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प्रधानमंत्री मोदी का नाटक सामने आ गया!

और वो भी बहुत पुराना.

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पीएम मोदी के बचपन की फोटो. (बाएं) पीएम मोदी का 17 सितंबर को जन्मदिन है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उस समय 13 या 14 साल के रहे होंगे. वडनगर के जिस स्कूल में पढ़ते थे, उसके कंपाउंड की दीवार कई जगह से टूट गई थी. स्कूल के पास पैसे नहीं थे कि इसकी मरम्मत करा सके. नरेंद्र मोदी और उनके दोस्तों ने फंड जुटाने का फैसला किया. उन्होंने तय किया वे नाटक करेंगे. पीएम मोदी ने न केवल इस नाटक को लिखा, बल्कि इसे डायरेक्ट किया और एक्टिंग भी की. यह वन मैन शो था. नाटक का नाम पीलू फूल था. जिसका मतलब होता है पीले फूल, नाटक की थीम छुआछूत थी. एक सदियों पुरानी प्रथा. जिसे संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत असंवैधानिक घोषित किया गया था. अस्पृश्यता. इसे अपराध घोषित करने के लिए पहली बार संसद ने कानून 1955 में कानून बनाया. लेकिन मोदी ने नाटक लिखा साल 1963-64 में. उस समय भी सामाज में छुआछूत थी. जो आज तक जारी है. क्या था मोदी ने नाटक में? मोदी के नाटक में एक दलित महिला होती है, जो एक गांव में अपने बेटे के साथ रहती है. एक बार बच्चा बीमार हो जाता है. वह उसे लेकर वैद्य के पास जाती है. तांत्रिक के पास जाती है, डॉक्टर को भी दिखाती है. लेकिन हर कोई बच्चे को छूने से मना कर देता है. बीमारी का इलाज करने से मना कर देता है. मां परेशान हो जाती है. गांव में कोई सुझाव देता है कि आपका बेटा ठीक हो सकता है. अगर वह गांव के मंदिर में देवाओं को चढ़ाए गए पीले फूल को छू लेगा. दलित महिला मंदिर जाती है. लेकिन छुआछूत की वजह से उसे मंदिर में नहीं जाने दिया जाता है. पुजारी उस पर चिल्लाता है. लेकिन वो अपने बच्चे के लिए एक पीले फूल की भीख मांगती है. गिड़गिड़ाती है, जिससे बेटे की जान बच सके. अंत में मंदिर का पुजारी दलित महिला को पीले फूल देने के लिए राजी हो जाता है. मोदी का नाटक एक संदेश के साथ खत्म होता है. भगवान के सामने हर कोई समान है. सभी का मंदिर में देवताओं के लिए चढ़ाए गए फूलों पर समान अधिकार है. मोदी पर लिखी किताब की सह लेखक कालिंदी रणदेरी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि किताब लिखने के लिए वो रिसर्च कर रही थीं. उसी सिलसिले में वडनगर गईं. नाटक को लेकर कई लोगों की यादें ताजा हो गईं. उन्होंने कहा कि यह नाटक शानदार तरीके से लिखा गया था. उसी तरह से इसे प्ले भी किया गया. ऐसा कहा जाता है कि मोदी का नाटक एक वास्तविक घटना से प्रेरित था, जिसमें उन्होंने वडनगर में एक पुजारी को एक दलित महिला को मंदिर से दूर भागते देखा था. The Man of the Moment Narendra Modi बहुत कम लोगों को पता होगा कि स्कूल के दिनों में मोदी की एक्टिंग और ड्रामा में दिलचस्पी थी. नरेंद्र मोदी की बायोग्राफी The Man of the Moment: Narendra Modi में इसका जिक्र है. लेखक हैं एमवी कामथ और कालिंदी रणदेरी. 2013 में यह किताब लिखी गई थी. जब मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रचारित किया जा रहा था. पीएम मोदी ने अपनी किताब एग्जाम वॉरियर में भी एक्टिंग और ड्रामे के प्रति उनकी दिलचस्पी के बारे में लिखा है. exam warriors एग्जाम वॉरियर के एक चैप्टर में पीएम मोदी उन दिनों को याद करते हैं जब वह एक नाटक के मंचन के लिए प्रैक्टिस कर रहे थे. मोदी लिखते हैं, मुझे एक विशेष डायलॉग बोलना था, जो किसी कारण से मैं बोल नहीं पा रहा था, मैं संघर्ष कर रहा था. नाटक के निर्देशक व्याकुल हो गए. उन्होंने कहा कि अगर मैं उस तरीके से संवाद कहता रहा तो वह मुझे निर्देशित नहीं कर पाएंगे. लेकिन मोदी को लगता था कि वो डायलॉग ठीक बोल रहे हैं. 'मुझे यह देखकर बहुत बुरा लगा कि निर्देशक मेरे बारे में यही कहेंगे. अगले दिन, मैंने उनसे कहा कि वो उस सीन को करके दिखाएं कि आखिर मैं क्या गलत कर रहा हूं. उन्होंने जैसा ही करके दिखाया मुझे पता चल गया कि मैं कहां गलत कर रहा था. और मुझे कहां सुधार करने की जरूरत थी.
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