जब आप बाबू सोना वाली रिलेशनशिप में होते हैं तो एक सवाल पूछते हैं. अगर मुझे कुछ हो जाए तो तुम क्या करोगे. तुम बिन 2 उसी का जवाब है. तुम बिन 2001 में आई थी. ये उसका रीमेक है. ये बात मैं क्यों लिख रहा हूं? आप आगे पढ़ना न चाहो तो देख लो. https://www.youtube.com/watch?v=I_V0-0jpYhw आप सिनेमा हॉल में घुसते हो, तीन डायलॉग बाद पहला गाना आ जाता है. है. तुम बिन में क्या होता है आपने देखा है. वो स्लीपर हिट थी. म्यूजिकल हिट थी. इस फिल्म पर भी इस चीज का दबाव था, समझ नहीं आता जब भी पहाड़ों पर शूट होता है ये हीरोइन को इतनी ठंड में भी कपड़े काहे नहीं पहनाते. नेहा शर्मा को ठंडाता नहीं क्या?
अनुभव सिन्हा की फिल्म है, उनकी नीयत अच्छी थी, ऐसी फिल्म दिखाने की जो घरवाले देखें, जिसमें मारपीट न हो ,खून खच्चर न हो. उनकी अम्मां भी देख सकें, उनने ही लिखी भी. बस बनाते थोड़ा ठहर के तो अच्छा था.
फिल्म एडिनबर्ग में शूट हुई है. इसलिए इसमें खूब सारा स्कॉटलैंड है. ओल्ड टाउन है, विक्टोरिया स्ट्रीट है. ऐसा लगता है अच्छा वाला सीपी और अच्छे वाले हौज खास विलेज आ गए हैं. टिपिकल NRI वाली फिल्म नहीं है, जो देश-संस्कार की माला जपें. कबूतर को दाना चुगाएं. ये उन NRI लोगों की लाइफ भी दिखाती है जो वहां पासपोर्ट बस लेकर नहीं रहते रच बस भी गए हैं. उनके कमरे के पोस्टर में वहां का कल्चर टपकता है, फ्रिज का रंग भी यूनियन जैक याद दिलाता है. नेहा शर्मा अच्छी लगती हैं, मुझे भी बाकी सबको भी, उनके मसूढ़े खूब दिखे हैं फिल्म में. आदित्य सील लीड रोल में हैं, शुरू में उनके डायलॉग फंस रहे थे, फिर आधे के बाद आप उनका अटकना भूल जाते हो, उनको देखने लगते हो. वो फिल्म की सबसे अच्छी चीज है. वो बहुत क्यूट है, बहुत अच्छा दिखता है. उसका रोल बहुत मीटी था. एक्सप्रेशन कम हैं उसके पास पर ओके वो गुडलुकिंग है.
फिल्म में तीन अच्छी चीजें थीं, एक लड़की का पाकिस्तानी बॉयफ्रेंड, और उसकी मां की सीख, जो आज के टाइम में हमारे लिए जरुरी हो जाती है. कल्चर से भागना नहीं चाहिए और रिलीजन से डरना नहीं चाहिए. एक सीन में उसी लड़की ने 'रिफ्यूजीज वेलकम' की टी शर्ट पहनी थी. ये अच्छा है, आप विदेश दिखाते हो तो वहां बैकग्राउंड में क्या घट रहा है उससे भी फर्क पड़ना चाहिए. एक गे कपल था. और बहुत अच्छे से दिखाया कि गे होना भी अब फिल्मों में आम मान लिया है, कोई उनकी खिल्ली नहीं उड़ाता और सुकून होता है कि बॉलीवुड अपने होमोफोबिया से बाहर आ रहा है.
फिल्म कैसी है, ओके है अगर आपको पता है आप क्या देखने जा रहे हो. मुंबइया फिल्म है, सेंटी है, लाइफ और लव के कई फंडे दिए गए हैं. नेहा शर्मा और कंवलजीत सिंह एक सीन अच्छे हैं. लास्ट में कुछ ट्विस्ट हैं. सीक्रेट हैं. लेकिन वो बहुत बाद में आते हैं, सेकंड हाफ लंबा है, आपको जब लगता है फिल्म खत्म हो गई है, वो फिर शुरू हो जाती है.

इस फिल्म में तुम बिन का क्या है? ये बताए बिना मैं रह नहीं सकता. इस फिल्म में संदली सिन्हा थीं बे. एक सीन में वो नेहा शर्मा को दिलासा देने आती हैं,
जब रोना आए फूट के रो लो, जब प्यार आए गले लगा लो वाला डायलॉग मार निकल लेती हैं. और आप वाओ... हो जाते हो, अच्छा था वो पार्ट. बीच-बीच में जगजीत जी सुनाई देते हैं. कहानी भी वैसी ही है, अमर मरता है तो शेखर आ जाता हो, बिजनेस में हीरोइन की हेल्प करता है, अबकी नहीं बताएंगे. सीक्रेट है. फिल्म वाले देखें. कैश देके देखने मत जाना, नोट खर्च करने के पहले सोचना बाकी टाइम हो तो देखने चले जाओ. https://www.youtube.com/watch?v=qMytogZ18M0