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प्रणब मुखर्जी की बेटी ने अपनी किताब में जो लिखा, सोनिया गांधी और राहुल गांधी जरूर पढ़ना चाहेंगे!

शर्मिष्ठा ने किताब में राहुल को लेकर प्रणब दा की सोच और उनके प्रधानमंत्री न बन पाने के पीछे की कहानी बताई है.

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सोनिया गांधी (फोटो सोर्स- आजतक)

दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) की जन्मतिथि यानी 11 दिसंबर को उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी (Sharmishtha Mukherjee) की एक किताब आने वाली है. इस किताब से अच्छी-खासी सियासी हलचल पैदा हो गई है. शर्मिष्ठा ने 'In Pranab, My Father: A Daughter Remembers' नाम की अपनी इस किताब में प्रणब मुखर्जी के हवाले से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लेकर कई चौंकाने वाले दावे किए हैं. 

शर्मिष्ठा ने किताब में लिखा है कि एक बार उनके पिता (प्रणब मुखर्जी) ने कहा था कि राहुल गांधी 'बहुत विनम्र' और 'सवालों से भरपूर' हैं. लेकिन उनका मानना था कि राहुल गांधी को 'अभी राजनीतिक रूप से परिपक्व होना बाकी है. प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन पाए, इस सवाल का जवाब भी इस किताब में छिपा है.

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राहुल के बारे में क्या प्रसंग है?

किताब में जिक्र किया गया है कि राहुल गांधी राष्ट्रपति भवन में प्रणब दा से मिलते रहते थे. हालांकि, इन मुलाकातों की तादाद बहुत नहीं है. प्रणब मुखर्जी ने राहुल को कैबिनेट में शामिल होने और सरकार में कुछ प्रत्यक्ष अनुभव हासिल करने की सलाह दी. लेकिन राहुल ने उनकी इस सलाह पर ध्यान नहीं दिया. किताब में लिखा है कि 25 मार्च 2013 को प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि राहुल गांधी की कई मामलों में रुचि है, लेकिन वे एक विषय से दूसरे विषय पर बहुत तेजी से आगे बढ़ते हैं. 

‘वह (सोनिया) मुझे PM नहीं बनाएंगी’: प्रणब

शर्मिष्ठा ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रणब मुखर्जी से उन्होंने साल 2004 में उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं के बारे में पूछा, तो उन्होंने रहस्यमय तरीके से जवाब दिया कि 'नहीं, वह मुझे PM नहीं बनाएंगी.' शर्मिष्ठा इस बात पर जोर देती हैं कि प्रणब मुखर्जी के मन में उन्हें प्रधानमंत्री न चुने जाने को लेकर सोनिया गांधी के प्रति कोई नाराजगी नहीं थी. साथ ही मनमोहन सिंह के प्रति भी उनके मन में कोई शत्रुता नहीं थी.

बता दें कि साल 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. तब सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्षा थीं. अटकलें थीं कि वही प्रधानमंत्री बनेंगी. लेकिन उन्होंने अपना दावा छोड़ प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह का नाम आगे किया था.

'द पीएम इंडिया नेवर हैड' वाले शीर्षक वाले किताब के एक चैप्टर में शर्मिष्ठा लिखती हैं,

"प्रधानमंत्री पद की दौड़ से सोनिया का नाम हटने के बाद, मीडिया से लेकर सियासी गलियारों में शीर्ष दावेदारों के बतौर मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के नामों की चर्चा थी. मुझे कई दिनों तक बाबा (प्रणब मुखर्जी) से मिलने का मौक़ा नहीं मिला क्योंकि वो बहुत ज्यादा व्यस्त थे. लेकिन मैंने उनसे फ़ोन पर बात की. मैंने उत्साहित होकर उनके पूछा कि क्या वो प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. उन्होंने दो टूक जवाब दिया, नहीं, वह मुझे PM नहीं बनाएंगी. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनेंगे. लेकिन उन्हें इसकी घोषणा जल्दी ही करनी चाहिए. अनिश्चितता देश के लिए ठीक नहीं है."

शर्मिष्ठा आगे लिखती हैं कि उनके पिता ने एक पत्रकार से कहा था कि उन्हें सोनिया गांधी से कोई उम्मीद नहीं है कि वह उन्हें प्रधानमंत्री बनाएंगी.

प्रणब की डायरी में क्या था?

शर्मिष्ठा के मुताबिक, उनके पिता की डायरी में उन दिनों के घटनाक्रमों का बहुत संक्षिप्त विवरण है. शायद बैठकों और बाकी कामों में व्यस्तता के चलते.

शर्मिष्ठा के मुताबिक 17 मई 2004 को प्रणब ने लिखा,

"सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने का फैसला किया. BJP का धूर्त अभियान. मुझे, मनमोहन, अर्जुन, अहमद पटेल और गुलाम नबी को बुलाया गया. हम स्तब्ध हैं."

18 मई को उन्होंने लिखा,

"सोनिया गांधी अपने फैसले पर कायम हैं. देशव्यापी आंदोलन. सहयोगी दल भी हैरान हैं. CPP की बैठक भावनाओं से सराबोर है. उनसे पुनर्विचार करने की अपील है. रात 1 बजे तक काम हो रहा है."

शर्मिष्ठा के मुताबिक, 19 मई को, राहत की सांस लेते हुए, उन्होंने लिखा,

"मुद्दे सुलझ गए. मनमोहन सिंह मनोनीत प्रधानमंत्री बन गए. मनमोहन और सोनिया जी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और राष्ट्रपति, मनमोहन सिंह को सरकार बनाने का जनादेश देकर प्रसन्न थे."

31 दिसंबर को साल की प्रमुख घटनाओं का जिक्र करते हुए प्रणब ने लिखा,

''सबसे आश्चर्य की बात थी सोनिया गांधी का अद्भुत बलिदान, जिन्होंने पार्टी के भीतर और बाहर के दबाव के बावजूद देश के प्रधानमंत्री का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उनके फैसले ने BJP और कांग्रेस के बीच कड़वे टकराव से देश को बचा लिया."

शर्मिष्ठा लिखती हैं कि उनके पिता को लगता था कि सोनिया गांधी, बुद्धिमान, मेहनती और सीखने के लिए उत्सुक रहने वाली थीं. एक बार उन्होंने (प्रणब ने) मुझसे कहा था कि कई राजनेताओं के उलट, उनकी (सोनिया की) सबसे बड़ी ताकत ये थी कि वह अपनी कमजोरियों को पहचानती थीं और उन्हें दूर करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार थीं. वह जानती थीं कि उनमें राजनीतिक अनुभव की कमी है, लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति और समाज की जटिलताओं को समझने के लिए बहुत मेहनत की.

किताब में ये भी लिखा है कि प्रणब मुखर्जी के लिए साल 2004 में ही नहीं, बल्कि साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी प्रधानमंत्री बनने का मौका था.

क्या प्रणव मुखर्जी खुद प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते थे? शर्मिष्ठा कहती हैं कि लोग अक्सर मुझसे ये सवाल करते थे. शर्मिष्ठा लिखती हैं,

"उनकी (प्रणब की) प्रतिक्रिया जोरदार थी. उन्होंने कहा, बेशक मैं प्रधानमंत्री बनना चाहूंगा. ये किसी भी योग्य राजनेता की महत्वाकांक्षा होती है. लेकिन सिर्फ इसलिए कि मैं ऐसा चाहता हूं, इसका मतलब ये नहीं है कि मैं प्रधानमंत्री बन जाऊंगा."

84 वर्ष की आयु में प्रणब दा का निधन

बता दें कि कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब मुखर्जी, देश के वित्तमंत्री रहे थे. बाद में उन्होंने विदेश, रक्षा, और वाणिज्य जैसे प्रमुख विभाग भी संभाले. साल 2012 से 2017 तक वह भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे. 31 अगस्त 2020 को 84 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था.

वहीं प्रणब दा की बेटी, शर्मिष्ठा, की पैदाइश साल 1965 की है. वो कथक नृत्यांगना रही हैं.  सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से पढ़ाई हुई. साल 2014 में शर्मिष्ठा, कांग्रेस में शामिल हुईं. साल 2015 में ग्रेटर कैलाश विधानसभा से चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गईं. इस विधानसभा पर AAP के सौरभ भारद्वाज की जीत हुई थी. शर्मिष्ठा ने कांग्रेस के प्रवक्ता पद पर भी काम किया और साल 2021 में राजनीति से संन्यास ले लिया.

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