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जिस चांद पर चंद्रयान-3 जा रहा, वहां परमाणु बम फोड़ना चाहता था अमेरिका?

क्या था टॉप सीक्रेट 'A119' प्रोजेक्ट?

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साल 1959 में प्रोजेक्ट A119 को रद्द कर दिया गया. (फाइल फोटो और सांकेतिक तस्वीर: नासा और आजतक)

23 अगस्त. पूरा देश इस तारीख का इंतजार कर रहा है. वजह, चंद्रयान-3 का लैंडर 'विक्रम' चांद की सतह पर उतरेगा. इसलिए चंद्रयान -3 इस वक्त सबसे बड़ा कीवर्ड है. मीडिया-सोशल मीडिया के जरिये इस मिशन की पल-पल की जानकारी लोगों तक पहुंचाई जा रही है. लेकिन अपनी स्टोरी चंद्रयान पर नहीं है. हम आपको चांद से ही जुड़े एक ऐसे प्रोजेक्ट के बारे में बताने वाले हैं, जो अगर पूरा हो जाता तो पूरी दुनिया अपनी आंखों से चांद पर परमाणु बम फटता देखती. हैरान हो गए ना. स्वाभाविक है. ऐसे दुस्साहसी मिशन की नींव कहां पड़ी, और ये सफल हुआ क्यों नहीं, चलिए जानते हैं.

चांद पर परमाणु बम फोड़ने वाला मिशन

1950 के दशक में ही अमेरिका और रूस के बीच चांद पर सबसे पहले पहुंचने की होड़ शुरू हो गई थी. साल 1955 में सोवियत यूनियन ने अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया. और 1959 पहला मानव निर्मित यान चांद पर लैंड भी करा दिया. उधर 1958 में अमेरिका में नासा की स्थापना भी हो चुकी थी. इस साल पर होल्ड करिएगा. इसी बरस अमेरिका की एयरफोर्स ने एक टॉप सीक्रेट प्लान तैयार किया. नाम दिया... ‘अ स्टडी ऑफ लूनर रिसर्च फ्लाइट्स’. जिसे प्रोजेक्ट ‘A119’ के नाम से भी जाना गया. इसका उद्देश्य चांद पर परमाणु बम गिराकर प्लेनेटरी एस्ट्रोनॉमी और एस्ट्रोजियोलॉजी के जटिल रहस्यों का पता लगाना था. 

बीबीसी की एक रिपोर्ट में छपा है कि असल में अमेरिका अपने इस अजीब प्रोजेक्ट के जरिए सोवियत रूस को डराना चाहता था. यानी कहा जा सकता है कि इसके पीछे अमेरिका का असली इरादा शक्ति प्रदर्शन ही था. वजह साफ थी, अंतरिक्ष के क्षेत्र में रूस से बेहतर कर गुजरने की जिद.

शायद इसीलिए अमेरिका का प्लान परमाणु बम चांद की सतह पर गिराने की योजना थी. ताकि चांद पर हुए परमाणु बम के विस्फोट की रोशनी पृथ्वी पर, खासकर रूस से नंगी आंखों से देखी जा सके. 

अब सवाल ये कि अमेरिका के इस टॉप सीक्रेट प्लान के बारे में दुनिया को पता कैसे चला?

ये बात तो हम सब जानते हैं कि ऐसे बड़के प्रोजेक्ट अकेले हैंडल करना किसी के बस की बात नहीं. इन क्रियाकलापों में लंबी-चौड़ी टीम लगती है. जाहिराना इसमें भी लगी थी. मशहूर खगोल विज्ञानी Carl Sagan भी प्रोजेक्ट का हिस्सा थे. साल 1990 में कार्ल सेगन ने एक यूनिवर्सिटी में इस प्रोजेक्ट का जिक्र किय़ा था. जिसके बाद दुनिया को इस बारे में पता चला. इस प्रोजेक्ट का आगे क्या हुआ बताएंगे, लेकिन उससे पहले ये भी जान लीजिए कि अमेरिका की तरह सोवियत संघ भी ऐसी योजना बना रहा था. हां, चांद पर परमाणु बम फोड़ने की.

बीबीसी की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक उस दौर में अमेरिकी अखबारों में खबर छपी. लिखा गया कि सोवियत यूनियन चांद पर परमाणु बम गिराने की योजना बना रहा है. बाद में इन बातों को अफवाह बताया गया. लेकिन इन कथित अफवाहों की वजह से सोवियत संघ चांद पर बम गिराने की योजना बनाने को मजबूर हो गया. उस योजना का कोड नेम 'ई फोर' रखा गया जो अमेरिका के प्रोजेक्ट A119 का कार्बन कॉपी था.

प्रोजेक्ट कैंसिल कैसे हुए?

साल 1959 में प्रोजेक्ट A119 को रद्द कर दिया गया. अमेरिकी एयरफोर्स के अधिकारियों की ओर से दलील दी गई कि चांद पर परमाणु बम गिराने में फायदों से ज्यादा जोखिम है. और बम फोड़ने की जगह चांद पर उतरने से ज्यादा ख्याति मिलेगी. हालांकि इस प्रोजेक्ट को लीड कर चुके भौतिक वैज्ञानिक Leonard Reiffel ने साल 2000 में बताया था कि ये प्रोजेक्ट तकनीकी तौर पर संभव हो सकता था और चांद पर फूटे परमाणु बम के धमाके को धरती से देखा जा सकता था.

ख़ैर अमेरिका का ये प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में तो गया ही, सोवियत रूस ने भी इस परियोजना को रद्द कर दिया. क्या पता अगर ये हो जाता तो चांद पर अमेरिका के सैन्य अड्डे भी बने होते.

वीडियो: चंद्रयान 3 के लैंडर पर 'सोने की चादर' लगाने के पीछे का साइंस क्या है?