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कर्नाटक के बाद कांग्रेस को तेलंगाना जिताने वाले सुनील कानुगोलू MP-राजस्थान में क्यों फेल हो गए?

कर्नाटक और तेलंगाना में सुनील कानुगोलू की सफलता का कारण उन्हें दी गई छूट है. सेंट्रल लीडरशिप ने कानु की टीम को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी थी. राजस्थान और मध्यप्रदेश में गड़बड़ हो गई.

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कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के सूत्रधार बनने के कुछ महीनों बाद कानुगोलू ने तेलंगाना में भी पार्टी लिए पॉजिटिव रिजल्ट डिलीवर किया है. (फोटो- ट्विटर)

तेलंगाना में कांग्रेस के पहली विधानसभा चुनाव (Telangana assembly election) जीतने के बाद से चुनावी रणनीतिकार सुनील कानुगोलू चर्चा में आ गए हैं. कर्नाटक चुनाव के बाद वो फिर से पार्टी को एक और दक्षिण राज्य में जीत दिलाने में कामयाब हुए हैं. कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सिद्धारमैया सरकार ने सुनील कानुगोलू को कैबिनेट रैंक दी थी. इसके बाद उन्होंने तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख ए रेवंत रेड्डी के साथ मिलकर केसीआर को हराने की सफल स्ट्रेटजी बनाई. 

हालांकि, वो राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाए. कानुगोलू ने पार्टी की सेंट्रल लीडरशिप के निर्देशों के बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी कदम रखा था. लेकिन पार्टी दोनों राज्यों में हार गई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसका कारण ये था कि अशोक गहलोत और कमलनाथ, कानुगोलू से एकमत नहीं थे.

मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि कर्नाटक और तेलंगाना में सुनील कानुगोलू की सफलता का कारण उन्हें दी गई छूट है. सेंट्रल लीडरशिप ने कानु की टीम को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी थी. तेलंगाना में चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस की स्ट्रेटजी के तहत के चंद्रशेखर राव सरकार द्वारा किए गए कथित भ्रष्टाचार को उजागर किया था. जिससे लोगों ने काफी कनेक्ट किया.

कौन हैं सुनील कानुगोली?

सुनील कानुगोलू कर्नाटक के बेल्लारी जिले के रहने वाले हैं. कानु के पिता कन्नड़ भाषी हैं और मां तेलुगू. शुरुआती पढ़ाई लिखाई बेल्लारी में ही हुई. फिर पूरा परिवार चेन्नई चला गया. वहां आगे की पढ़ाई की. फिर गए अमेरिका. मास्टर्स की दो डिग्रियां लीं- एक फाइनेंस में और एक MBA की डिग्री. पढ़ाई के बाद मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी McKinsey में काम किया. साल 2009 में अमेरिका से भारत वापस आए गए.

सुनील की कांग्रेस पार्टी में एंट्री के पीछे एक कहानी है. साल 2022 में चर्चा चली थी कि प्रशांत किशोर 2024 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की चुनावी रणनीति तैयार करेंगे. प्रशांत ने राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात भी की थी. साथ ही सोनिया गांधी को एक प्रेजेंटेशन भी दिया था. लेकिन बात नहीं बनी. बताया गया कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल होने के लिए कहा गया. पर वो नहीं माने.

यहां से शुरू होती है सुनील कानुगोलू की कहानी. प्रशांत किशोर के साथ-साथ सुनील भी अपने प्रेजेंटेशन के साथ रेडी थे. उन्होंने पहले ही कांग्रेस के साथ काम करना शुरू कर दिया था. तभी कांग्रेस ने उनके सामने एक शर्त रख दी. शर्त स्थायी रूप से जुड़ने की. न की सलाहकार के तौर पर काम करने की. ये शर्त कानुगोलू को मंजूर थी. जिसके बाद पहला काम कर्नाटक और तेलंगाना का मिला. ये भी बताया जाता है कि 2024 लोकसभा चुनावों की पूरी जिम्मेदारी सुनील की टीम पर है.

बीजेपी के लिए भी प्रचार कर चुके हैं

2014 का लोकसभा चुनाव. इसमें सुनील कानुगोलू और प्रशांत किशोर ने बीजेपी के लिए एक साथ काम किया था. नरेंद्र मोदी की 'ब्रांड पीएम' छवि बनाने के लिए एक संगठन बनाया गया था. सिटिजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (CAG). प्रशांत किशोर ने इस CAG में कई बड़े संस्थानों से पढ़ाई करने वाले यंगस्टर्स को जोड़ा था. विदेशी यूनिवर्सिटी, IITs और IIMs से पढ़ाई कर चुके कई दिग्गज इससे जुड़े थे. सुनील भी इस टीम का हिस्सा थे. चुनाव से पहले 'चाय पे चर्चा', 3D रैली, सोशल मीडिया प्रोग्राम, मैराथन जैसे कई कैंपेन चलाए गए. नरेंद्र मोदी की छवि और बीजेपी की बड़ी जीत में CAG के कैंपेन का बड़ा रोल बताया जाता है.

प्रशांत किशोर ने बाद में CAG का नाम बदल दिया. कुछ लोगों के साथ मिलकर उन्होंने CAG को इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) बना दिया. किशोर बीजेपी से भी अलग हो गए. लेकिन सुनील कानुगोलू नहीं. वो बीजेपी के साथ काम करते रहे. प्रशांत किशोर से अलग होने के बाद साल 2016 में सुनील ने डीएमके के लिए काम किया. चर्चित 'नमाक्कु नामे' कैंपेन उन्हीं का डिजाइन किया हुआ था. डीएमके चुनाव हारी थी, लेकिन स्टालिन बड़े नेता बनकर उभरे. सुनील ने इसके बाद दोबारा बीजेपी के लिए काम शुरू कर दिया था.

प्रशांत किशोर के साथ काम करने के दौरान ही अमित शाह और सुनील के अच्छे समीकरण बने. बीजेपी ने जब 'असोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स' को स्पॉन्सर किया तो उसको लीड करने वालों में सुनील कानुगोलू भी शामिल थे. 2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी के कैंपेन की पूरी जिम्मेदारी सुनील की ही थी. ओबीसी सम्मेलन जैसे इवेंट सुनील की रणनीति ही बताई जाती है.

हालांकि, कुछ महीनों बाद समीकरण बदल गए. सुनील भी बीजेपी से अलग हो गए. फिर 2019 लोकसभा चुनाव में AIADMK के लिए कैंपेन बनाया. पंजाब में अकाली दल के साथ भी काम किया. 2021 विधानसभा चुनाव में डीएमके की मदद के लिए आए.

व्यक्तिगत रूप से सुनील काफी लो प्रोफाइल हैं. मीडिया की चमक-धमक से दूर रहने वाले. परदे के पीछे से काम करना ज्यादा पसंद करते हैं. इसलिए कई चुनावों में राजनीतिक दलों को जीत दिलाने के बावजूद कभी मीडिया के सामने नहीं आए. सुनील की मौजूदगी किसी भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नहीं है. वॉट्सऐप पर भी अपनी फोटो नहीं लगाते हैं. यहां तक कहा जाता है कि उनकी इतनी कम फोटो सार्वजनिक हैं कि मीडिया वाले कभी-कभी गलत तस्वीर लगा देते हैं.

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