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जब एक क्रिकेटर की जमानत ज़ब्त करवा दी थी सुषमा स्वराज ने

इसी चुनाव में सुषमा ने पहली बार टिकट पाए कपिल सिब्बल को भी हराया था.

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साउथ दिल्ली से चुनाव में उतरे मनोज प्रभाकर को सुषमा ने क्लीन बोल्ड किया था, और साथ ही कपिल सिब्बल भी बाउंड्री लाइन पर कैच थमा बैठे थे

दक्षिणी दिल्ली का सियासी अखाड़ा. 1966 में बना लोकसभा क्षेत्र. शुरुआत से ही यहां कांग्रेस और भाजपा के विचारधारा वाले उम्मीदवारों के बीच सियासी भिड़ंत होती रही है. जनसंघ के बलराज मधोक ने जीत का जो सिलसिला शुरू किया वो कभी-कभी ही टूटा. इसी सीट से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी हार का मुंह देखना पड़ा था. भाजपा को बेदखल करने के लिए कांग्रेस यहां से लगातार उम्मीदवार बदलती रही है. 1999 में हुए चुनाव में पार्टी ने यहां से अपने दिग्गज डॉ. मनमोहन सिंह को चुनावी समर में उतार दिया था, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था.

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# जब मनोज प्रभाकर को क्लीन बोल्ड किया सुषमा ने-

साल था 1996. दक्षिणी दिल्ली से कांटे का मुकाबला था. भाजपा से सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला हुआ था. कांग्रेस ने इस बार नया दांव चला था. कपिल सिब्बल के नाम का दांव. जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामास्वामी के ऊपर महाभियोग का मामला संसद में चल रहा था. सिब्बल उन्हें डिफेंड करने के लिए कोर्ट पहुंचे थे. पी.वी. नरसिम्हाराव उस वक़्त देश के प्रधानमंत्री थे. उनकी नज़र इन पर पड़ी और उन्होंने इनकी बोलने की ज़बरदस्त शैली को देखकर इन्हें 1996 में कांग्रेस का टिकट ऑफर किया. किस्मत आज़माने उतरे दक्षिणी दिल्ली से.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण दत्त तिवारी ने अपनी कांग्रेस शुरू की थी. ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी). इसी ‘तिवारी कांग्रेस’ से अपनी किस्मत आज़माने उतरा एक भारतीय क्रिकेटर. इंडियन क्रिकेट टीम का मीडियम पेसर रहा गेंदबाज़. मनोज प्रभाकर.

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साउथ दिल्ली से सुषमा स्वराज ने कपिल सिब्बल और मनोज प्रभाकर दोनों को पछाड़ दिया था
साउथ दिल्ली से सुषमा स्वराज ने कपिल सिब्बल और मनोज प्रभाकर दोनों को पछाड़ दिया था

चुनाव हुआ और सुषमा स्वराज ने दक्षिणी दिल्ली का किला फ़तेह किया. 2,94,570 वोट हासिल किए थे सुषमा ने. कपिल सिब्बल को मिले थे 1,80,564 वोट और मनोज प्रभाकर महज़ 17,690 वोट ही समेट पाए थे.


# भाषण कला की माहिर सुषमा 

सुषमा स्वराज की जीत पहले से ही पक्की मानी जा रही थी. कपिल सिब्बल को कांग्रेस ने उनकी ‘भाषण कला’ पर रीझकर टिकट दिया था. लेकिन इस कला में तब अटल जी के बाद एक ही महारथी हुआ करती थीं. और वो थीं सुषमा स्वराज. हिंदी में जिस लय और ताल के साथ सुषमा स्वराज भाषण दिया करती थीं वो देखते ही बनता था. यही वजह थी कि कपिल सिब्बल इस चुनाव में दो लाख का आंकड़ा भी नहीं छू पाए. और मनोज प्रभाकर अपनी ज़मानत जब्त करा बैठे थे.


# प्रतिनिधित्व का ये सफ़र क्या रहा 

14 फ़रवरी, 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी. 1977 में पहली बार सुषमा ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीता और महज़ 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवी लाल सरकार में राज्य की श्रम मंत्री बन कर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने की उपलब्धि हासिल की. 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतीं और अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं. 1998 में सुषमा दोबारा दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं. इस बार उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय के साथ ही दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया. साल 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद बनाई गईं. 2009 में जब सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा पहुंची तो 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाई गयीं. 2014 में वो दोबारा विदिशा से जीतीं और मोदी मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री बनाई गईं.

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