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नवारो के 'ब्राह्मणों की मुनाफाखोरी' वाले बयान पर कांग्रेस के उदित राज सहमत, बाकी नेता क्या बोले?

US ट्रेड एडवाइज़र पीटर नवारो की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका और भारत बढ़ते तनाव के बीच व्यापार समझौते की कोशिश कर रहे हैं.

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बाएं से दाहिने. कांग्रेस नेता उदित राज और US ट्रेड एडवाइज़र पीटर नवारो. (India Today)

वाइट हाउस के ट्रेड एडवाइज़र पीटर नवारो की "ब्राह्मणों की मुनाफाखोरी" वाली टिप्पणी पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया देखी गई. नवारो ने यह टिप्पणी डॉनल्ड ट्रंप के उस फैसले के संदर्भ में दी थी, जिसमें रूस से तेल खरीदने पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया गया था. भारत में अलग-अलग पार्टियों के नेताओं ने इसे 'जातिवादी' और 'खतरनाक' बताया और 'हिंदू विरोधी और भारत विरोधी नैरेटिव' कहकर निंदा की गई.

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नवारो की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका और भारत बढ़ते तनाव के बीच व्यापार समझौते की कोशिश कर रहे हैं. ट्रंप के ‘टैरिफ बम’ के बाद से अमेरिका भारत को लेकर कई दफा तीखे बयान दे चुका है. नवारो का यह बयान अब तक का सबसे तीखा हमला माना जा रहा है. इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने कड़ा जवाब दिया. लेकिन जिस बयान ने सबसे ज्यादा ध्यान खींचा वो कांग्रेस नेता उदित राज का है. 

कांग्रेस के उदित राज ने समर्थन किया

NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि अमेरिका ऐसे ‘बेसिर-पैर के बयान’ नहीं दे सकता. लेकिन कभी बीजेपी में रहे कांग्रेस नेता उदित राज ने नवारो का समर्थन कर दिया. उन्होंने कहा,

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“मैं नवारो से पूरी तरह सहमत हूं. ज्ञात रहे कि पीटर नवारो ट्रंप के सलाहकार हैं. उन्होंने कहा कि रूस से ब्राह्मण सस्ता तेल ख़रीद कर मुनाफा कमा रहें है और इसका फ़ायदा आम जानता को नहीं मिल रहा है. दरअसल, निजी भारतीय तेल शोधक ऊंची जातियों से हैं और तथाकथित निचली जातियों को तेल शोधक बनने में दशकों, शायद सदियों लग जाएंगे. यह सच है कि ऊंची जातियों के कॉर्पोरेट घराने रूस से सस्ता तेल खरीद रहे हैं और शोधन के बाद उसे दूसरे देशों को बेच रहे हैं. भारतीयों को इससे कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है.”

वहीं संजीय सान्याल ने कहा कि नवारो के शब्द साफ बताते हैं कि अमेरिका में भारत के बारे में नैरेटिव कौन कंट्रोल करता है. उन्होंने कहा कि यह सीधे-सीधे 19वीं सदी के औपनिवेशिक तानों से लिया गया है, जैसे जेम्स मिल ने किया था. सान्याल ने कहा कि एडवर्ड सईद की "ओरिएंटलिज़्म" वाली थ्योरी मिडिल ईस्ट से ज्यादा भारत पर लागू होती है.

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उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी "ब्राह्मणों की मुनाफाखोरी" वाली टिप्पणी पर नाराज़गी जाहिर की. उन्होंने कहा,

“नवारो का किसी खास जाति की पहचान का इस्तेमाल करना, भले ही यह दिखाने के लिए हो कि वे बाकी लोगों से ज्यादा 'प्रिविलेज्ड' हैं, बेहद शर्मनाक और खतरनाक है.”

उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में 'ब्राह्मण' शब्द के अलग मायने हैं. वहां यह अमीर और ताकतवर तबके के लिए इस्तेमाल होता है, जिसका भारत की जाति व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं. लेकिन उन्होंने साफ कहा कि ट्रंप प्रशासन के सीनियर सदस्य द्वारा इस शब्द का इस्तेमाल जानबूझकर किया गया है.

वहीं, तृणमूल कांग्रेस की सांसद सगारिका घोष ने नवारो को उन्हीं की भाषा में लपेट दिया. उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा,

"'बॉस्टन ब्राह्मण' शब्द कभी अमेरिका में न्यू इंग्लैंड के अमीर और ताकतवर तबके के लिए खूब इस्तेमाल होता था. आज भी 'ब्राह्मण' शब्द अंग्रेज़ी बोलने वाली दुनिया में सामाजिक या आर्थिक 'एलीट' के लिए इस्तेमाल होता है."

हालांकि, सगारिका के इस बयान पर कुछ लोगों ने आड़े हाथों लिया और कहा कि नवारो का इस संदर्भ में 'ब्राह्मण' शब्द का इस्तेमाल करना कोई संयोग नहीं है. कई लोगों ने उन पर यह आरोप भी लगाया कि वे नवारो की टिप्पणी का बचाव कर रही हैं.

नवारो की टिप्पणी

नवारो ने कहा था,

"भारत क्रेमलिन का लॉन्ड्रोमैट बन चुका है. यहां ब्राह्मण भारतीय जनता की कीमत पर मुनाफा कमा रहे हैं."

यहां लॉन्ड्रोमैट का आशय समझें तो नवारो कहना चाह रहे है कि भारत रूस के तेल को खरीदकर उसे प्रोसेस करता है और फिर महंगे दाम पर बेचकर रूस को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाता है.

लॉन्ड्रोमैट कहने के बहाने उनका यही आरोप था कि भारतीय रिफाइनर सस्ते दाम पर रूसी तेल खरीदते हैं, फिर उसे प्रोसेस करके महंगे दाम पर बेचते हैं. उन्होंने यह भी कोशिश की कि ट्रंप द्वारा भारत के निर्यात पर लगाए गए सख्त टैरिफ को सही ठहराएं.

वीडियो: भारत पर टैरिफ लगाया तो ट्रंप को अमेरिका की अदालत ने ही लताड़ दिया

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