शुरू से शुरू करते हैं. पिच्चर थी गुलजार की. वही गुलजार जिनके लिखे गानों को सुनकर आप बड़े हुए हैं. बात सन 1975 की ही है. उसी साल जिस साल इमरजेंसी लगी थी. कहीं से हवा उड़ गई कि ये पिच्चर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी है. साउथ इंडिया में पोस्टर छप गए, जिनमें लिखा था -
अपनी प्रधानमंत्री को बड़े पर्दे पर देखें.दिल्ली के एक अखबार में एक विज्ञापन छप गया, जिस पर लिखा था -
आजाद भारत की एक महान महिला नेता की कहानी.

इंदिरा गांधी ने फिल्म पहले भी दिखवाई थी.
इतना होना था कि पूरी कांग्रेस के कान खड़े हो गए. देश में उस समय वैसे ही कम बवाला नहीं बचा था. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनारायण वैसे ही धनिया बोए थे. सरकार का कोर्ट से झगड़ा चल ही रहा था. जयप्रकाश नारायन अलग सड़क पर बवाल काटे थे. इस बीच इंदिरा को इस फिल्म का पता चला. उन्होंने तब खुद तो फिल्म नहीं देखी. पर अपने स्टाफ के दो लोगों को दूत बनाकर भेजा कि जाओ, देखो फिल्म बड़े पर्दे पर चलने लायक है या नहीं. उसका उनसे कुछ वास्ता है या नहीं. दोनों बंदे लौट के आए और मैडम को बताए कि पिच्चर बढ़िया है. कोई समस्या नहीं है.
इसके बाद तब के सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने भी ये फिल्म देखी थी. उनको भी फिल्म में कोई दिक्कत नहीं लगी. फिल्म पसंद भी आई. ये सब चेकिंग तब हो रही थी जब गुलजार पहले ही ये बात साफ कर चुके थे कि फिल्म के लीड रोल का इंदिरा गांधी से कोई संबंध नहीं है. जी हां, ये सारा विवाद फिल्म के लीड रोल को लेकर ही था. फिल्म में ये लीड रोल निभा रही थीं सुचित्रा सेन. फिल्म में उनके किरदार का पहनावा, चाल-ढाल सब इंदिरा गांधी से मिलती-जुलती थी. जिस तरह की साड़ियां सुचित्रा ने फिल्म में पहनी थीं, जिस तरह वो चल रही थीं, बात कर रही थीं, वो सब इंदिरा से मिल रहा था. उनके बालों को सफेद भी उसी तरह से किया गया था, जैसे इंदिरा के थे. एक सफेद सिल्वर सी लाइनिंग. इन्हीं समानताओं को देखते हुए ही ये बवाला और बढ़ता गया.

आंधी फिल्म पर लगा था बैन.
फिर बैन क्यों लगा?
हालांकि फिल्म पर बैन उसके रिलीज के वक्त नहीं लगा. फिल्म 20 हफ्तों से ज्यादा बड़े पर्दे पर देश भर में चलती रही. लोगों ने झमक के देखी. चलने की वजह कंट्रोवर्सी ही थी. मगर 20 हफ्ते बाद इस पर बैन लगा. इसका एक प्रमुख कारण था गुजरात में विधानसभा चुनाव के वक्त हुआ इसका इस्तेमाल. चुनाव में दरअसल विपक्षी पार्टियों ने फिल्म की कुछ क्लिप जिनमें सुचित्रा सिगरेट और शराब पी रही थीं, उसको इस तरह से दिखाना और प्रचारित करना शुरू कर दिया था, जैसे ये सब इंदिरा ही कर रही हों. इस चुनाव के बाद इमरजेंसी भी लग चुकी थी. इंदिरा के खिलाफ वैसे ही बहुत कुछ था, सो वो अब इस फिल्म को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती रही होंगी. सो इस तरह फिल्म पर बैन का रास्ता साफ हो गया.
बैन लगाने के साथ ही गुलजार को एक आदेश दिया गया. फिल्म से उस हिस्से को हटाने का जिसमें सुचित्रा सिगरेट और शराब पीती दिख रही हैं. ये भी जोर देकर बताने को कहा गया कि फिल्म का किसी से भी कोई संबंध नहीं है. ये कोई बायोग्राफी नहीं है. गुलजार ने इससे बचने का तरीका निकाला भी. उन्होंने शराब वाले सीन को हटाकर उस जगह नया सीन डाला, जिसमें सुचित्रा इंदिरा की फोटो के आगे खड़े होकर उनको अपना प्रेरणास्रोत बता रही हैं.

1977 में चुनाव बाद मोरारजी देसाई बने पीएम.
कैसे हटा बैन?
फिल्म पर बैन हटा फिर जाकर तब जब दोबारा आजाद हुआ. माने जब 1977 में इमरजेंसी हटी. जब दोबारा चुनाव हुए और जनता पार्टी की सरकार बनी. नई सरकार ने न सिर्फ इस फिल्म से बैन हटाया बल्कि इसे टीवी पर भी दिखवाया गया. ये फिल्म इस तरह कुल मिलाकर इसके एक्टर्स, डायरेक्टर और सभी के लिए फायदे का सौदा साबित हुई. फिल्म हिट तो रही ही रही, कई अवॉर्ड्स भी पाए. 23वें फिल्मफेयर के मौके पर इस फिल्म के लिए संजीव कुमार को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला. फिल्म को भी क्रिटिक्स अवॉर्ड फॉर बेस्ट मूवी मिला.
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