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सुसाइड रोकने के लिए गहलोत सरकार की गाइडलाइन्स, कोटा का कोचिंग सिस्टम बदलेगा?

कोटा में सुसाइड की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र अशोक गहलोत सरकार ने एक कमेटी बनाई थी. 27 सितंबर को कमेटी की सिफ़ारिश पर राज्य सरकार ने कोचिंग और हॉस्टल वालों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं.

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(सांकेतिक तस्वीर - इंडिया टुडे)

राजस्थान का कोटा (Kota) शहर देश का कोचिंग हब कहलाता है. IIT और AIIMS जैसे संस्थानों की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए लाखों छात्र हर साल कोटा आते हैं. कुछ सफल भी होते हैं. मगर कोटा से साल-दर-साल सुसाइड की ख़बरों ने सरकार को चिंता और आलोचना के घेरे में डाल रखा है. इन दुर्घटनाओं की एक आशंकित वजह बच्चों पर लादा गया बोझ है, जो तनाव पैदा करता है.

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अशोक गहलोत सरकार ने सुसाइड की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र एक कमेटी का गठन किया था. शिक्षा सचिव भवानी सिंह देथा को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. पैनल के कुल 15 सदस्यों का मक़सद: छात्रों में बढ़ते तनाव, मानसिक दबाव और आत्महत्याओं के पीछे की वजहों को समझना. 27 सितंबर को इसी पैनल के सिफ़ारिश पर राज्य सरकार ने 9 पेज का एक दिशा-निर्देश जारी किया है. इसमें दाख़िले, टेस्ट के नतीजों और छुट्टियों से संबंधित बातें हैं.

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इससे पहले, 18 अगस्त 2023 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नें भी कोचिंग संचालकों से बातचीत की थी. इसके बाद ही जांच कमेटी की गठन किया था. कमेटी ने कोचिंग स्टूडेंट्स, अभिभावकों, कोचिंग संचालकों, मनोवैज्ञानिकों, हॉस्टल-पीजी चलाने वालों से बात करने के बाद ये रिपोर्ट तैयार की है. 

आत्महत्याओं की क्या वजह?

कमेटी ने आत्महत्या के पीछे कुछ वजहें गिनाई हैं. मसलन - 

  • बढ़ती प्रतियोगिता
  • बढ़ता सिलेबस 
  • कठिन टेस्ट पेपर 
  • नतीजों के सार्वजनिक होने से शर्म का भाव
  • नंबर कम होने पर कोचिंग में मज़ाक उड़ना
  • टेस्ट नतीजों के हिसाब से अलग-अलग बैच मिलना
  • कोचिंग संस्थानों का छात्रों पर मानसिक दबाव बनाना
  • अभिभावकों की उम्मीदें
  • सफलता की सीमित संभावना 
  • बच्चे की योग्यता और रुचि के उलट पढ़ाई का बोझ
  • कम उम्र से ही परिवार से दूर हो जाना 
  • कम छुट्टियां
  • परेशानियां में अकेला होना 
कोचिंग और हॉस्टल वालों को निर्देश

अब इन्हीं कारणों से जुड़े दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं. राज्य सरकार ने कोचिंग संस्थानों को कहा है कि 9वीं क्लास के पहले एडमिशन न लें. छात्रों की रुचि के हिसाब से ऐडमिशन करें. दाख़िला से पहले छात्र का टेस्ट लें और काउंसलिंग करवाएं. उसकी छमता के हिसाब से ही दाख़िला करें. समय-समय पर पेरेंट्स को बच्चे की प्रोग्रेस के बारे बताएं. अगर छात्र बीच में छोड़ कर जाना चाहे, तो बची हुई फीस वापस कर दें.

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साप्ताहिक टेस्ट्स के नतीजे कोचिंग के बाहर लगते हैं. सब देख सकते हैं. कमेटी को मालूम चला कि नतीजों के सार्वजनिक होने से बच्चे में शर्म का भाव पैदा होता है. इसीलिए कोचिंग संस्थान को निर्देश मिला है कि किसी भी छात्र का टेस्ट रिज़ल्ट सार्वजनिक न करें. रिज़ल्ट को गुप्त ही रखें. कम परफॉर्मेंस वाले बच्चों की काउंसलिंग करवाएं. टेस्ट के हिसाब से बैच न बांटें. फिर छात्रों को समय-समय पर छुट्टी भी दी जानी चाहिए. अमूमन छात्रों को केवल दो बार छुट्टी दी जाती है: दिवाली और मेन परीक्षा के बाद.

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रिपोर्ट में हॉस्टल और पीजी वालों को भी दिशानिर्देश दिए गए हैं. कहा गया है, जितनी जगह हो, उतने ही बच्चें रखें. पीजी छोड़ने पर बचा किराया वापस किया जाए. मेस चार्ज हर महीने लिया जाए, न कि महीनावार. ज़रूरत के हिसाब से CCTV कैमरे लगाए जाएं. छात्र-छात्राओं की निजता की हनन न हो. छात्राओं के हॉस्टल में केवल महिला वार्डन की नियुक्ति ही की जाए. 

हॉस्टल्स में सुझाव या शिकायत बॉक्स लगाए जाएं और ज़िला प्रशासन की ई-कंप्लेंट पोर्टल की जानकारी दी जाए. 

(ये स्टोरी हमारे साथी सचेंद्र ने लिखी है.)

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