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ब्रिटेन के चुनावों भारतीय मूल का वोटर कैसे बना बेहद खास? ऋषि सुनक और कीर स्टार्मर दोनों लुभाने में जुटे

UK General Election 2024: ओपिनियन पोल्स की माने तो Keir Starmer की Labour Party को सत्ता मिलने वाली है. वहीं, Conservative Party को इतिहास की सबसे बुरी हार मिलने वाली है.

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ब्रिटेन के चुनाव में लेबर पार्टी को बहुमत मिलने की संभावना जताई जा रही है. (फ़ोटो - रॉयटर्स)

ब्रिटेन में चुनाव हो रहे हैं. 22 मई को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने चुनाव कराने काे एलान किया था. उसी दिन से यूके में चुनाव प्रचार ज़ोरों पर है. इस पूरे चुनाव प्रचार के दौरान ही नेता भारतीय मूल के लोगों को लुभाते दिखे. इसके लिए नेता हिंदू मंदिर पहुंचते और भारतीयों को एड्रेस करते दिखे. अब चुनाव में इसके क्या रिजल्ट निकलते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा. ओपिनयन पोल्स में कीर स्टार्मर के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी को चुनाव में भारी जीत (Keir Starmer's Labour winning UK Election) मिलते दिखाया जा रहा है. ओपिनियन पोल्स की मानें, तो लेबर पार्टी 14 साल के कंजरवेटिव पार्टी कार्यकाल के बाद उन्हें सत्ता से बेदखल करने जा रही है. इस बीच समझना ज़रूरी हो जाता है कि ब्रिटेन में कितनी पार्टियां हैं, कौन जीत रहा, चुनाव की प्रक्रिया क्या है, कौन चुनाव लड़ सकता है और कौन वोट दे सकता है.

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ओपिनियन पोल्स में लेबर पार्टी की जीत

ओपिनियन पोल्स के मुताबिक़, कीर स्टार्मर की लेबर पार्टी भारी जीत की तरफ़ बढ़ रही है. माना जा रहा है कि कंजरवेटिव पार्टी के शासन में अंदरूनी कलह और उथल-पुथल दिखे. इस कारण आठ सालों में 5 प्रधानमंत्री बने हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, पोल्स में बताया गया कि कीर स्टार्मर की लेबर पार्टी को संसद में 650 सीटों में से 484 सीटें मिल रही हैं. ये लेबर पार्टी के टोनी ब्लेयर द्वारा 1997 में जीती गई 418 सीटों से कहीं ज़्यादा और पार्टी के इतिहास में भी सबसे ज़्यादा है. पिछले 14 सालों से सत्तानशीन कंजर्वेटिव्स को मात्र 64 सीटें मिलने का अनुमान है. अगर ऐसा हुआ, तो ये 1834 में पार्टी की स्थापना के बाद से सबसे कम सीटें होंगी.

भारतीयों को रिझाने की कोशिश

ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 18 लाख से अधिक है. वो ब्रिटेन की राजनीति में भी दखल रखते हैं. 2019 के चुनाव में लगभग 15 भारतवंशी हाउस ऑफ़ कॉमंस पहुंचने में सफल रहे. मौजूदा प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी भारतीय मूल के हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, ब्रिटेन में कुल 10 लाख हिंदू हैं. उन्हें लुभाने के लिए नेता धर्म का कार्ड खेलते भी दिख रहे हैं. कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ख़ुद BAPS स्वामी नारायण मंदिर पहुंचे थे. उनके प्रतिद्वंदी कीर स्टार्मर भी मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे थे. मंदिर के जरिए ये नेता हिंदू वोटों पर अपनी नज़रें टिकाए हुए हैं.

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दो सदन

भारत के संविधान और चुनाव प्रक्रिया में ब्रिटेन की ही सबसे ज़्यादा झलक दिखती है. लिहाजा ब्रिटेन की चुनाव प्रक्रिया में भी भारत से कई समानताएं हैं. भारत की ही तरह ब्रिटेन की संसद में भी दो सदन हैं.

ऊपरी सदन का नाम हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स है. इसके सदस्यों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है. दिसंबर 2023 में हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में 784 सदस्य थे. इनमें राजनेता, अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञ और कुछ धार्मिक पदों पर बैठे अफ़सर थे. ज़्यादातर सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राजा करते हैं. हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स अपॉइंटमेंट कमिशन, प्रधानमंत्री के प्रस्तावित नामों पर अड़ंगा लगा सकता है. हालांकि, अंत में प्रधानमंत्री की सलाह सर्वोपरि है. हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सदस्यों को पियर्स कहते हैं.

निचले सदन का नाम हाउस ऑफ़ कॉमंस है. इसमें 650 सीटें हैं. इसके सदस्यों का चुनाव जनता के डायरेक्ट वोट से होता है. इसमें अलग-अलग राज्यों के लिए सीटें निर्धारित हैं. मसलन- इंग्लैंड के लिए 543 सीटें, स्कॉटलैंड के लिए 57, वेल्स के लिए 32 सीट, नॉदर्न आयरलैंड के लिए 18 सीटें शाम हैं. इसी हाउस ऑफ़ कॉमंस की 650 सीटों के लिए चुनाव हुआ है.

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कैसे हुआ चुनाव?

प्रक्रिया लगभग भारत जैसी है. अलग-अलग सीटों के लिए इच्छुक उम्मीदवारों ने नामांकन भरा. उनके आवेदन की जांच-पड़ताल हुई. नाम फ़ाइनल होने के बाद बैलेट पेपर पर नाम चढ़ा. ब्रिटेन में बैलेट पेपर से वोटिंग होती है. वोटिंग वाले दिन योग्य वोटर्स ने अपनी पसंद के कैंडिडेट के नाम पर मुहर लगाई. जिस कैंडिडेट को सबसे ज़्यादा वोट मिले, वो विजेता. वे संबंधित सीट के प्रतिनिधि बनकर संसद पहुंचेंगे.

कौन लड़ सकता है चुनाव?

अधिकतर कैंडिडेट किसी ना किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं. वैसे, निर्दलीय भी चुनाव लड़ा जा सकता है. चुनाव में खड़े होने के लिए उम्र 18 बरस या उससे ज़्यादा हो, उसके पास ब्रिटेन या रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड की नागरिकता होनी चाहिए.

कौन चुनाव में खड़े नहीं हो सकते?

पुलिस फ़ोर्स के सदस्य, फ़ौज के सदस्य, सिविल सर्वेंट्स और जज, ऐसे लोग, जिनके ऊपर इंग्लैंड या वेल्स में दीवालियेपन से जुड़े प्रतिबंध लगे हों, जिन्हें नॉदर्न इंग्लैंड में दीवालिया घोषित कर दिया गया हो, स्कॉटलैंड में जिनकी संपत्ति ज़ब्त हुई हो.

वोट कौन डाल सकते हैं?

यूके की कुल आबादी लगभग 06 करोड़ 70 लाख है. वोट डालने के लिए न्यूनमत उम्र 18 बरस होनी चाहिए. यूके की किसी Constituency में रजिस्टर होना चाहिए और किसी अदालत ने वोट डालने के अयोग्य ना ठहराया हो.

कैसे बनती है सरकार?

जैसा कि बताया गया, हाउस ऑफ़ कॉमंस में कुल 650 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए साधारण बहुमत की ज़रूरत होती है. यानी 326. जो भी पार्टी या गठबंधन 326 या उससे ज़्यादा सीटें हासिल करेगा, उसे सरकार बनाने का न्यौता दिया जाएगा. उस पार्टी या गठबंधन का नेता ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनता है.

कौन-कौन सी पार्टियां हैं?

तीन मुख्य पार्टियां हैं.
1. कंज़र्वेटिव पार्टी. इसे टोरी पार्टी भी कहते हैं. स्थापना 1834 में हुई. दिग्गज प्रधानमंत्रियों में नेविल चैम्बरलिन, विंस्टन चर्चिल, मार्गेट थैचर, डेविड कैमरन और पिछले प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन शामिल हैं. मौजूदा प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी कंज़र्वेटिव पार्टी के ही सांसद हैं. 2010 से ब्रिटेन में इसी पार्टी की सरकार है. आख़िरी चुनाव दिसंबर 2019 में जीते थे. फिलहाल उनके पास हाउस ऑफ़ कॉमंस में 344 सीटें हैं.

2. लेबर पार्टी. स्थापना फ़रवरी 1900 में हुई. लेबर पार्टी से चर्चित प्रधानमंत्री रहे- रेम्से मैक्डोनॉल्ड, क्लीमेन्ट एटली, हेरॉल्ड विल्सन, टोनी ब्लेयर और गॉर्डन ब्राउन. लेबर पार्टी के मौजूदा नेता कीर स्टार्मर हैं. चुनाव में लेबर पार्टी जीत की प्रबल दावेदार है. अगर लेबर पार्टी ने सरकार बनाई, तो स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. लेबर पार्टी 2010 के बाद से सत्ता में नहीं आई है. फिलहाल हाउस ऑफ़ कॉमंस में उनके पास 205 सीटें हैं. लेबर पार्टी को इंग्लैंड के अलावा वेल्स में अच्छा-ख़ासा समर्थन मिलता है.

3. स्कॉटिश नेशनल पार्टी (SNP). स्थापना 1934 में हुई. स्कॉटलैंड में इसी पार्टी की सरकार चलती है. इनका प्रभाव स्कॉटलैंड तक सीमित है. SNP स्कॉटलैंड की पूर्ण आज़ादी की वक़ालत करती है. उनके खाते में हाउस ऑफ़ कॉमंस की 43 सीटें हैं. इसके मौजूदा लीडर हैं, जॉन स्वीनी. उन्होंने हमज़ा युसुफ़ की जगह ली है. स्वीनी ने 04 जुलाई को चुनाव कराने के फ़ैसले की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि 04 जुलाई को स्कॉटलैंड में छुट्टियों की शुरुआत होती है. इसलिए, चुनाव में बहुत सारे लोग हिस्सा नहीं ले पाएंगे.

इन सबके अलावा, लिबरल डेमोक्रेट्स, डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी, सिन फ़ेन और न्यू रिफ़ॉर्म पार्टी भी कतार में है. हंग असेम्बली की स्थिति में इन पार्टियों की अहमियत बढ़ सकती है. 

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