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'...तो पूरा SIR रद्द कर देंगे', सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को क्यों दी इतनी बड़ी चेतावनी?

1 अक्टूबर को बिहार में अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होगी. कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 7 अक्टूबर दी है.

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बिहार में नवंबर में चुनाव होने हैं. (PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को लगभग चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो पूरी प्रक्रिया रद्द कर दी जाएगी.

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सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर को स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 7 अक्टूबर तक टाल दी. याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि सुनवाई 1 अक्टूबर से पहले हो जाए, क्योंकि उस दिन अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होनी है. लेकिन जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि अदालत 28 सितंबर से एक हफ्ते के लिए दशहरा अवकाश पर रहेगी, इसलिए सुनवाई अक्टूबर में ही होगी.

LiveLaw की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने से इस मामले की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा. अदालत ने याचिकाकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि अगर प्रक्रिया में कोई भी गैरकानूनी प्रक्रिया पाई जाती है, तो अदालत हस्तक्षेप करेगी, भले ही सूची अंतिम रूप से प्रकाशित हो चुकी हो. 

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जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,

“अंतिम सूची प्रकाशित होने से हमें क्या फर्क पड़ेगा? अगर हमें लगे कि कोई गैरकानूनी काम हुआ है, तो हम कदम उठा सकते हैं.”

यह टिप्पणी वकील प्रशांत भूषण (ADR की ओर से) की दलीलों के जवाब में थी. भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग अपनी मैनुअल और नियमावली का पालन नहीं कर रहा है और वह प्राप्त आपत्तियों को वेबसाइट पर अपलोड भी नहीं कर रहा.

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पारदर्शिता की ज़रूरत

LiveLaw की रिपोर्ट के मुताबिक सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने मांग की कि चुनाव आयोग को रोज़ाना आपत्तियों और दावों पर बुलेटिन जारी करने का आदेश दिया जाए. इस पर ECI की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि वे साप्ताहिक अपडेट दे रहे हैं, क्योंकि रोज़ाना जानकारी देना संभव नहीं है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जितनी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है, उतनी करनी चाहिए, इससे पारदर्शिता बढ़ेगी. वहीं जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि आयोग कम से कम प्राप्त आपत्तियों की संख्या तो प्रकाशित कर सकता है. हालांकि, अदालत ने इन टिप्पणियों को आदेश का हिस्सा नहीं बनाया.

आधार कार्ड विवाद

बेंच ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की एक अर्जी पर भी विचार किया. उन्होंने पिछले हफ्ते के उस आदेश में संशोधन की मांग की, जिसमें आधार कार्ड को “12वें वैध दस्तावेज़” के रूप में मानने की अनुमति दी गई थी. उपाध्याय ने कहा कि बिहार में “लाखों रोहिंग्या और बांग्लादेशी” रह रहे हैं और आधार कार्ड को स्वीकार करना खतरनाक होगा. क्योंकि कोई भी व्यक्ति केवल 182 दिन भारत में रहने के बाद आधार बनवा सकता है. यह न नागरिकता का प्रमाण है, न स्थायी निवास का.

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कोई भी दस्तावेज़ नकली बनाया जा सकता है. ड्राइविंग लाइसेंस, आधार समेत कई दस्तावेज नकली बनवाए जा सकते हैं. आधार का इस्तेमाल उतनी ही सीमा तक होना चाहिए, जितनी कानून में अनुमति है.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: बिहार SIR को लेकर चुनाव आयोग को बड़ा झटका, अब क्या करेगा ECI?

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