ममता दहेज़ के 51 हजार नहीं ला पाई थी तो उसके पति और तीन जेठों ने पहले उसको कुछ सुंघा दिया. फिर उसके हाथ-पैर बांध मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. मशीन से शरीर पर जगह-जगह गोदा. एक जेठ ने ममता के घुटनों के ऊपर चाकू से गोद डाला. और दो लोगों ने उसके साथ रेप किया. ये दो लोग ममता के जेठ और ससुर थे.अब इस मामले में नया बखेड़ा खड़ा हो गया है. महिला आयोग जब ममता से मिलने पहुंचा तो आयोग की मेंबर्स उसके साथ सेल्फी खींचने लगीं. सेल्फी खींचने के वाकये की फोटोज भी आईं हैं. आयोग की मेंबर सौम्या गुर्जर इन फोटोज में मुस्कुराते हुए नजर आ रही हैं.


ये सेल्फी क्यों ली गई, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. अचानक खींची गई तस्वीर के पीछे और आगे क्या हुआ, इसका अनुमान लगाना तो सरासर बेवकूफी है. जब महिला आयोग की अध्यक्ष कहती हैं कि ये ममता को कम्फर्टेबल महसूस कराने के लिए किया गया, ये सही हो सकता है. लेकिन हम इसे मात्र 'बेनिफिट ऑफ़ डाउट' भर मान सकते हैं.लेकिन ये घटना हमें एक बड़े मुद्दे की ओर ले जाती है. वो है सेल्फी कल्चर और 'पीड़ित' होने से जुड़ा एक अजीब तरह का ग्लैमर. रेप होना शायद दुनिया की सबसे बुरी तरह की हिंसा है. जिसमें रेप करने वाला अपनी सत्ता का मुहर लगाने के लिए किसी भी हद तक जाता है. सिर्फ अपनी ताकत का परिचय देने के लिए. जिनका रेप होता है, वो इतने शारीरिक और मानसिक ट्रॉमा से होकर गुजरते हैं, जिसे समझना दूसरों के लिए नामुमकिन है. ऐसे समय में सबसे जरूरी होता है कि जिसका रेप हुआ है, उसे जल्द से जल्द न्याय मिले. और साथ में उसे सहयोग, शांति और हिम्मत दी जाए. लेकिन हमारा मीडिया और सोशल मीडिया ठीक इसका उल्टा करता है. जब एक रेप का मुद्दा बड़ा बन जाता है, तो सब कैमरा और माइक लेकर उसके घर घुस जाते हैं जिसका रेप हुआ. पहले उसका दर्द बयां करते हैं. फिर उसे हीरो बनाते हैं. मानो उसने कोई कुर्बानी दी हो. फिर उस पर खबर बना-बनाकर बेचते हैं. उसे तब तक भुनाते हैं, जब तक लोग उससे असंवेदनशीलता की हद तक ऊब न जाएं. और इस तरह रेप विक्टिम को 'हीरो', 'शहीद', जाने क्या-क्या बुलाते हैं. फिर बात संसद तक पहुंच जाती है, और विपक्ष बताता है कि कैसे शासन में बैठी सरकार महिलाओं के लिए कुछ नहीं करती. और सारा ट्रॉमा, जो औरत ने भोगा है, गौण हो जाता है. दुर्भाग्य से, रेप के जो भी मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दे बनते हैं, उसमें औरत को मार डाला जाता है. लेकिन ममता जीवित है, और ये ख़ुशी की बात है. लेकिन उसके जीवन में कैमरे लेकर घुस जाना, और उसकी तस्वीरें फेसबुक पर चला देना, परोक्ष रूप से ये कहना है कि वो कोई स्टार है. जैसे उससे मिलना, उसके साथ तस्वीर खींचना गर्व की बात है. ये सच है कि रेप हो जाना कोई ऐसी शर्म की बात नहीं कि लड़की को मुंह छिपाना पड़े. लेकिन ऐसी गर्व की बात भी नहीं कि उसके साथ तस्वीरें खींची जाएं. ऐसे मौके पर रघुवीर सहाय की एक बहुत शानदार कविता याद आती है.
कैमरे में बंद अपाहिज
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम समर्थ शक्तिवान हम एक दुर्बल को लाएंगे एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या आपाहिज हैं ? तो आप क्यों अपाहिज हैं ? आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है ? (कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा) हां तो बताइए आपका दुख क्या है जल्दी बताइए वह दुख बताइए बता नहीं पाएगा सोचिए बताइए आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है कैसा यानी कैसा लगता है (हम खुद इशारे से बताएंगे कि क्या ऐसा ?) सोचिए बताइए थोड़ी कोशिश करिए (यह अवसर खो देंगे ?) आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते हम पूछ-पूछ उसको रुला देंगे इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का करते हैं ? फिर हम परदे पर दिखलाएंगे फूली हुई आंख की एक बड़ी तसवीर बहुत बड़ी तसवीर और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी (आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे) एक और कोशिश दर्शक धीरज रखिए देखिए हमें दोनों एक संग रुलाने हैं आप और वह दोनों (कैमरा बस करो नहीं हुआ रहने दो परदे पर वक्त की कीमत है) अब मुसकुराएंगे हम आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम (बस थोड़ी ही कसर रह गई) धन्यवाद.
एक वो भी किस्सा याद आता है जब श्रीलंका के एक आदमी ने अपने दादाजी की लाश के साथ सेल्फी अपलोड कर दी थी.