अपने वक्त के शानदार एथलीट ये वही प्रवीण कुमार हैं जिन्होंने बीआर चोपड़ा की महाभारत में भीम का रोल किया. गदाधारी भीम के रोल ने इन्हें एक जानामाना चेहरा बना दिया. मगर क्या आपको पता है कि इस भीम ने इंडिया के लिए एशियन गेम्स में कई पदक जीते हैं? 6 दिसंबर 1947 को जन्मे प्रवीण हैमर और डिस्कर थ्रो यानी गोला और चक्का फेंकने में वो एशिया में नंबर एक पर रहे हैं. यही नहीं दो बार ओलंपिक्स भी खेलकर आए.
अपने शुरुआती दिनों के बारे में ये बलशाली एथलीट और एक्टर एक इंटरव्यू में बताता है कि वो पंजाब के अपने गांव में सुबह तीन बजे उठते थे. "एक भी दिन ऐसा नहीं था जब मैं 3 बजे न उठा हूं. गांव में कोई जिम जैसी चीज नहीं थी और न ही तब तक मैंने ऐसी चीज देखी थी. मां घर में जो चक्की अनाज पीसने के लिए इस्तेमाल करती थी, उसी की सिल्लियों का वजन उठाकर मैं अपने ट्रेनिंग करता था. भोर के 3 बजे से सूरज निकलने तक मैं खूब ट्रेनिंग करता था. दिन निकलने तक ट्रेनिंग बंद. तीन साल लगे थे शरीर बनाने में और जब जानने वालों ने मुझे देखा तो वो पहचान नहीं पाए. मेरा शरीर एकदम देसी खुराक और वर्जिश से बना था."

जवानी में बॉडी बिल्डिंग भी की है इस एथलीट ने.
सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए साल में एक बार इंटर स्कूल होते थे, उसी में शामिल होना शुरू किया. स्कूल के हैडमास्टर ने जब लड़के का दम देखा तो आगे गेम्स में भेजना शुरू किया. औऱ देखते देखते वो हर इवेंट जीतने लगा. साल 1966 की कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए डिस्कस थ्रो के लिए प्रवीण कुमार सोबती का नाम आ गया. ये गेम्स जमैका के किंगस्टन में होनीं थीं. प्रवीण कहते हैं, " जब मेरा नाम आया तो मुझे ये भी नहीं पता था कि ये शहर दुनिया के किस कोने में है. बस नाम सुन सुन कर लगता था कि पक्का कोई खूबसूरत शहर होगा. मेरे पूरे गांव से कोई इतनी दूर नहीं गया था. दूर तो छोड़िए कोई समुद्र पार नहीं गया था. फिर मैं वहां पहुंचा और सिल्वर मेडल जीता."
साल 1966 और 1970 के एशियन गेम्स जो थाइलैंड के बैंकॉक में हुए, प्रवीण कुमार सोबती यहां भारत की तरफ से डिस्कस थ्रो यानी चक्का फेंक प्रतियोगिता के लिए पहुंचे थे. दोनों बार पूरे एशिया में इनके बराबर का कोई दूसरा खिलाड़ी नहीं था. दोनों बार गोल्ड मेडल जीतकर लौटे. 56.76 मीटर दूरी पर चक्का फेंकने वाले प्रवीण का ये एशियन गेम्स का रिकॉर्ड था. इसके बाद अगली एशियन गेम्स 1974 में ईरान के तेहरान में हुईं, यहां इन्हें सिल्वर मेडल मिला.इसी बीच जब साल 1972 में प्रवीण जर्मनी के म्यूनिक शहर में हो रहे ओलंपिक्स में भी हिस्सा लेने पहुंचे थे. ये वही ओलंपिक्स हैं जिनमें फिलिस्तीन के एक आतंकी संगठन ने ओलंपिक्स में भाग लेने आए इजराइली ग्रुप के 11 सदस्यों को बंधी बनाकर मौत के घाट उतार दिया था. ये खेलों के इतिहास का सबसे खौफनाक चेहरा था. उसके बारे में प्रवीण बताते हैं कि वो उसी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में थे और जब वो नाश्ते के लिए डाइनिंग एरिया की तरफ जा रहे थे तो उन्हें गोलियां चलने की आवाजें सुनाई दीं थी. कुछ देर बाद पता चला कि आंतकियों ने हॉकी टीम को मौत के घाट उतार दिया है.

चाचा चौधरी में साबू का पॉपुलर कैरेक्टर भी प्रवीण कुमार सोबती ने ही किया था.
अपनी डाइट के बारे में प्रवीण बताते हैं कि उनकी मां उन्हें खाने में मटन, चिकन और मछली देसी घी में पकाकर खिलाती थीं. बादाम और दूध का सेवन भरपूर होता था. मां को बेटे के शरीर की इतनी परवाह थी कि वो रोजाना देसी मुर्गा पकाती थी. वो कहते हैं कि आज की तरह कोई दूसरी दवा या सप्लीमेंट नहीं लेते थे. फिर भी ताकत इतनी थी कि उसे जांचने के लिए खेतों में भैंसे और सांड के सींग पकड़ कर उन्हें चित्त कर देते थे.
अपने खेल के ही दम पर उन्हें सीमा सुरक्षा बल में डिप्टी कमांडेंट की नौकरी भी मिल गयी थी. मगर एशियन गेम्स और ओलंपिक्स में जाने से इतना नाम हो गया था कि 1986 में एक दिन पंजाबी दोस्त ने प्रवीण को आकर बताया कि बीआर चोपड़ा महाभारत बना रहे हैं और वो भीम के किरदार के लिए एक बलशाली सा बंदा ढूंढ रहे हैं और वो चाहते हैं कि तुम एक बार आकर मिलो. प्रवीण बीआर से मिले और फिर तय हो गया कि महाभारत में भीम का किरदार प्रवीण कुमार सोबती करेंगे. यहीं से बुलंदी का एक और रास्ता खुला. ये कैरेक्टर इतना पॉपुलर हुआ कि खुद प्रवीण कई इंटरव्यू में बता चुके हैं कि उन्हें कई दफा लोगों ने बस, ट्रेन और जहाज में सफर करते हुए घेर लिया. नाम इतना हुआ कि अब फिल्में भी मिलने लगीं. पहली फिल्म थी रक्षा. जिंतेंद्र उस फिल्म में हीरो थे और प्रवीण को रोल मिला एक विलेन का. इसी तरह का रोल अगली फिल्म मेरी आवाज सुनो में भी मिला. इस तरह करीब 50 फिल्मों में इस एथलीट को छोटे-बड़े रोल मिले. साथ ही उस वक्त की पॉपुलर टीवी सीरीज चाचा चौधरी में भी प्रवीण को साबू का रोल मिला.

2013 में आम आदमी पार्टी और फिर 2014 में भाजपा जॉइन की थी.
स्पोर्ट्स, फौज, एक्टिंग के बाद प्रवीण ने राजनीति में भी हाथ आजमाया. 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के टिकट से वजीरपुर सीट से चुनाव लड़ा. हार गए. फिर आप छोड़ बीजेपी जॉइन की. मगर वहां से भी मोहभंग हो गया और अब दिल्ली में ही रिटायरमेंट की जिंदगी बिता रहे हैं 70 साल के ये भीम.
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