8 जुलाई, 1910. ब्रिटेन का एक जहाज फ्रांस की सीमा को छूता हुआ हिंदुस्तान की तरफ बढ़ रहा था. इस जहाज में विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) सवार थे, जिन्हें लंदन से गिरफ्तार करके भारत ले जाया जा रहा था. सावरकर ने अभी तक अपना नाइट गाउन पहन रखा था. जिसका यूज वो कुछ देर में करने वाले थे. उनके दिमाग में कुछ तो पक रहा था. जिसकी भनक ब्रिटिश अफसरों को भी नहीं थी. कुछ देर बाद सावरकर ने ब्रिटिश सिपाहियों से शौचालय जाने की अनुमति मांगी और उन्हें शौचालय ले जाया गया.
चलते जहाज से कूदे, फिर तैरकर पार किया समंदर! तो सावरकर का मार्सिले से ये कनेक्शन है
France Visit के दौरान प्रधानमंत्री मोदी मार्सिले पहुंचे. यहां पहुंचकर PM Modi ने Vinayak Damodar Savarkar को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. लेकिन सावरकर का 'मार्सिले' से कनेक्शन क्या है?

कैदियों पर नजर रखने के लिए शौचालय के दरवाजों पर शीशे लगे हुए थे. अंदर जाने के बाद, सावरकर ने अपना गाउन उतारकर शीशे पर टांग दिया और शौचालय के ‘पोर्ट होल’ से निकलकर समंदर में कूद गए. सैनिकों ने उनका पीछा किया. 15 मिनट तैरने के बाद सावरकर एक शहर के तट पर पहुंचे. इस शहर का नाम था- मार्सिले (Marseille).
समंदर के किनारे बसा फ्रांस का एक पुराना शहर- मार्सिले. ये वही शहर है, जहां पहुंचकर प्रधानमंत्री मोदी ने सावरकर को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. मंगलवार, 11 फरवरी को फ्रांस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी मार्सिले पहुंचे थे. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा,
सावरकर को क्यों गिरफ्तार किया गया था?‘भारत की स्वतंत्रता की खोज में इस शहर का विशेष महत्व है. यहीं पर महान वीर सावरकर ने साहसपूर्वक भागने का प्रयास किया था. मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें (सावरकर को) ब्रिटिश हिरासत में न सौंपा जाए. वीर सावरकर की बहादुरी आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती है!'
21 दिसंबर, 1909. नासिक के एक थियेटर में नाटक का मंचन हो रहा था. इस नाटक को देखने के लिए ‘क्लेक्टर जैक्सन’ भी आए हुए थे. मौका पाकर 18 साल के क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने अपनी पिस्टल की चार गोलियां जैक्सन के सीने में उतार दीं. जांच शुरू हुई तो पता चला कि जिस ‘ब्राऊनिंग पिस्टल’ से जैक्सन की हत्या हुई. उसे सावरकर ने ही लंदन से भेजा था. उन दिनों सावरकर लंदन में रहकर कानून की पढ़ाई कर रहे थे.

13 मार्च, 1910 को सावरकर को गिरफ़्तार कर लिया गया. सावरकर पर मुकदमा चलाने के लिए ब्रिटिश मजिस्ट्रेट ने उन्हें ब्रिटेन से बंबई भेजने का आदेश दिया. 1 जुलाई, 1910 का दिन तय किया गया और इसी दिन सावरकर को भारत ले जाने के लिए ब्रिटिश जहाज ‘एस एस मोरिया’ रवाना हुआ.
BBC के वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल से बात करते हुए लेखक आशुतोष देशमुख बताते हैं कि रास्ते में सावरकर शौचालय के पोर्ट होल से नीचे समंदर में कूद गए. उन्होंने पहले से ही शौचालय के 'पोर्ट होल' को नाप लिया था और उन्हें अंदाजा था कि वो उसके जरिए बाहर निकल सकते हैं. उन्होंने अपने दुबले-पतले शरीर को पोर्ट-होल से नीचे उतारा और बीच समुद्र में कूद गए. 'ब्रेवहार्ट सावरकर' किताब लिखने वाले आशुतोष BBC को बताते हैं,
‘उनकी (सावरकर) नासिक की तैरने की ट्रेनिंग काम आई और वो तट की तरफ़ तैरते हुए बढ़ने लगे. सुरक्षाकर्मियों ने उन पर गोलियां चलाईं, लेकिन वो बच निकले. इसके बाद सावरकर करीब 15 मिनट तैरकर तट पर पहुंचे. तट रपटीला था. पहली बार तो वो फिसले लेकिन दूसरे प्रयास में वो जमीन पर पहुंच गए. वो तेज़ी से दौड़ने लगे और एक मिनट में उन्होंने करीब 450 मीटर का फासला तय किया.’

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‘मार्सिले’ से किया गया गिरफ्तारआशुतोष बताते हैं कि शहर पहुंचने पर सावरकर करीब-करीब नंगे थे. तभी उन्हें एक पुलिसवाला दिखाई दिया. वो उसके पास जा कर अंग्रेजी में बोले,
'मुझे राजनीतिक शरण के लिए मैजिस्ट्रेट के पास ले चलो.’
इसके बाद जहाज़ से पीछा करते हुए ब्रिटिश पुलिस भी वहां पहुंच जाती है. चोर-चोर का शोर होता है और सावरकर को गिरफ्तार कर लिया जाता है. इसके बाद मामला इंटरनेशनल कोर्ट पहुंचता है. 25 अक्टूबर 1910 को फ़्रेंच और ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता होता है और सावरकर को ब्रिटेन के हवाले कर दिया जाता है. 24 दिसम्बर 1910 के दिन सावरकर को मामले में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है. इस तरह सावरकर की कुछ मिनटों की आजादी खत्म हो गई और अगले 25 सालों तक वो किसी न किसी रूप में अंग्रेजों के कैदी रहे.
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