टू बी ऑनेस्ट
मुझे तुम्हारे नाम के साथ 'प्रिय' लगाने में बहुत दिक्कत हो रही है. तुम्हारे ट्रेंड हो रहे बयान की वजह से नहीं. बस ऐसे ही. तुम्हारी फोटू वैसी ही है जैसे लोगों से मुझे बिना बात नफरत होती है. हेट ऐट फर्स्ट साइट. पर ये बात कभी और करेंगे. पहले अर्जेंट मामले पर बात. तुम्हें एंथनी पोंप्लिआनो याद है? नहीं होगा. बड़ी कंपनी है तुम्हारी, पचास एंथनी होंगे. तो मैं उस एंथनी की बात कर रहा हूं जिसे तुमने 2015 में स्नैपचैट से धकिया के बाहर निकाल दिया था. उसने तुम्हारे आंगन में धनिया बो दिया है. कहिस है तुम इंडिया को 'गरीब' बोले.
मम्मी कसम मुझे तनिक बुरा नहीं लगा. मुझे तुम बड़े इंटरेस्टिंग लगे. एक नई सोशल मीडिया कंपनी का CEO कह रहा है कि वो इंडिया में एक्सपैंशन नहीं करेगा. क्योंकि वो 'गरीब' है! ये कहने के लिए हिम्मत और बेवकूफी का गज़ब मिक्सचर चाहिए. सो तुम्हारे पास है. तो ये चिट्ठी डाल रहा हूं. पहली बार बात कर रहे हैं, इसलिए ढेर सारे सवाल हैं. इरीटेट मत होना.
सबसे पहले ये बताओ, तुम स्टैनफोर्ड में पढ़ते वढ़ते नहीं थे क्या? कि फर्ज़ी डिग्री बनवाई है तुमने? पढ़े होते तो तुम्हारा जीके इतना कमज़ोर न होता कि इंडिया की नॉमिनल जीडीपी, पर्चेज़िंग पावर पैरिटी वगैरह मिस कर जाओ. लेटर पूरा पढ़ते ही गूगल करना. पढ़ाई में तुम्हारा ध्यान था नहीं, तो तुमने 'स्लमडॉग मिलेनियर' देख कर अंदाज़ा लगाया होगा कि इंडिया गरीब है? ऐसा ही है, तो तुमने 'ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा' कैसे मिस कर दी? उसमें स्पेन दिखाया है. हमने सुना तुम स्पेन को भी गरीब बोले. इंडिया को में एक बार गरीब मान भी लूं. मगर स्पेन!

तुझे साड़े ज़ियादा पता है
तुम्हारा बयान सुनने के बाद से मालूम है मैं क्या सोच रहा हूं. कि साला ऐप डाउनलोड करने के पैसे देता कौन है जो अमीर-गरीब का कॉन्सेप्ट ले आए तुम. और वो भी इंडिया वालों के लिए. जानते हो हम लोग अपनी मेहनत की कमाई को लेकर कितने सीरियस हैं? फेसबुक हमारा ऑक्सीजन है. लेकिन वो भी पेड हो जाए ना, तो 24 घंटे नहीं लगेंगे हमें उसे अनइंस्टॉल करने में. और तुम तो फिर स्नैपचैट हो. इन-मीन-तीन लोगों के फोन में मिलता है.
इसलिए मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि तुम्हारे अंदर अकड़ है किस बात की. एक ऐसा ऐप बनाया है, जो किसी एंगल से यूनीक नहीं है. सब तो फेसबुक मैसेंजर ने कॉपी कर रखा है. एंड स्टिल
तुमको नए ग्राहक नहीं चाहिए.
मालूम है तुम्हारी सब्बसे बड़ी गलती क्या है? तुम एक सोशल मीडिया कंपनी चलाते हो लेकिन तुम उसकी एक बहुत बेसिक बात को नज़रअंदाज़ करते हो. सोशल मीडिया पर जो भी कामयाब प्लेटफार्म हैं, वो सब फ्री हैं. फेसबुक, वॉट्सऐप, ट्विटर सब के सब. और इनका फ्री होना ही इन्हें सही मायने में एक सोशल बनाता है - एक ऑनलाइन समाज. जहां हर बैकग्राउंड से आने वाले लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं. आपस में बात करते हैं, हंसते हैं, रोते हैं. यहां अमीरी-गरीबी का रोल ही नहीं है. सोशल मीडिया का फ्री होना उसे डेमोक्रेटाइज़
करता है. तुम जब इंडिया को गरीब कह कर खारिज़ करते हो, तो तुम लाखों 'स्टोरीज़' भी खारिज कर देते हो. वही स्टोरीज़ जो तुम्हारे ऐप को चलाती हैं. काश तुम स्नैपचैट ही नहीं, किसी भी सोशल मीडिया कंपनी के मालिक न होते.
ये बताओ तुम्हें इतनी बड़ी कंपनी का CEO बनाया किसने? और चलो बना दिया तो मार्केट एक्सपैंशन टाइप की चीज़ें तुम्हारे हाथ में क्यों दीं? जानते हो जेफ बेज़ोस (अपना 'एमेज़ोन' वाला) और ट्रैविस कालानिक (जिसकी 'ऊबर' है) इंडिया में 4000 करोड़ रुपए का इंवेस्टमेंट कर रहे हैं. इसका 65 से भाग दे दो तो डॉलर में आंकड़ा निकल आएगा. वो तुम समझ पाओगे.
मेरा मॉरल लेक्चर तुम्हें समझ नहीं आया होगा. तो तुम्हारी तरह नफे नुकसान की भाषा में बात करते हैं. मुझे वो लोग ढूंढने पर मिले जिनके फोन पर स्नैपचैट था. तुम्हारा बयान जब से पब्लिक हुआ है, इंडिया में ट्रेंड कर रहा है. यकीन नहीं आता तो गूगल ट्रेंड खोल कर देख लो. और तभी से पब्लिक स्नैपचैट अन-इंस्टाल करने में लगी हुई है. कोई 'गरीब' अपने फोन में तुम्हारा ऐप नहीं चाहता.
अब तुम सोच रहे होंगे कि गलती हो तो गई है. करूं क्या? तो ऐसा है कि जैसे तुमने 'स्लमडॉग मिलेनियर' से इंडिया के बारे में ज्ञान जमा किया था. उसे ये कुछ फिल्में देख के अपडेट करोः
'नमस्ते लंदन'
'डॉन नंबर वन'
'प्राउड टू बी एन इंडियन'
''लगान"
इतनी देख कर हो जाएं तो बताना. मैं आगे की लिस्ट भेजूंगा. धीरे-धीरे तुम इंडिया के बारे में सब जान जाओगे. फिर ऐसा ऊट-पटांग नहीं बोलोगे.
तुम्हारा,
निखिल
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