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राजस्थान में डॉक्टर क्यों सड़क पर डटे, गहलोत सरकार के किस फैसले पर बवाल मचा है?

प्राइवेट अस्पताल गहलोत से नाराज़ क्यों हो गए?

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राजस्थान में हेल्थ बिल का विरोध (फोटो- ट्विटर)

27 मार्च को राजस्थान से एक तस्वीर आई. पूरी सड़क डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों से पटी पड़ी थी. डॉक्टरों के हाथों में पोस्टर्स थे. लगातार नारेबाजी हो रही थी. सवाल ये कि जिन डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है. जिन्हें अस्पताल में मरीजों का इलाज करना चाहिए वो सड़क पर मार्च क्यों कर रहे हैं.

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डॉक्टर नाराज़ क्यों?

राजस्थान विधानसभा में 'राइट टू हेल्थ' बिल (Rajasthan Right To Health Bill) पास कर दिया गया. वो ऐसा बिल पास करने वाला पहला राज्य बन गया है. नए कानून में ज़रूरतमंदों को मुफ़्त इलाज की सुविधा का प्रावधान है. लेकिन बीजेपी और प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर इस बिल को 'राइट टू किल' नाम दिया है. कानून वापस लेने की मांग हो रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बिल पिछले साल सितंबर में विधानसभा में पेश किया गया था. लेकिन विपक्षी पार्टी बीजेपी और डॉक्टरों की आपत्तियों की वजह से इसे सेलेक्ट कमिटी के पास भेज दिया गया. अब मंगलवार, 21 मार्च को आख़िरकार ये बिल पास हुआ.

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बिल के क्या फायदे?

-सभी सरकारी और कुछ प्राइवेट संस्थानों में कंसल्टेशन, दवाएं, इलाज, इमरजेंसी ट्रांस्पोर्ट और देखभाल की सुविधाएं फ्री में मिलेंगी.

-इमरजेंसी की हालत में राज्य का हर निवासी बिनी कोई फीस दिए इलाज करा सकता है. यानी मरीज के पास पैसे ना हो तो भी उसे इलाज के लिए मना नहीं किया जा सकेगा.

-मेडिको-लीगल केस यानी पुलिस जांच से जुड़े केस में कोई भी सरकारी या प्राइवेट डॉक्टर पुलिस की मंजूरी के इंतज़ार में इलाज टाल नहीं सकेगा.

-इलाज के बाद अगर मरीज फीस भी नहीं दे पाता तो वो फीस राज्य सरकार की तरफ से अस्पताल को दी जाएगी.

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-दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाने वालों को 5000 रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है.

-अस्पताल या इलाज से जुड़ी शिकायत दर्ज कराने की भी सुविधा दी गई है. कुल मिलाकर कानून राज्य के निवासियों के लिए कुल 20 नए अधिकार देगा.

डॉकटरों के क्या तर्क?

- हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर फ्री इलाज करवाएगा तो अस्पताल वाले अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.

- अगर सरकार इलाज की फीस का भुगतान करेगी तो इसके प्रावधानों को सरकार स्पष्ट करे.

-योजना में जो पैकेज शामिल हैं वो अस्पताल में इलाज में आने वाले खर्च के मुताबिक नहीं है. ऐसे में अस्पताल इलाज का खर्च कैसे पूरा करेंगे. बिल जबरन लागू हुआ या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा.

-प्राधिकरण को बिल में सबजेक्ट एक्सपर्ट शामिल करना चाहिए ताकि वो अस्पताल की हालत समझते हुए तकनीकी इलाज की प्रक्रिया समझ सके.

मामले पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल ने कहा-

हमने डॉक्टरों की आपत्तियां सुनीं और उनका समाधान किया. बिल अपने पिछले संस्करण से काफी अलग है. बिल में 50 बिस्तरों के प्रावधान को शामिल किया जाएगा. बिल वापस लेने की मांग उचित नहीं है. ये विधानसभा की प्रक्रिया का अपमान है. हमें राजनीति से ऊपर उठकर लोगों की चिंता करनी चाहिए. विधेयक राज्य के हित में है.

वहीं डॉक्टरों के प्रतिनिधि मंडल का कहना है कि उनके सुझावों पर अमल नहीं हुआ. प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है.

विपक्ष की दो मुख्य मांगे

-बीजेपी विधायक कालीचरण सराफ ने कहा- अगर हड्डी का मरीज आंखों के अस्पताल में पहुंच जाए तो इलाज कैसे होगा? हमारी मांग है कि केवल 50 बेड वाले मल्टीस्पेशियलिटी अस्पतालों को कानून के तहत शामिल किया जाए.

-विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौर ने मांग की है कि शिकायतों के लिए एक ही मंच हो. उनका कहना है कि पहले से ही मेडिकल काउंसिल, कंज्यूमर कोर्ट जैसी 50 जगहें हैं जहां डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं. अब एक और फोरम जुड़ रहा है. डॉक्टर इलाज करेगा या शिकायतों का निवारण?

वीडियो: अशोक गहलोत को अडानी से प्यार या राहुल गांधी से',राजस्थान विधानसभा में उठ गया सवाल.

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