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"तलाकशुदा मुस्लिम महिला को शादी के समय पति को दिए पैसे और गिफ्ट वापस लेने का पूरा हक"

सुप्रीम कोर्ट ने पति को पूरी रकम महिला के खाते में जमा करने का आदेश दिया है. देरी करने पर सालाना 9 प्रतिशत ब्याज लगेगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया. (India Today)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शादी के समय पति को दिए गए पैसे और कीमती सामान वापस लेने का पूरा अधिकार रखती है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि यह अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मिलता है.

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जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया. कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के 7 लाख रुपये और शादी के रजिस्टर (काबिलनामा) में लिखे सोने के गहनों के दावे को खारिज कर दिया था, जो उनके पिता ने उसके पूर्व पति को तोहफे के तौर पर दिए थे.

महिला की शादी 2005 में हुई थी. 2009 में दोनों अलग हुए और 2011 में तलाक मंजूर हुआ. इसके बाद महिला ने 1986 एक्ट के सेक्शन 3 के तहत 17.67 लाख रुपये की रिकवरी के लिए दावा किया. इसमें 7 लाख रुपये कैश और सोना शामिल था. इसकी जानकारी मैरिज रजिस्टर में दर्ज थी.

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1986 एक्ट के मायने बताते हुए, कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इसके सेक्शन 3(1)(d) के तहत शादी के समय दी गई प्रॉपर्टी का मकसद तलाकशुदा महिला का भविष्य सुरक्षित करना है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालत को ऐसा तरीका अपनाना चाहिए जो इस सुरक्षा के इरादे को पूरा करे.

सेक्शन 3(1)(d) के अनुसार, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला "उन सभी प्रॉपर्टी की हकदार है जो उसे शादी से पहले या शादी के समय या शादी के बाद उसके रिश्तेदारों या दोस्तों या पति या पति के किसी रिश्तेदार या उसके दोस्तों ने दी हैं."

कोर्ट ने कहा कि इस नियम को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत महिला को मिलने वाले सम्मान और आज़ादी के अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा,

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भारत का संविधान सभी के लिए एक उम्मीद, यानी बराबरी तय करता है, जो ज़ाहिर है, अभी तक हासिल नहीं हुई है. इस मकसद को पूरा करने के लिए कोर्ट को अपनी सोच को सोशल जस्टिस के आधार पर रखना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा कि 1986 एक्ट का मकसद एक मुस्लिम महिला के तलाक के बाद उसके सम्मान और पैसे की सुरक्षा को पक्का करना है. जो भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत महिलाओं के अधिकारों के मुताबिक है. 

कोर्ट ने महिला की अपील स्वीकार करते हुए पति को आदेश दिया कि वह पूरी राशि सीधे महिला के बैंक खाते में जमा करे. अगर वह ऐसा नहीं करता, तो उस राशि पर 9% सालाना ब्याज लगेगा.

वीडियो: तारीख: कहानी भारत के पहले तलाक की जिसने महिलाओं को उनका अधिकार दिलाया

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