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नागालैंड में 13 नागरिकों की हत्या का मामला, SC ने सेना के जवानों के खिलाफ मामले पर रोक क्यों लगाई?

2021 Nagaland killings: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में अगर केंद्र सरकार सैन्यकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देती है, तभी मामले को आगे ले जाया जा सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने सैन्यकर्मियों की पत्नियों की ओर से दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई बंद कर दी. (फोटो: आजतक)

सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को उन 30 सैन्यकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले को बंद कर दिया, जिन पर नागालैंड के 13 नागरिकों की हत्या का आरोप था. ये मामला साल 2021 में नागालैंड के 13 नागरिकों की मौत से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर केंद्र सरकार सैन्यकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देती है, तभी मामले को आगे ले जाया जा सकता है.

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जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने ये भी कहा कि कोर्ट का आदेश सेना को अपने कर्मियों के खिलाफ कोई भी अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से नहीं रोकेगा.

न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने सैन्यकर्मियों की पत्नियों की ओर से दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई बंद कर दी. इन याचिकाओं में नागालैंड पुलिस की ओर से दर्ज मामले को बंद करने की अपील की गई थी. 

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उनकी दलील थी कि राज्य सरकार को इस मामले में सैन्यकर्मियों पर मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है क्योंकि कर्मियों को सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (AFSPA), 1958 के तहत मिली छूट मिली है. उनकी याचिका में दलील दी गई है कि अगर इलाका AFSPA के तहत आता है, तो सैन्य कर्मियों के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही शुरू करने के लिए पहले केंद्र से मंजूरी लेने की जरूरत होती है.

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वहीं केंद्र सरकार ने सैन्य कर्मियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. इसे नागालैंड सरकार ने एक अलग याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस याचिका पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने हाल ही में नोटिस जारी किया है.

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नागालैंड सरकार ने दलील दी है कि उसके पास एक मेजर सहित सैन्य कर्मियों के खिलाफ ठोस सबूत हैं. फिर भी केंद्र सरकार ने उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से मनमाने तरीके से इनकार कर दिया.

नागालैंड में 4 दिसंबर, 2021 को हुआ क्या था?

घटना नागालैंड के मोन जिले की है. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक यहां के ओटिंग गांव के कुछ लोग तिरु के एक कोयला खदान में काम करने गए थे. खदानों पर काम करने जाने वाले लोग आमतौर पर शाम तक वापस आ जाया करते थे. लेकिन 4 दिसंबर को कोयला खदान गए 6 लोग वापस नहीं आए. ऐसे में गांव के लोग उन्हें खोजने निकले. उन्होंने देखा कि एक पिकअप वैन में 6 लोगों के शव खून से लथपथ पड़े थे. बाद में उन्हें पता चला कि सुरक्षाबलों ने पिकअप वैन पर फायरिंग की थी. 

इसके बाद माहौल भड़क उठा. हालात बेकाबू हो गए. बताया गया कि गुस्से में ग्रामीणों ने सुरक्षाबलों की गाड़ियों में आग लगा दी. फिर से गोलीबारी हुई और इस दौरान और 7 नागरिक मारे गए, एक सैन्यकर्मी की भी मौत हुई. सेना ने दावा किया कि ग्रामीणों ने सैनिकों पर हमला कर दिया था और उन्हें मजबूरी में गोली चलानी पड़ी. वहीं ग्रामीणों ने सेना के दावों को खारिज कर दिया और सेना पर अंधाधुंध गोलीबारी का आरोप लगाया.

पहली घटना, जिसमें 6 लोगों की मौत हुई थी, सेना ने उसे इंटेलिजेंस फेल का मामला बताया था. सेना ने कोयला खदान में काम करने वाले मजदूरों को उग्रवादी समझ लिया था. सेना को लगा था कि ये लोग प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) के NSCN (K) गुट से जुड़े हैं. सेना को इस गुट के मूवमेंट की जानकारी मिली थी. सेना ने ये भी दावा किया कि उन्होंने केवल तभी गोलीबारी की, जब पिकअप वैन ने रुकने के निर्देशों का पालन नहीं किया. जबकि नागालैंड पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद बताया कि दो जीवित बचे लोगों ने सेना के दावों को खारिज किया था.

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