को बुरी लग सकती है. लेकिन वो कहना ज़रूरी है. अपनी मांग रखना और उसके लिए प्रदर्शन करना आपको जायज़ हक है. लेकिन हिंसा आपकी मांग को कमज़ोर करती है. हासिल एक अच्छी फिल्म है. लेकिन वो फिल्म ही है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पूरी संस्कृति को उसमें समेटकर न देखिए, न किसी को देखने दीजिए. इसकी ज़िम्मेदारी जितनी प्रशासन की है, उतनी ही आपकी भी.

 

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