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दारुल उलूम के खिलाफ बाल आयोग ने कार्रवाई की मांग की, 'इंग्लिश से दूर' रहने का फरमान दिया था

इस्लामी मदरसा दारुल उलूम ने कुछ दिन पहले अपने एक फरमान में कहा था कि उसके यहां कोई भी छात्र अगर अंग्रेजी या किसी दूसरी भाषा को सीखता है तो उसे निकाल दिया जाए.

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दारुल उलूम के फरमान पर गरमाया माहौल. (तस्वीरें- आजतक/दारुल उलूम)

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने दारुल उलूम के इंग्लिश को लेकर दिए फरमान के खिलाफ प्रशासन से शिकायत की है. इस्लामी मदरसा दारुल उलूम ने कुछ दिन पहले अपने एक फरमान में कहा था कि उसके यहां कोई भी छात्र अगर अंग्रेजी या किसी दूसरी भाषा को सीखता है तो उसे निकाल दिया जाए. फरमान में ये भी कहा गया था कि अगर दारुल उलूम के पाठ्यक्रम से बाहर छात्र कुछ भी सीखता है, तो भी उसे बाहर कर दिया जाएगा. और ये कार्रवाई सिर्फ मदरसे के भीतर नहीं होगी, बाहर भी इस 'नियम' पर ऐसे ही कदम उठाए जाएंगे. अब इस पर NCPCR ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सहारनपुर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) को पत्र लिखा है.

दारुल उलूम के फरमान के खिलाफ NCPCR की चिट्ठी

इस चिट्ठी में NCPCR के प्रमुख प्रियंक कानूनगो ने दारुल उलूम पर तुरंत कार्रवाई करने की मांग की है. साथ ही मदरसे से अपना नोटिस वापस लेने की भी मांग की है. प्रियंक ने DM को लिखी चिट्ठी में कहा,

"दारुल उलूम के गैरकानूनी और भ्रमित करने वाले नोटिस की ओर हम आपका ध्यान खींचना चाहते हैं. इससे बच्चों के अधिकारों का अंधाधुन हनन हो रहा है. NCPCR मानता है कि ऐसे फरमान बच्चों के लिए हानिकारक साबित होंगे. आपसे दरख़्वास्त है कि इस मामले में तुरंत कार्रवाई करें. इस फरमान को वापस लेने का ऑर्डर जारी करें और जल्द से जल्द इसे सुनिश्चित करें."

आजतक से जुड़े अमित भारद्वाज और पिन्टू शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक दारुल उलूम के शिक्षा विभाग के प्रभारी मौलाना हुसैन हरिद्वारी की ओर से छात्रों के लिए फरमान जारी किया गया था. इसमें कहा गया कि मदरसे में तालीम हासिल करने के दौरान छात्रों को इंग्लिश और दूसरी चीजें सीखने की इजाजत नहीं होगी. अगर कोई छात्र इस पर अमल नहीं करता है या फिर गुप्त रूप से सीखने की कोशिश करता है, तो उसको निकाल दिया जाएगा.

दारुल उलूम ने 14 जून को जारी किया था फरमान

दारुल उलूम के वरिष्ठ मौलाना अरशद मदनी ने मामले पर आजतक से बात करते हुए कहा,

"हमारा जो कोर्स है, जो तालीम है, जो किताबें हैं, वे हमें इसकी इजाजत नहीं देतीं कि हम उनके साथ किसी दूसरी चीज को पढ़ें. इसलिए कि हम 6 घंटे पढ़ाते हैं. जो हमने पढ़ाया है अगर उसको छात्र शाम के समय नहीं देखेगा तो वो कामयाब नहीं हो सकता. हमने ये कहा कि आप (हमारे यहां से) पढ़ने के बाद चाहे इंजीनियर बनें, डॉक्टर बनें, वकील बनें, जो आपका जी चाहे बनें. लेकिन हमारे यहां पढ़ते हुए आप जो हम पढ़ाते हैं, उसकी तरफ तवज्जो ना देकर के कुछ और और पढ़ें तो दारुल उलूम इसकी इजाजत नहीं देता."

मौलाना ने ये भी बताया कि पहले पांच साल कुरान और उससे जुड़ी चीज़ें पढ़ाने के बाद ये मदरसा अंग्रेजी और हिंदी भाषाएं भी पढ़ाता है. पर कोर्स के मुताबिक ये पांच साल पढ़ने के बाद ही शुरू होता है. अरशद मदनी ने ये भी कहा कि उनके यहां भाषाओं के साथ-साथ कंप्यूटर की भी पढ़ाई कराई जाती है. हालांकि, ये सब एक निर्धारित समय पर होता है.

रिपोर्ट के मुताबिक NCPCR के अलावा उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक आयोग ने भी दारुल उलूम को नोटिस भेजा है. इसे लेकर भाजपा नेता बृजेश सिंह ने आजतक से बात करते हुए कहा,

"दारुल उलूम के संचालकों को सीधा-सीधा 2 शब्दों में एक बात कहना चाहता हूं. ये भारत है, भारत संविधान से चलता है, शरीयत से नहीं, ना फतवों से. भारत अपने देश के सविधान में शक्तियों के आधार पर नियम कायदों के आधार पर चलता है. 

बृजेश सिंह ने आगे कहा कि भारत में रहने वाला हर नागरिक अपनी मर्जी से हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, जो भी पढ़ना चाहे, पढ़ेगा. ये किसी के द्वारा थोपे गए नियमों के आधार पर तय नहीं होगा.

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