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कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद पंजाब की राजनीति में क्या बवंडर मचने वाला है?

पिछले विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला था, इस बार त्रिकोणीय से बढ़कर होगा.

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तस्वीरें पीटीआई से साभार हैं.
19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विवादित तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी. एक वीडियो संदेश में पीएम मोदी ने कहा कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा. साथ ही उन्होंने किसानों से घर वापस लौटने की अपील की. प्रधानमंत्री मोदी ने इस घोषणा के लिए गुरु नानक जयंती (गुरुपूरब) का दिन चुना. इस फैसले का पंजाब के सभी सियासी दलों ने स्वागत किया है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा,
3 काले कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला पंजाब में किसानों द्वारा शुरू किए गए लोगों के सबसे लंबे शांतिमय संघर्ष की जीत है. अन्नदाताओं को मेरा सलाम.
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा,
काले कानूनों को निरस्त करना सही दिशा में उठाया कदम है. किसान मोर्चे के सत्याग्रह को अभूतपूर्व सफलता मिली है. आपकी कुर्बानियों ने फल दिया है. एक रोड मैप के ज़रिए पंजाब में किसानी को पुनर्जीवित करना पंजाब सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
अकाली दल ने भी इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है. साथ ही लखीमपुर खीरी मामले का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये इस सरकार (BJP-NDA) के चेहरे पर काले धब्बे की तरह रहेगा. आम आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में अन्य प्रमुख दलों के बराबर ही सक्रिय है. उसके प्रमुख और दिल्ली क मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मोदी सरकार के फैसले को लोकतंत्र की जीत बताया है. कुछ दिन पहले तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे और कांग्रेस से निकलकर अलग पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया. कहा-
गुरु नानक जयंती के पवित्र दिन हर पंजाबी की बात मान, 3 काले कानून रद्द करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का शुक्रगुज़ार हूं.

पंजाब की राजनीति में अब आगे क्या?

पंजाब में 4 बड़ी पार्टियां हैं- कांग्रेस, शिरोमणी अकाली दल, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी. कृषि कानूनों से जुड़ी सियासत ने पंजाब के कई राजनैतिक समीकरण बदले हैं. जैसे- लंबे समय से चलता आया शिरोमणी अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी (BJP) का गठबंधन इसी मुद्दे पर टूटा. कैप्टन ने पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ा, फिर कांग्रेस पार्टी छोड़ खुद की नई पार्टी बनाई. उन्हें साथ मिला BJP का. शिरोमणी अकाली दल का बड़ा आधार पंजाब के गांव हैं. इसलिए शहरी इलाक़ों में पकड़ मज़बूत करने के लिए गठबंधन किया गया बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ. BSP पंजाब के दोआबा इलाके और शहरी हिस्सों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है. वहीं आम आदमी पार्टी तय नहीं कर पा रही कि किसके साथ जाए. बैंस ब्रदर्स, टकसाली अकालियों समेत कई ऐसे पावर सेंटर हैं जो अपने-अपने इलाके में अच्छे वोट खींच सकते हैं. सब के बारे में क्रमवार बात करते हैं-

#कांग्रेस

कांग्रेस इस वक्त सबसे मज़बूत स्थिति में दिख रही है. सत्ताधारी दल के पंजाब अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू किसान आंदोलन की शुरुआत से मोदी सरकार की आलोचना कर रहे थे. करतारपुर कोरिडोर खुलवाने में उनके योगदान की वजह से पंजाब की नानक नामलेवा संगत सिद्धू की प्रशंसा करती है. कैप्टन सरकार और अब चन्नी सरकार, दोनों किसान आंदोलन के पक्ष में रही हैं. मुख्यमंत्री समेत पूरे कांग्रेस संगठन का दावा है कि वे 2017 से भी ज्यादा सीटें आगामी चुनाव में जीतेंगे. मोदी के कृषि कानून वापस लेने के ऐलान से दो दिन पहले (17 नवंबर) पंजाब की 32 किसान जत्थेबंदियों के नेताओं ने मुख्यमंत्री चन्नी से मुलाकात की थी. ये मुलाकात कपास की खेती में गुलाबी कीड़े की वजह से हुए नुकसान के बारे में थी. मुख्यमंत्री चन्नी के मीटिंग के बाद कहा था कि बातचीत सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई और किसानों की मांगें मान ली गई हैं. पंजाब के इन किसान संगठनों ने पहले ऐलान किया था कि जब तक तीन कृषि कानून रद्द ना हो जाएं, कोई भी पार्टी गांवों में प्रचार करने ना जाए. 18 नवंबर को चन्नी और पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन- भारतीय किसान यूनियन, उगराहां की मुलाकात हुई. किसान संगठन के प्रधान जोगिंदर सिंह उगराहां ने मुख्यमंत्री की मौजूदगी में कहा-
हम कांग्रेस के नेताओं, मंत्रियों का गांवों में विरोध कर रहे थे, वो आज से नहीं किया जाएगा.
किसान यूनियन, उगराहां का पंजाब के 1400 से ज्यादा गांवों में आधार है. ढांचागत लिहाज से ये सबसे मज़बूत संगठन है. ये परोक्ष समर्थन कांग्रेस के लिए ये बड़ा प्लस पॉइंट है. हां, कृषि कानून वापस लेने की बात बोलकर BJP ने कांग्रेस से एक बड़ा मुद्दा ज़रूर छीन लिया है.

शिरोमणी अकाली दल

शिरोमणी अकाली दल की मुश्किलें BJP का साथ छोड़ने से थोड़ी कम हुई थीं. बस थोड़ी सी ही. शिरोमणी अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल पिछले क़रीब 3 महीने से लगातार पंजाब में जनसमर्थन तलाश रहे हैं. ऐसे वीडियो भी सामने आए, जहां ग्रामीणों ने उन्हें गांव में घुसने तक नहीं दिया. भले ही उन्होंने BJP का साथ छोड़ दिया हो, पर उनके खिलाफ पर्याप्त नाराज़गी आज भी है. 10 साल सत्ता में रहने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल तीसरे स्थान पर खिसक गई थी. किसानों और पंथ (सिख धर्म) का अगुआ होने की हामी भरने वाले अकाली दल के लिए BSP ही BJP की जगह एक विकल्प थी. कांग्रेस के दलित और भारतीय जनता पार्टी के हिंदू वोट बैंक से वोट खींचने की उम्मीद ही शिरोमणी अकाली दल और BSP के गठबंधन का आधार रही है. कुछ लोगों के मन में सवाल होगा कि कृषि कानूनों की वजह से टूटा अकाली-BJP गठबंधन क्या अब दोबारा बन सकता है? अगर आज की स्थिति देखें तो इसकी उम्मीद ना के बराबर है. क्योंकि 117 में से क़रीब 80 विधानसभाओं में सुखबीर बादल प्रत्याशियों की घोषणा कर चुके हैं. यहां से लौटना लगभग नामुमकिन है. एक न्यूज़ चैनल के साथ इंटरव्यू में पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. दलजीत चीमा ने भारतीय जनता पार्टी से किसी भी तरह के गठबंधन की गुंजाइश होने से इंकार कर दिया है.

आम आदमी पार्टी

दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी (आप) को दूसरी बड़ी सफलता पंजाब में मिली थी. 2017 के चुनाव में पार्टी 20 सीटों पर जीत दर्ज कर मुख्य विपक्ष बनी और सत्ताधारी शिरोमणी अकाली दल को तीसरे स्थान पर खिसका दिया था. आज क़रीब 5 साल बाद पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही है. आधे से ज्यादा विधायक पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. आम आदमी पार्टी पंजाब में अपना चेहरा तक घोषित नहीं कर पा रही. 'आप' न ही पंजाब की सत्ता में है, ना ही केंद्र की. इसलिए किसानों को 'आप' से बहुत ऐतराज़ भी नहीं है. लेकिन लगातार पार्टी छोड़ रहे नेताओं की वजह से पार्टी कमज़ोर स्थिति में है. इसके अलावा सतलुज-यमुना लिंक कनाल पर केंद्रीय नेतृत्व फंसता दिखाई देता है.

भारतीय जनता पार्टी

BJP पंजाब में शहरी पार्टी रही है या ऐसे सीटें जीती हैं जहां वोटरों में हिंदुओं की अच्छी तादाद है. गांवों में BJP के लिए कोई खास समर्थन नहीं था. गांवों में शिरोमणी अकाली दल का प्रभाव था. अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद से पंजाब में BJP अकेली रही. BJP नेताओं के विरोध में कई प्रदर्शन हुए. अब कैप्टन अमरिंदर के अलग पार्टी बनाने के बाद उम्मीद की जा रही है कि BJP और कैप्टन साथ आएंगे. किसान आंदोलन में BJP का बड़ा वोटर उससे छिटका है, जिसमें आढ़ती और नौकरी-पेशे वाले लोग हैं. BJP नेता आढ़तियों को दलाल या मिलडमैन की तरह पेश करते रहे हैं. किसान आंदोलन के दौरान कुछ आढ़तियों पर इनकम टैक्स और ED ने छापेमारी की थी. उस वक्त किसान आढ़तियों के साथ खड़े हुए थे. एक और आम धारणा है कि सियासत के मामले में शहरी वोटर ग्रामीण मतदाताओं के मुकाबले कम रुचि रखते हैं. लेकिन इस आंदोलन ने ऐसे दावों को कच्चा साबित कर दिया. चंडीगढ़ समेत पंजाब के तमाम बड़े शहरों में नौजवान भारतीय जनता पार्टी का विरोध करते दिखे. पंजाब BJP में अंदरूनी लड़ाई भी छिड़ी हुई है. पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अनिल जोशी सरीखे नेता, जो कृषि कानूनों के विरोध में बोले या वापस लेने की मांग करने लगे थे, उन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. ये वे नेता थे, जो बीते 25 साल से लगातार BJP के लिए काम कर रहे थे. 2017 के चुनाव में BJP का वोट शेयर 5.4 प्रतिशत था. तब शिरोमणी अकाली दल जैसा स्थापित संगठन उनका पार्टनर था. उम्मीद के मुताबिक, इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी BJP के साथ होगी. कैप्टन के पास लंबा सियासी अनुभव ज़रूर है, पर अपने शासनकाल में वादे पूरे ना करने का आरोप उन पर लगा है. BJP के लिए ये चुनाव बहुत मुश्किल रहने वाला है. उसे अगर नुकसान होता है तो इसका प्रत्यक्ष फायदा कांग्रेस को मिल सकता है, जो उसकी स्थिति को और मज़बूत ही करेगा.