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सिटीजनशिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, धारा 6A की वैधता बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 4:1 के बहुमत से दिया. CJI Chandrachud, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा बहुमत में थे. वहीं जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने असहमति जताई.

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बहुमत से लिया गया फैसला (फाइल फोटो- आजतक)

नागरिकता अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है (Supreme Court Citizenship Act). कोर्ट ने एक्ट की धारा 6A की वैधता को बरकरार रखा है. ये धारा असम में प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है. 17 अक्टूबर को CJI चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने फैसले में कहा कि ये धारा उन लोगों को नागरिकता देती है जो संवैधानिक और ठोस प्रावधानों के अंडर नहीं आते हैं.  6ए विधायी समाधान है.

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सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 4:1 के बहुमत से दिया. CJI चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा बहुमत में थे. वहीं जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने असहमति जताई. उनका कहना था कि ये संभावित प्रभाव से असंवैधानिक है.

दरअसल, 6ए धारा को 1985 में असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए संशोधन के बाद जोड़ा गया था.सेक्शन 6 के मुताबिक जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आए है वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं. हालांकि, 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के योग्य नहीं हैं.

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इसी मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए 17 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. याचिकाओं में कहा गया कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है. राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है. केंद्र ने कोर्ट में दलील थी कि देश में अवैध प्रवासियों की गिनती संभव नहीं है.

अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा,

असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान था वहीं 6ए विधायी समाधान. असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है. किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है.

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कहा गया कि 6A (3) का उद्देश्य दीर्घकालिक समाधान देना है. बांग्लादेश और असम समझौते के बाद प्रावधान का मकसद भारतीय नीति के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. भारत में नागरिकता प्रदान करने के लिए पंजीकरण व्यवस्था जरूरी नहीं है. धारा 6A को सिर्फ इसलिए अमान्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये पंजीकरण व्यवस्था का अनुपालन नहीं करती.

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