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375 साल पहले ख़त्म हो चुका साम्राज्य, जिसके नाम पर कर्नाटक को मिला नया-नवेला 31वां जिला

यह साम्राज्य मध्यकालीन भारत के बड़े साम्राज्य में से था.

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बीजेपी नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा (फाइल फोटो- PTI)
कर्नाटक को एक नया जिला मिला है- विजयनगर. राज्य सरकार ने इसे 31वें जिले के तौर पर मंजूरी दे दी है. अधिसूचना भी जारी कर दी गई है. कर्नाटक लैंड रेवेन्यू ऐक्ट-1964 के तहत बेल्लारी से अलग करके विजयनगर बनाया-बसाया गया है. विजयनगर हंपी और विरुपाक्ष मंदिर जैसी UNESCO साइट्स के लिए मशहूर है. ये हैदराबाद-कर्नाटक रीज़न में बसा है. होसपेट इस जिले का मुख्यालय होगा. जिले में कुल छह तालुक यानी संभाग होंगे- होसपेट, कुडलिगी, हगरीभूमन्नाहल्ली, कोट्टुरू, होविना हदगली और हरपनहल्ली. 2019 में रखा गया था प्रस्ताव 18 नवंबर 2020 को राज्य मंत्रिमंडल ने विजयनगर जिले के गठन को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी. विजयनगर के गठन का प्लान पहली बार सितंबर-2019 में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की तरफ से रखा गया था. येदियुरप्पा का कहना था कि बेल्लारी जिला अब प्रशासनिक दृष्टि से काफी बड़ा हो गया है. जिले के कई हिस्से एक दूसरे से 200 किमी तक की दूरी पर हैं, इस लिहाज से तमाम मुश्किलें आती हैं. इसी बिनाह पर CM ने बेल्लारी से विजयनगर को अलग करने का प्रस्ताव रखा था. नए विजयनगर जिले को चूंकि बेल्लारी से अलग करके बनाया गया है, लिहाजा अब बेल्लारी में पांच तालुका होंगी- बेल्लारी, सीरागुप्पा, कांपली, सांडरू और कुरुगोडू. बेल्लारी जिले का मुख्यालय बेल्लारी तालुका होगा. विजयनगर साम्राज्य के नाम पर गठन विजयनगर जिले का गठन करीब 375 साल पहले समाप्त हो चुके विजयनगर साम्राज्य के नाम पर हुआ है. विजयनगर साम्राज्य मध्यकालीन भारत के बड़े साम्राज्य में से था. हरिहर और बुक्काराय नाम के दो भाइयों ने इस साम्राज्य का गठन किया था. इसके राजाओं ने दक्षिण भारत के बड़े हिस्से पर 1336 से 1646 तक करीब 310 साल शासन किया. हंपी शहर के पास इस साम्राज्य के अवशेष पाए जाते हैं. कर्नाटक सरकार द्वारा नए जिले के गठन का विपक्षी दल कांग्रेस ने विरोध किया है. कांग्रेस का कहना है कि इससे जिले में तेलुगू भाषी और कन्नड़ भाषी लोगों के बीच मतभेद उभर सकते हैं. वहीं इस विभाजन के पीछे राजनीतिक कारण भी माने जा रहे हैं. अविभाजित बेल्लारी में कांग्रेस, भाजपा से कुछ आगे ही रही है. फिलहाल यहां की 9 विधानसभा में से कांग्रेस के पास 5 और भाजपा के पास 4 हैं. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि जिले के विभाजन से भाजपा को यहां कांग्रेस का वर्चस्व कम होने की उम्मीद है.

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