हॉलीवुड की एक पिक्चर आई थी- दी अदर एंड ऑफ द लाइन. फिल्म में श्रेया सरन मेन फीमेल एक्टर की भूमिका में थीं. हीरो जब उनसे मिलने मुंबई आते हैं तो सड़क पर भयंकर ट्रैफिक होता है. चारों तरफ से हॉर्न की आवाजें आती हैं. 'हॉर्न' यहां कीवर्ड है, याद रखिएगा. एक और पिक्चर देखी, नाम था स्लमडॉग मिलियनेयर. यहां तो भारत को गाड़ियों से गूंजते हॉर्न के साथ गंदगी वाला देश भी बताया गया था. ऐसी एक नहीं अनगिनत फिल्में हैं, जहां हमारे शहरों को हॉन्किंग यानी गाड़ियों के हॉर्न से भरपूर शहर बताए जाते हैं. और बताएं भी क्यों ना जाएं, आप किसी भी शहर की मुख्य सड़क पर एक बार निकल जाइए, दिन हो या रात हॉर्न की आवाज सुनाई देती ही है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शहर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां हॉन्किंग यानी सड़कों पर हॉर्न बजाना पूरी तरह से वर्जित है. इस शहर का नाम है आइजोल. मिजोरम की राजधानी है. इसे देश की पहली नो हॉन्किंग सिटी का दर्जा प्राप्त है.
हॉर्न बजा-बजाकर परेशान करने वालों को मिज़ोरम के इस शहर से सीखना चाहिए
यहां लोग अपनी मोटरसाइकिलों में हैंडल लॉक नहीं लगाते हैं. कुछ इलाकों में दुकानें भी बिना दुकानदार के चलती हैं.


वैसे तो ये इस शहर की अनेक खूबियों में से एक है. बाकी खूबियां भी आपको बताएंगे लेकिन पहले हॉन्किंग की बात कर लेते हैं. लल्लनटॉप की टीम मिजोरम की यात्रा पर है. यात्रा के दौरान पूरे आइजोल शहर का भ्रमण किया गया. ये शहर देश के बाकी शहरों से काफी अलग लगा. वजह थी यहां के लोगों का सिविक सेंस यानी नागरिक भावना. आसान शब्दों में कहें, लोग इस शहर को अपना घर मानते हैं. इसीलिए इसकी बेहतरी के लिए बनाए गए नियमों का दिल खोलकर पालन करते हैं और दूसरों से भी करवाते हैं. लगभग 4 दिन घूमने के बाद भी लल्लनटॉप की टीम को एक भी गाड़ी से हॉर्न की आवाज सुनाई नहीं दी.
हॉर्न के अलावा लेन ड्राइविंग इस शहर की एक बड़ी खासियत है. कितना भी जाम हो, कितनी भी भीड़ हो, इस शहर के लोग ज्यादातर लेन में ड्राइविंग करते हैं. सड़कें संकरी हैं, सिर्फ दो लेन की सड़क पर दोनों तरफ से वाहन निकलते रहते हैं लेकिन कोई ओवरटेक करने की कोशिश भी नहीं करता है. अगर किसी की गाड़ी खराब हो जाए तो पीछे वाले लोग बगल से निकलते नहीं, बल्कि रुक कर उस गाड़ी को ठीक कराने का प्रयास करते हैं. यहां तक कि कुछ लोग तो खुद भी ट्रैफिक हवलदार की भूमिका में आ जाते हैं.

अगली खूबी है यहां का ऑड ईवन फॉर्मूला. जी हां, जैसा हमने दिल्ली में देखा था, वैसा ही कुछ यहां भी है. लेकिन थोड़ा अलग. यहां सोमवार को उन प्राइवेट गाड़ियों के चलने पर बैन है, जिनके आखिरी के अंक 1 या 2 हैं. ऐसे ही मंगलवार को 3 और 4 नंबर की गाड़िया नहीं चलती हैं, शुक्रवार तक ऐसे चलता है. शनिवार और रविवार को सभी गाड़ियों को रियायत मिल जाती है.
रास्ते से गुजरते वक्त दीवारों पर खूब सारे पोस्टर दिखे. सभी पोस्टर्स में किसी ना किसी नेता को वोट देने की अपील की जा रही थी. बड़े होर्डिंग कहीं नजर नहीं आए. बस यही छोटे-छोटे पोस्टर यहां चुनावी प्रचार का एक जरिया है. ट्रैफिक के अलावा यहां चुनाव में भी नो हॉन्किंग वाला सिस्टम चलता है. यानी चुनाव प्रचार में कोई शोर शराबा नहीं, घर घर जाकर प्रचार नहीं, ना किसी से वोट मांगना, ना कोई रैली, ना कोई सभा. यानी लाउडस्पीकर पर टोटल बैन. यूएस की प्रेसिडेंशियल डिबेट की तरह मिजोरम में भी सीएम कैंडिडेट्स डिबेट करते हैं. इस डिबेट के जरिए लोग इन कैंडिडेट्स के बारे में जान पाते हैं और उन्हें वोट करने में आसानी होती है.
इन सबके अलावा ईमानदारी भी इस शहर की बड़ी पहचान है. यहां लोग अपनी मोटरसाइकिलों में हैंडल लॉक नहीं लगाते हैं. तो वहीं आस-पास के इलाकों में कई दुकानें बिना दुकानदार के चलती हैं. यानी बस सामान रखा है, उसके बगल में एक पैसों का डिब्बा. समान उठाइए, पैसे डालिए और चलते बनिए. हालांकि ये वाला सिस्टम गांवों में सब्जी या फलों के मामलों में ज्यादा चलन में है. इस शहर में आप जितने दिन गुजारेंगे शायद इसको उतना जान पाएंगे. यही वजह है कि आइजोल देश के बाकी शहरों से काफी अलग है.

हमारी तो यही गुजारिश है, देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों को एक बार इस शहर को देखना चाहिए और इसके बारे में जानना चाहिए. क्योंकि जब जानेंगे तभी तो सीखेंगे.
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