ये एक फ़ेक न्यूज है. स्थानीय लोगों के बहाने अपनी बात थोपी जा रही है. सुदर्शन न्यूज नाम का कथित न्यूज चैनल इस झूठ को फैला रहा है. इस कथित न्यूज चैनल के मुख्य चेहरा पत्रकार सुरेश चह्वाणके को सहज शब्दों में लताड़ते हुए बुलंदशहर पुलिस ने अफवाह न फैलाने को कहा. साथ में फैक्ट दुरुस्त करवाया. बताया कि इज्तेमा आराम से निपट गया था.
इज्तेमा जहां हुआ उस जगह का नाम दरियापुर है. जहां गुंडों ने दरोगा को घेरकर हत्या की वो जगह चिंगरावती गांव है जो स्याना थाने में लगती है. दोनों के बीच की दूरी लगभग 50 किलोमीटर दूर है. उसके बावजूद 3 दिसंबर को पूरे दिन इस कथित न्यूज चैनल सुदर्शन पर ये फ़ेक न्यूज धड़ल्ले से चलती रही. यहां तक कि पुलिस के कहने के बावजूद बंदा अपने टेक से हटा नहीं बल्कि झूठ को जस्टिफाई करता रहा. जो सुबूत के तहत वो वीडियो पोस्ट कर रहा था उसमें किसी ने भी इज्तेमा का जिक्र एक बार भी नहीं किया था.
सुरेश चह्वाणके पर फ़ेक न्यूज फैलाने के लिए न तो पुलिस ने कोई एक्शन लिया, न ही ट्विटर ने. बहुत से लोगों ने इसको रिपोर्ट किया और ट्विटर पर ही घनघोर छीछालेदर हुई. ये बात भी सुरेश चह्वाणके ने ही ट्वीट की थी. उसके बावजूद ट्विटर ने कोई एक्शन नहीं लिया. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत यहां चरितार्थ हुई.
फ़ेक न्यूज फैलाने का सुदर्शन टीवी और सुरेश चह्वाणके का ये पहला मामला नहीं है. इसी साल जुलाई में बागपत में शाकिब नाम के एक लड़के की नाले में डूबकर मौत हो गई थी. तब सुदर्शन टीवी ने रिपोर्ट किया था "उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक मस्जिद में हुई मुस्लिमों की पंचायत में खुला फरमान आया है उत्तर प्रदेश पुलिस के जांबाजो की हत्या का." सुरेश चह्वाणके ने ये ट्वीट किया था.
इस केस की असलियत कुछ और थी. ऑल्ट न्यूज वेबसाइट के मुताबिक हुआ ये था कि पंचायत हुई थी. वहां शाकिब के पिता अनीस ने क्षेत्राधिकारी को टुकड़े टुकड़े करने की धमकी दी थी. ये पंचायत किसी मस्जिद में नहीं बाहर मैदान में हुई थी और वहां सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक मौजूद थे. पुलिस ने शाकिब का पोस्टमार्टम कराने के बाद दावा किया था कि उसकी मौत नाले में डूबने से हुई है. जबकि उसकी फैमिली कह रही थी कि उसका मर्डर हुआ है. बागपत पुलिस ने इस पर बयान दिया था कि गुस्से में धमकी दी गई है और इस पर भी मामला लिख लिया गया है. बागपत पुलिस ने उस वक्त ये बताया था.
इतने बड़े झूठ पकड़े जाने के बावजूद सुरेश चह्वाणके और उस कथित न्यूज चैनल ने न माफी मांगी ने अपने आर्टिकल, ट्वीट हटाए. बेशर्मी से वहीं टिके रहे. ये तो खैर पुलिस और ट्विटर की बात है. कानून से चिढ़ किस हद तक है ये सुरेश चह्वाणके की सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणियां पढ़ने के बाद पता चलता है. अदालत की अवमानना वाला सिस्टम बंद हो गया है शायद कानून में. जो जिसका मन कह रहा है वो वैसे बोल रहा है. संविधान से लेकर कानून तक किसी में आस्था नहीं, खुद ही वकील खुद ही जज बन गए हैं.
नवंबर 2016 में सुरेश चह्वाणके की पूर्व पर्सनल सेक्रेटरी ने उन पर रेप का आरोप लगाया था. जेल में बंद आसाराम का बेटा नारायण सांईं भी आरोपी था. आरोप ये था कि 2013 में नारायण सांईं के जेल जाने से पहले सुरेश चह्वाणके ने अपनी पर्सनल सेक्रेटरी को उसका इंटरव्यू लेने भेजा था. करोलबाग में स्थित उसके आश्रम में. वहीं नारायण सांईं ने उस लड़की का शोषण किया था. उस केस का क्या हुआ, कोर्ट को कोठा कहने वाले चव्हाणके ने कोर्ट का फैसला माना या नहीं इसकी कोई अपडेट नहीं है. उस शिकायत पर बिलबिलाए सुरेश चह्वाणके ने ये ट्वीट किया था.
13 अप्रैल 2017 को यूपी पुलिस ने सुरेश चह्वाणके को लखनऊ एयरपोर्ट से अरेस्ट किया था. ये पहली बार था कि किसी चैनल के प्रमुख को दो समुदायों के बीच में नफरत फैलाने, सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और चैनल के जरिए अफवाह फैलाने के जुर्म में अरेस्ट किया गया हो. कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था लेकिन 14 अप्रैल की शाम तक चह्वाणके की रिहाई हो गई थी. मामला ये हुआ था कि संभल में 29 मार्च 2017 को पुलिस पर हमला करते हुए कुछ पुलिस वालों को बंधक बना लिया था. उसके बाद पुलिस वहां माहौल शांत करने में लगी थी, सुदर्शन टीवी आग में घी डालने का काम कर रहा था. संभल को कश्मीर साबित किया जा रहा था. इस मुद्दे पर वहां के कांग्रेसी नेता इतरत हुसैन और सुरेश चह्वाणके के बीच ठनी हुई थी. इतरत हुसैन को भी अरेस्ट किया गया था, सुरेश को भी. लेकिन सुरेश चह्वाणके को छोड़ दिया गया था.
कौन सुरेश चह्वाणके शिरडी में पैदा हुए सुरेश चव्हाणके 12 साल से सुदर्शन न्यूज नाम का चैनल चला रहे हैं. ये चैनल पहले पुणे से ऑपरेट होता था, जिसे बाद में नेशनल चैनल बनाकर नोएडा लाया गया. चव्हाणके की उम्र 45 साल है. इनका दावा है कि तीन साल की उम्र में ही इन्होंने RSS जॉइन कर लिया था, जिसके बाद ये 20 सालों तक संघ शाखाओं में जाते रहे. वहां रहते हुए इनका संघ के कई बड़े नेताओं से संपर्क हुआ. बाद में ABVP जॉइन करके पॉलिटिक्स में एक्टिव हो गए.
चव्हाणके के बारे में अधिकतर जानकारी चैनल शुरू होने के बाद की है. इससे पहले की जानकारी के अलग-अलग वर्जन हैं. दावा है कि शिरडी में रहते हुए ये एक टेंट हाउस में काम करते थे और इनके पिता शिरडी मंदिर के बाहर फूलों की दुकान चलाते थे. सुदर्शन न्यूज का एक सीनियर स्टाफ इसका उलट बताता है. उनके मुताबिक, ‘अगर कोई इतना गरीब होता, तो इतनी जल्दी इतना बड़ा चैनल कैसे खड़ा कर लेता. वह संपन्न परिवार से थे.’ सुदर्शन न्यूज में कुछ साल पहले काम कर चुके एक पत्रकार दोनों ही बातों को गलत बताते हैं कि वह अधिकांश लोगों की तरह निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से हैं.
सुदर्शन न्यूज के नाम के पीछे दावा किया जाता है कि पूर्व संघ प्रमुख केएस सुदर्शन से अपने संबंध और प्रगाढ़ करने के लिए चव्हाणके ने चैनल का नाम सुदर्शन न्यूज रखा, जबकि इनके करीबी बताते हैं कि चैनल का नाम इनके छोटे बेटे के नाम पर है. इस विवाद पर 2005 में राम माधव को सफाई देते हुए कहना पड़ा था कि सुदर्शन न्यूज संघ का चैनल नहीं है. माधव मूलत: संघ कार्यकर्ता हैं, जो अभी बीजेपी में जनरल सेक्रेटरी के पद पर हैं.खैर, इतना पढ़ने लिखने के बाद हमें पता चल गया कि देश की प्रमुख फ़ेक न्यूज फैक्ट्रियों में से एक ये कथित चैनल भी है. अब इसके खिलाफ कोर्ट, कानून, पुलिस वगैरह एक्शन लेते हैं या धंधा ऐसे ही चलता रहेगा, ये देखने वाली बात होगी.
देखें वीडियो, ये इज्तेमा होता क्या है:



















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