'कैसे बेशर्म आशिक हैं ये आज के, इनको अपना बनाना गजब हो गया.'
क्लिक करके यहां आने के लिए शुक्रिया दोस्त. ये जरूरी तो नहीं कि हर बार कोई खबर ही बताई जाए. कुछ लंबा या छोटा सा पढ़ाया ही जाए. आज संडे है. अपन खुश है. आशा है कि आप भी खुश होंगे. अब क्योंकि हम पक्के वाले बड्डी हैं. इसलिए आज स्टोरी के इस ई-पते पर कोई कहानी नहीं सुनाएंगे. एक कव्वाली सुनाएंगे. ये कव्वाली पुरानी है. इमरजेंसी लगने से पहले की कव्वाली. 1972 में एक फिल्म आई थी पुतलीबाई. उस में भी थी ये कव्वाली. लिखा था जफर गोरखपुरी ने. कव्वाली को गाया था राशिदा खातून और युसूफ आजाद ने. इस कव्वाली में आदमी, औरत को लेकर एक दूसरे पर खिचाई की जा रही है. यूं तो ये सुनने में मजेदार है. पर वो जो होते हैं न, हर चीज में विचारधारा घुसेड़ने वाले लोग. वो पॉसिबली आहत हो सकते हैं. बहरहाल, जैसा कि जोकर कह गया है.
why so serious. लिहाजा...
'जग में मौला ने सोचा मर्द को पैदा करे
सबसे पहले ये सवाल आया के कुदरत क्या करे
पत्थरों से संगदिली
और बेरुखी तकदीर से
कहर तूफानों से मांगा और गजब समसीर से
तो ली गधे से अक्ल और कौए से सियानापन लिया
और कुछ कुत्ते की टेढ़ी दुम से टेढ़ापन लिया
घात ली बिल्ली से और चूहे से मांगा भागना
और उल्लू से लिया रातों को इसका जागना
ले लिया तोते से आंख फेर लेने का चलन
और दिया हिज़-ओ-हवस लालच का दीवानापन
तो जहर फैलाने की आदत इसको दे दी न अक्खी
दिल दियो इसको पत्थर का और फितरत आग की
ली गई गिरगिट से हरदम रंग बदलने की अदा
जिससे औरत तो देते रहा करे धोखा सदा
तो इसको नाफरमानियां बख्शी गईं शैतान की
झूठ बोले ताकि ये कसम भगवान की
बंदरों से छीना झपटी और उछल लंगूर से
अल गरज हर चीज ले ली, पास से और दूर से
लेके मिट्टी में मसाला, जब ये मिलवाया गया
फर्क उस दम फितरत की मर्द में ये पाया गया
कि मर्द के पुतलों में जिस्म और जान दौड़ाई गई
तो उसमें औरत की अदा भी थोड़ी सी पाई गई
औरतों में मर्द की सूरत नहीं मिलती जनाब
पर इन्ही मर्दों में मिलते हैं जनाने बेहिसाब शक्ल मर्दों की और आदत जनाना के हो गए
क्या तो खुदा ने चाहा था और क्या न जाने हो गए
बन चुका जब मर्द तो, मौला ने मेरे ये कहा
कि अच्छा खासा बनाया था मैंने इसे
बन गए ये जनाना, गजब हो गया..'
अब सुनो देखो कव्वाली
https://www.youtube.com/watch?v=B7ZmCJigATU