महाराष्ट्र में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे बहुत पहले से ही बीजेपी की नजर में थे. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे बहुत करीबी दोस्त रहे हैं. इतने कि अगर साल 2019 में बीजेपी और शिवसेना विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़तीं तो शायद ठाणे से एकनाथ शिंदे बीजेपी के उम्मीदवार होते. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ीं शुभांगी खापड़े ने सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में ये सब जानकारी दी है.
2019 के पहले से शिंदे पर है BJP की नजर, अपनी टिकट पर चुनाव भी लड़ाने वाली थी
ठाणे में एकछत्र राज करने के लिए बीजेपी शिंदे और फडणवीस की करीबी का फायदा उठा सकती है.

रिपोर्ट कहती है कि बीजेपी ये कोशिश कर रही थी कि एकनाथ शिंदे 2019 का विधानसभा चुनाव पार्टी की टिकट पर लड़ें. लेकिन ये होता, उससे पहले ही शिवसेना और बीजेपी ने साथ मिलकर 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. जबकि इससे पहले यानी 2014 में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि बीजेपी इस बार शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद दे सकती है और साथ ही साथ ठाणे जिले का पूरा नियंत्रण भी.
शिंदे की बगावत में ठाणे का रोलउद्धव ठाकरे से शिंदे की बगावत में एक बहुत बड़ा रोल ठाणे जिले के नियंत्रण ने भी निभाया है. रिपोर्ट के मुताबिक शिवसेना नेतृत्व ने ठाणे जिले के फैसले लेने के लिए शिंदे को कभी पूरी तरह से आजादी नहीं दी. अब अगर बीजेपी ऐसा करती है, तो उसे आने वाले निकाय चुनाव में इसका फायदा हो सकता है, क्योंकि ठाणे जिले में बीजेपी उतनी मजबूत नहीं है.
फडणवीस और शिंदे के बीच अच्छे रिश्ते होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली सरकार में फडणवीस, शिंदे को अधिक से अधिक जिम्मेदारियां देने को तैयार थे. इस बारे में महाराष्ट्र बीजेपी प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
"बीजेपी चाहे सत्ता में रही हो या विपक्ष में, पार्टी ने काबिल नेताओं का हमेशा सम्मान किया है. हम एक राजनीतिक पार्टी हैं और शिवसेना में जो कुछ भी उथल-पुथल मची है, निश्चित तौर पर उसका फायदा उठाएंगे."
शिंदे को अपनी लो-प्रोफाइल और मित्रतापूर्ण रवैये के लिए जाना जाता है. एक तरफ जहां एनसीपी और कांग्रेस के बहुत से नेता भ्रष्टाचार के आरोप में अलग-अलग केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना कर रहे हैं, वहीं शिंदे के सामने ऐसा खतरा कभी नहीं आया. उनके एक करीबी ने अखबार को बताया,
"साल 2014 में जब शिवसेना ऑपोजिशन में थी, तब शिंदे को विपक्ष का नेता बनाया गया था. फिर जब शिवसेना सत्ता में आ गई, तो शिंदे को PWD मंत्री बनाया गया है. शिंदे को बेहतर पोर्टफोलियो मिलना चाहिए था. उद्धव ठाकरे ने इसके ऊपर विचार भी नहीं किया."
बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि अगर उद्धव ठाकरे ने थोड़ा जोर लगाया होता, तो बीजेपी शायद शिंदे को उपमुख्यमंत्री बनाने पर विचार करती. लेकिन शिवसेना की तरफ से जोर नहीं लगाया गया. शायद इसलिए क्योंकि पार्टी शिंदे को राजनीतिक तौर पर मजबूत नहीं करना चाहती थी. पार्टी को डर था इससे पावर के दो समानांतर केंद्र बन जाएंगे.
शिंदे को सम्मान की तलाश?सूत्रों ने बताया कि पांच साल बाद जब शिवसेना और बीजेपी का रिश्ता टूट गया, तब शिवसेना के बहुत से विधायक ये उम्मीद लगाए थे कि एकनाथ शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे. ऐसे कुछ बैनर ठाणे में लगाए गए थे. लेकिन मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे और शिंदे को बनाया गया PWD मंत्री.
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि बीजेपी को इस बात का अंदाजा था कि शिंदे राजनीतिक तौर पर महत्वकांक्षी हैं. साल 2015 में जब फडणवीस ने 12 हजार करोड़ रुपये के नागपुर-मुंबई एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट की घोषणा की, तो इसको लागू करने की जिम्मेदारी एकनाथ शिंदे को दी गई. अखबार से बातचीत में बीजेपी के एक महासचिव ने बताया,
"शिंदे के विद्रोह में बीजेपी की भूमिका का आकलन नहीं किया जा सकता है. ये हुआ क्योंकि शिंदे ऐसा चाहते थे और उद्धव के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए उनके पास विधायकों का सपोर्ट था. हम सिर्फ इतना क्रेडिट ले सकते हैं कि हमने शिंदे के अंदर आत्मविश्वास भरा. हमेशा सत्ता, पद और पैसों से बात नहीं बनती. शिंदे जैसे नेता सम्मान और प्रतिष्ठा की तलाश में रहते हैं, जो फडणवीस ने हमेशा से दिया."
बात अब शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे के राजनीतिक भविष्य की भी है. श्रीकांत शिंदे कल्याण से शिवसेना के लोकसभा सांसद हैं. सूत्रों ने इस संभावना को खारिज करने से इनकार कर दिया है कि श्रीकांत को केंद्र सरकार में जगह दी जा सकती है.