अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को 7 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है. इस राशि को भारतीय रुपये में बदलेंगे तो करीब 58,500 करोड़ रुपये बनेंगे. वहीं पाकिस्तानी करेंसी में देखें तो उसके लिए ये रकम करीब साढ़े 19 लाख करोड़ रुपये बनती है. पड़ोसी देश को इस राशि से 1 बिलियन डॉलर तुरंत मिल जाएंगे और बची हुई राशि का भुगतान अगले तीन साल में किया जाएगा.
पाकिस्तान की हालत देख IMF ने 19,44,14,43,00,000 रुपये दे दिए, पता है उसने क्या कहा?
पाकिस्तान ने 1958 से अब तक IMF से 20 से अधिक कर्ज लिए हैं. IMF ने कहा कि नए कार्यक्रम के लिए अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और उसे अधिक लचीला बनाने के लिए ‘अच्छी नीतियों और सुधारों की आवश्यकता होगी’.

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस फैसले का स्वागत किया और IMF प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा और उनकी टीम को धन्यवाद दिया. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने 1958 से अब तक IMF से 20 से अधिक कर्ज लिए हैं. मौजूदा स्थिति में पाकिस्तान IMF का पांचवां सबसे बड़ा कर्जदार देश है.
IMF ने कहा कि नए कार्यक्रम के लिए अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और उसे अधिक लचीला बनाने के लिए ‘अच्छी नीतियों और सुधारों की आवश्यकता होगी’. वहीं पाकिस्तान का कहना है यह अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं से लिया गया अंतिम कर्ज होगा. मतलब, अब बस और नहीं.
इस समझौते के तहत, इस्लामाबाद ने कई तरह के सुधारों पर सहमति जताई है. इसमें जनता और उद्योगों से वसूले जाने वाले कर की मात्रा में वृद्धि भी शामिल है. पाकिस्तान दशकों से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋणों पर निर्भर रहा है और वित्तीय कुप्रबंधन की वजहों से लगातार संघर्ष की स्थिति में बना हुआ है.
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल, पाकिस्तान डिफॉल्टर घोषित होने की कगार पर था. और उसके पास आयात के लिए एक महीने का भुगतान करने के लिए विदेशी मुद्रा में बमुश्किल पैसा बचा था. IMF ने जुलाई, 2023 में पाकिस्तान के लिए 3 बिलियन डॉलर के बेलआउट को मंजूरी दी. इस दौरान पाकिस्तान को सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से भी धन प्राप्त हुआ.
उस समय, शहबाज शरीफ ने कहा था कि बेलआउट अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के प्रयासों में एक बड़ा कदम है. उन्होंने कहा कि इससे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और वह तत्काल से लेकर मध्यम अवधि की आर्थिक चुनौतियों से पार पा सकेगा. लेकिन ऐसा होता दिखा नहीं. पाकिस्तान को एक बार फिर कर्ज की ओर जाना पड़ा.
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