पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमान समुदाय (Pakistan Ahmadiyya Attack) की इबादतगाहों पर हमले फिर बढ़ने लगे हैं. इस साल अब तक कम से कम चार ऐसे हमलों में इबादतगाहों को नुकसान पहुंचाया गया, मीनारों को तोड़ा गया और मस्जिदों को आग लगा दी गई है. आखिर अहमदिया मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जाता है? हमले के ताजा मामले क्या हैं? और अहमदिया मुसलमान हैं कौन, सब विस्तार से जानते हैं.
भारत से निकल पाकिस्तान में जा फंसे अहमदिया कौन हैं, जिनपर रोज हमले हो रहे हैं?
पाकिस्तान में लगातार अहमदिया मुसलमानों और उनके धर्मस्थलों को निशाना बनाया जा रहा है.

बीती 10 जनवरी की रात वजीराबाद के मोती बाजार में अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों की मीनार तोड़ी गई. इसी तरह 18 जनवरी को भी कराची के मार्टन रोड की एक मस्जिद में कुछ लोग घुसे और दो मीनारों को नुकसान पहुंचाया.
वहीं 3 फरवरी की रात उमरकोट के नूर नगर में कुछ लोगों ने इबादतगाह में तेल छिड़ककर आग लगा दी. इससे इबादतगाह के हॉल में रखी कुर्सी, दरी जैसा सामान जल गया. 2017 के बाद से अब तक अलग-अलग हमलों में 40 से ज्यादा अहमदिया मुसलमान मारे गए हैं. उनके खिलाफ अक्सर ईशनिंदा के केस भी दर्ज किए जाते हैं.
अहमदिया मुसलमान, मुस्लिम समुदाय का वो पंथ है, जो मिर्जा गुलाम अहमद को मानता है. मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में इस्लाम के अंदर ही एक पुनरुत्थान आंदोलन के रूप में अहमदिया समुदाय की स्थापना की थी. मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में 13 फरवरी 1835 को हुआ था.
अहमदिया मुस्लिम समुदाय की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, इस समुदाय को मानने वाले लोग 200 से ज्यादा देशों में रहते हैं. समुदाय के पास दुनियाभर में 16,000 से ज्यादा मस्जिदें, 600 स्कूल और 30 हॉस्पिटल हैं. इस समुदाय ने कुरान का 70 से अधिक भाषाओं में अनुवाद भी किया है.
समुदाय में सबसे बड़ा स्थान खलीफा का होता है. हजरत मौलवी नुरुद्दीन पहले खलीफा थे. अब तक संप्रदाय में पांच खलीफा हुए हैं. फिलहाल मिर्जा मसरूर अहमद संप्रदाय के खलीफा हैं, जो लंदन में रहते हैं.
दुनिया में सबसे ज्यादा अहमदिया मुसलमान पाकिस्तान में रहते हैं. यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजीयस फ्रीडम के मुताबिक, इनकी आबादी 40 लाख बताई जाती है, जो देश की कुल आबादी का 2.2 प्रतिशत है. पंजाब प्रांत में रबवाह शहर अहमदिया समुदाय का वैश्विक मुख्यालय हुआ करता था, जो फिलहाल इंग्लैंड से ऑपरेट किया जाता है.
पाकिस्तान इन्हें मुस्लिम ही नहीं मानतामई 1974 में पाकिस्तान में भड़के दंगों में 27 अहमदियों की मौत हो गई थी. घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को 'नॉन-मुस्लिम माइनोरिटी' डिक्लेयर कर दिया. यानी अहमदिया लोग पाकिस्तान में आधिकारिक तौर से मुस्लिम नहीं हैं. समुदाय के लोग यहां दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर रहते हैं.
पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298-C के तहत अहमदिया मुसलमानों को खुद को मुस्लिम कहने और अपने धर्म प्रचार पर रोक है. ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा का भी प्रावधान है.
2002 में अहमदिया लोगों के लिए पाकिस्तान सरकार ने अलग वोटर लिस्ट प्रिंट करवाई थी. इसमें उन्हें गैर-मुस्लिम माना गया था.
अहमदिया समुदाय के खलीफा रहे मिर्जा गुलाम अहमद के मुताबिक, कुरान अल्लाह की आखिरी किताब है, इसका कोई हुक्म और कोई आयत नहीं है. वे हजरत मुहम्मद को आखिरी नबी मानने से भी इनकार करते हैं. इन्हीं दावों पर मुस्लिम समुदाय के कई लोगों को आपत्ति है. उनके मुताबिक, हजरत मुहम्मद ही आखिरी नबी हैं. कुरान आखिरी किताब है. यही विवाद की जड़ है.
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