'जॉली एलएलबी-2'. बॉलीवुड की 2017 की पहली विवादित फिल्म. विवादित इन मायनों में कि अक्षय कुमार की इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने तो सर्टिफिकेट दे दिया, लेकिन एक वकील की पिटीशन पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसमें चार कट लगा दिए. 10 फरवरी को रिलीज हो रही 'जॉली एलएलबी-2' के प्रोड्यूसर्स हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं गए. उन्होंने फिल्म में कट लगाने की बात मान ली. शायद वो रिलीज से पहले किसी कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते होंगे. लेकिन, इस सिलसिले में सेंसर बोर्ड चीफ पहलाज निहलानी ने दिल जीत लेने वाली बात कही है. उनकी ये बात उनके अब तक के रवैये से ठीक उलट है.
पहलाज निहलानी बहुत गुस्से में हैं, क्योंकि एक फिल्म को सेंसर कर दिया गया है
पहलाज निहलानी ने पहली बार ही सही, लेकिन लिखकर रख लेने वाली बात कही है.

क्या कहा पहलाज ने
6 फरवरी को हाई कोर्ट के फैसले के अगले ही दिन 'जॉली...' के प्रड्यूसर्स ने कहा कि वो विवादित हिस्सों को फिल्म से हटाने के लिए तैयार हैं. इसके बाद जब सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी से उनकी राय मांगी गई, तो उन्होंने कहा,
'हम एक जिम्मेदार संस्था हैं और हमें अपना काम करना अच्छी तरह आता है. अगर हमें महसूस हुआ होता कि इस फिल्म का उद्देश्य किसी का अपमान करना है, तो हमने इसे मंजूरी न दी होती. ये काल्पनिक विषय-वस्तु है, कोई डॉक्युमेंट्री नहीं. इसे मनोरंजन के उद्देश्य से बनाया गया है. मुझे समझ नहीं आता कि फिल्म की शुरुआत में एक डिस्क्लेमर चलाने में क्या दिक्कत है.'
वाकई!
पहलाज निहलानी का ये बयान सुनकर हैरानी होती है. ये वही पहलाज निहलानी हैं, जो 2016 में आई फिल्म 'उड़ता पंजाब' में कट लगाने के लिए बुरी तरह अड़ गए थे. उन्होंने न सिर्फ फिल्म में 80 से ज्यादा कट लगाने के लिए कहा था, बल्कि 'उड़ता पंजाब' से 'पंजाब' शब्द हटाने की वकालत भी की थी. निहलानी के मुताबिक फिल्म के नाम की वजह से पंजाब की छवि खराब होती है.
इस पूरे विवाद में उन्हें खुद को 'नरेंद्र मोदी का चमचा' कहलाने से भी गुरेज नहीं थी. आखिर में CBFC ने 'उड़ता पंजाब' को 13 कट और 'ए' सर्टिफिकेट के साथ रिलीज की इजाजत दे दी थी. हालांकि, इस बार भी वो अपनी क्षमता जताने से नहीं चूके, फिर भी कुछ हद तक उन्होंने कलाकारों के हक की बात की है.
डायरी में नोट करने और दीवार पर लिखने लायक है ये बात
पहलाज निहलानी की ये बात लिखकर रखने लायक है. सिर्फ इस बार ही सही, लेकिन उन्होंने मार्के की बात कही है. अगर कोर्ट में पिटीशन डालकर फिल्म रुकवाना हमारी रवायत बन गई, तो ये क्रिएटिविटी का गला घोंटना होगा. फिल्म बनाना कोई काम या पेशा नहीं, तपस्या है. अथाह मेहनत से तैयार की गई इस चीज को किसी एक आदमी या किसी संगठन की भावनाओं का शिकार होने नहीं दिया जा सकता.
'जॉली...' के मामले में यही हुआ. नांदेड़ के एक वकील अजय कुमार एस. वाघमारे ने बॉम्बे हाई कोर्ट में पिटीशन डालते हुए अर्जी दी थी कि इसमें 'एलएलबी' हटा दिया जाए. वाघमारे के मुताबिक ये फिल्म 'पवित्र पेशे को सतही ढंग से दिखा रही है'. बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट के चुने हुए तीन लोग भी इस बात से सहमत हो गए. लेकिन इस मौके पर पैनल 2014 में 'पीके' पर हुए विवाद के वक्त पूर्व CJI आरएम लोढ़ा की वो बात भूल गया, जिसमें उन्होंने कहा था,
'ये कला है. मनोरजंन है. धार्मिक पहलुओं को इसमें नहीं जोड़ा जाना चाहिए. अगर आपको पसंद नहीं आ रहा है, तो आप मत देखिए. दूसरों को देखने दीजिए. अगर हम इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे, तो इसका मतलब होगा कि हम किसी और के फिल्म देखने के अधिकार को छीन रहे हैं. ये मनोरंजन है. इसमें इतना ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत नहीं है. भारतीय समाज अपने आप में परिपक्व है. लोग मनोरंजन और किसी और चीज के बीच का फर्क जानते हैं.'
पहलाज निहलानी ने इस बार कलाकारों के हक में जो कहा है, वो अच्छा है. हम उम्मीद करते हैं कि वो भविष्य में भी इतने ही उदार रहेंगे.
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