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कहानी आशीष रंजन की जिन्होंने ब्लड कैंसर को हराया और NEET में सफलता हासिल की

डॉक्टर बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है.

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NEET की परीक्षा क्वॉलिफाई करने के बाद आशीष को मिठाई खिलाते उनके परिवार के सदस्य.

NEET यानी राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा. 12वीं के बाद MBBS में एडमिशन लेने वालों के लिए होती है.  NEET का रिजल्ट एक नवंबर को ही घोषित हो चुका है. हैदराबाद के मृणाल कुटेरी ने टॉप किया है. पर आज हम इनके बारे में नहीं, बल्कि एक ऐसे कैंडिडेट के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्होंने ब्लड कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को हराकर NEET भी अच्छी रैंक से क्वॉलिफाई किया. इसके साथ ही डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने की ओर कदम बढ़ा दिया है. नाम है आशीष रंजन. प्रयागराज के रहने वाले हैं. उन्होंने 607 अंकों से NEET क्रैक किया है. उनके इस सफर में क्या-क्या चुनौतियां रहीं, ये जानने के लिए पहले हमने उस कोचिंग संस्थान के डायरेक्टर अमित त्रिपाठी से बात की जहां से आशीष ने कोचिंग ली थी. अमित त्रिपाठी ने बताया,

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2018 में आशीष हमारे पास नीट की तैयारी करने के लिए आया था. एक महीने की कोचिंग के बाद वो एबसेंट हो गया. फिर हमने घर पर कॉल किया. पूछने के लिए कि क्यों नहीं आ रहा है, तो पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है और कीमो के लिए एम्स गया हुआ है. ब्लड कैंसर की वजह से इसकी आंखों की रोशनी कम होने लगी थी. पढ़ने में दिक्कत हो रही थी. दो-ढाई महीने इलाज कराने के बाद वापस आया. 

अमित त्रिपाठी ने बताया कि आशीष अंदर से थोड़ा स्ट्रांग हो रहा था. वो अस्पताल में अब इलाज के लिए नहीं बल्कि उन ऑन्कोलॉजिस्ट को देखने जाता था, जो कैंसर पेशेंट का इलाज कर रहे थे. और उसके दिमाग में ये बात घर गई कि अब उसे सर्जन बनना है. यहीं से उसने अपना टारगेट बना लिया.

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आशीष की अब तक की जर्नी के बारे में दी लल्लनटॉप ने उनसे बात की. उन्होंने बताया,

मैं प्रयागराज के सहसों के छोटे से गांव बसमहुआ का रहने वाला हूं. 2012 में 72 पर्सेंट अंकों से इंटर पास किया और उसके बाद से ही नीट की तैयारी में लग गया. क्योंकि हमेशा से ही डॉक्टर बनने का सपना था. पर आंखों की रोशनी कम होने के कारण तैयारी में कमी आने लगी. 2014 में डॉक्टर को दिखाया तो मालूम हुआ कि रेटीना में ब्लड क्लॉटिंग हो रही है. फिर फिजीशियन के पास गया, तो उन्होंने बोन मेरो टेस्ट कराने को बोला. उसकी रिपोर्ट जब आई तो पता चला कि ब्लड कैंसर है. फिर इलाज चलता रहा. 2018 में थोड़ा बेटर फील हुआ तो लगा काफी साल गैप हो गया है. कहीं एडमीशन लेना जरूरी है. तो बरेली से BMS में एडमीशन ले लिया. घर से दूर पड़ने पर बनारस ट्रांसफर करवा लिया. जिससे अप-डाउन में आसानी रहे.

आशीष ने बताया कि जब उन्हें ब्लड कैंसर का पता चला, तो पहले उन्हें PGI रेफर किया गया. वहां से उन्हें एम्स भेजा गया. शुरू में तो नहीं पर जब बार-बार वो ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल जाने लगे तो उनके मन में ऑन्कोलॉजिस्ट बनने की इच्छा जागी. और कैंसर से जूझ रहे लोगों को बेहतर इलाज देने का मन बना लिया.

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BMS की पढ़ाई के साथ-साथ आशीष ने अमित त्रिपाठी की क्लासेस जॉइन कर ली. और नीट की तैयारी शुरू कर दी. आर्थित स्थिति देखते हुए उन्हें फ्री में क्लासेस और मुफ्त में स्टडी मटेरियल कोचिंग की तरफ से मुहैया कराया गया. आशीष ने बताया कि वो अपने गांव में कैंसर के लिए अच्छी सुविधा और इलाज देना चाहते हैं. जिस  पर वो काम भी करेंगे.

परिवार की बात करें तो आशीष के एक बड़े भाई हैं, जो LIC में डेवलेपमेंट ऑफिसर हैं. उनकी शादी हो चुकी है. आशीष की चार बहने हैं. चारों की शादी हो चुकी है. आशीष ने बताया कि अब वो ब्लड कैंसर से पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं. और डॉक्टर्स का कहना था कि ऐसा उनके पॉजिटिव थिंकिंग की वजह से पॉसिबल हुआ है. आशीष की ऑल इंडिया रैंक 16037 और OBC कैटगरी के आधार पर 6328 रैंक मिली है.

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