The Lallantop

'बधाई हो' में दादी बनी सुरेखा सीकरी को ब्रेन स्ट्रोक, पिछले 10 महीने से नहीं किया फिल्मों में काम

अभी-अभी इन्हें 'बधाई हो' के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला, जो इनका तीसरा नेशनल अवॉर्ड था.

Advertisement
post-main-image
फिल्म 'बधाई हो' के एक सीन में सुरेखा सीकरी और गजराज राव.
फिल्म 'बधाई हो' ने इस साल नेशनल अवॉर्ड्स में दो अवॉर्ड जीते. एक तो फिल्म को मिला और दूसरा अवॉर्ड मिला दादी का रोल करने वाली सुरेखा सीकरी को. ये सुरेखा का तीसरा नेशनल अवॉर्ड है. इससे पहले वो 'तमस' और 'मम्मो' जैसी फिल्मों के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी हैं. लेकिन अजीब बात ये है कि वो 'बधाई हो' से इतनी तारीफें बटोरने के बाद किसी फिल्म में नज़र नहीं आई हैं. यानी तकरीबन 9-10 महीने से उन्होंने किसी फिल्म में काम नहीं किया है. और इसके पीछे की वजह से उनकी तबीयत, जो पिछले काफी समय से खराब चल रही है.
हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए सुरेखा ने बताया कि 10 महीने पहले वो महाबलेश्वर में अपने एक प्रोजेक्ट की शूटिंग कर रही थीं. वहीं बाथरूम में गिरने की वजह से उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया था. ब्रेन स्ट्रोक तब होता है, जब आपके दिमाग वाले हिस्से में खून की सप्लाई बंद हो जाती है. तब से उनका इलाज ही चल रहा है इसीलिए उन्होंने कोई फिल्म साइन नहीं की है. सुरेखा ने एचटी के साथ बातचीत में आगे बताया कि उनके मुताबिक 'बधाई हो' को बेस्ट स्क्रीनप्ले का अवॉर्ड भी मिलना चाहिए था. लेकिन बधाई के बाद पब्लिक से मिले प्यार और नेशनल अवॉर्ड दोनों से ही वो काफी खुश हैं.
फिल्म 'बधाई हो' के एक सीन में अपनी बहू को ताने मारता सुरेखा का किरदार.
फिल्म 'बधाई हो' के एक सीन में अपनी बहू को ताने मारता सुरेखा का किरदार.

सुरेखा सीकरी ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1978 में आई चर्चित  फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' से की थी. ये फिल्म इंदिरा गांधी और संजय गांधी की राजनीति पर व्यंग्य थी. इस फिल्म को कई विवादों का सामना करना पड़ा. और फाइनली फिल्म की मास्टर कॉपी समेत सभी प्रिंट्स को गुड़गांव के मारुती फैक्ट्री में लाकर जला दिया गया.
गोविंद निहलानी डायरेक्टेड फिल्म 'तमस' में सुरेखा सीकरी ने राजो का किरदार निभाया था.
'तमस' के एक सीन में सुरेखा सीकरी. गोविंद निहलानी डायरेक्टेड इस फिल्म में उन्होंने राजो का किरदार निभाया था.

हालांकि इस फिल्म ने सुरेखा के लिए रास्ता खोल दिया था. आगे वो प्रकाश झा की 'परिणति' (1988), सईद मिर्ज़ा की 'सलीम लंगड़े पे मत रो' (1989), मणि कौल की 'नज़र', श्याम बेनेगल की 'सरदारी बेगम' और 'हरी-भरी' जैसी पैरलल फिल्मों में नज़र आईं. मेनस्ट्रीम में उनकी एंट्री हुई आमिर खान की फिल्म 'सरफरोश' (1999) से. इसके बाद उन्होंने 'रेनकोट' (2004), 'तुमसा नहीं देखा' (2004) और 'हमको दीवाना कर गए' (2006) जैसी फिल्मों में भी काम किया. टीवी पर भी 'बालिका वधू' में निभाए 'दादीसा' के किरदार ने भी उन्हें खूब मकबूलियत दी.
'बधाई हो' में उन्होंने एक ऊपर से रूखी लेकिन भीतर से नर्म दिल सास और नायक की दादी का रोल किया था. शुरुआत में उस किरदार को अपनी बहू के अधेड़ावस्था में प्रेग्नेंट होने से समस्या रहती है. लेकिन बाद में वो अपने बहू के लिए लोगों से भी लड़ जाती है. उनका ये कैरेक्टर फिल्म में काफी बिटर-स्वीट सा था. फिल्म में उनकी बहू-बेटे का रोल नीना गुप्ता और गजराज राव ने किया था.
बहू की प्रेग्नेंसी का मज़ाक उड़ाने वाले लोगों से भिड़कर बहू को सांत्वना देती सासू मां.
बहू की प्रेग्नेंसी का मज़ाक उड़ाने वाले लोगों से भिड़कर बहू को सांत्वना देती सासू मां.



इस मौके 'बधाई हो' का लल्लनटॉप रिव्यू भी देखते जाइए:

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement