कहानी है एक किले की. किला, जो समंदर के बीचों-बीच एक टापू पर बना था, जिसे मछुआरों ने बसाया था और बाद में जो अफ्रीका से आए गुलामों की रियासत बन गया. किला, जिसे जीतने की कई बार कोशिश हुई. लेकिन कोई जीत नहीं पाया. यहां तक कि मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज (Chatrapati Shivaji Maharaj) भी इस किले को जीतने में कामयाब नहीं हो पाए. बात हो रही है रायगढ़ के पास अरेबियन सागर में बने मुरुड जंजीरा किले (Murud Janjira Fort) की. क्या है इस किले का इतिहास, ऐसा क्या था इस किले में कि कोई इसे जीत नहीं पाया?
समंदर में बना ऐसा किला, जिसे भेद नहीं पाए बड़े-बड़े सूरमा, छत्रपति शिवाजी महाराज से भी जुड़ा है नाम
महाराष्ट्र (Maharashtra) में रायगढ़ के पास अरेबियन सागर में मुरुड जंजीरा किला (Murud Janjira Fort) बना हुआ है. इसी की कहानी जानेंगे.

मुंबई से 165 किलोमीटर दूर महराष्ट्र के रायगढ़ जिले का तटीय इलाका है- मुरुड. मुरुड के पास अरेबियन सागर में बना है जंजीरा किला. इसे मुरुड-जंजीरा फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है. नाम कैसे पड़ा? दरअसल अरबी भाषा में आइलैंड को जजीरा कहते हैं. इसी जजीरे से बना जंजीरा. किला बनाया किसने? किले की कहानी शुरू होती है 15वीं शताब्दी से. जंजीरा तब सिर्फ एक आइलैंड हुआ करता था और अहमदनगर की निजामशाही के कंट्रोल में आता था. कोली समुदाय से आने वाले राजा राम राव पाटिल अहमदनगर की नेवी में एडमिरल हुआ करते थे. अहमदनगर के निजाम ने उन्हें जंजीरा आइलैंड पर एक फोर्ट बनाने की इजाजत दी.

दरअसल ये इलाका तब ट्रेड के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण हुआ करता था. मैप में देखेंगे तो आपको दिखेगा कि दमन, भरूच, मैंगलोर - ये सारे बंदरगाह जंजीरा के आसपास ही पड़ते थे. दूसरा अफ्रीका और मिडिल ईस्ट से भारत के बीच ट्रेड के लिए भी ये महत्वपूर्ण पोर्ट था. इसी के चलते राजा राम राव पाटिल ने जंजीरा पर लड़की का हल्का फुल्का निर्माण कराया. और इसे एक किले की शक्ल दे दी. किला बनते ही राम राव पाटिल को अपनी ताकत का अहसास हुआ और उन्होंने निजाम के आर्डर मानने से इंकार कर दिया. पाटिल को सबक सिखाने और किले पर दोबारा कब्ज़ा ज़माने के मकसद से निजाम ने पीरम खान नाम के एक आर्मी जनरल को भेजा.
साल 1489 में पीरम खान सिद्दियों की एक फौज लेकर सूरत से रवाना हुआ. सिद्दी यानी अफ्रीकी मूल के वे लोग जिन्हें गुलाम बनाकर बेचा जाता था. ये गुलाम भारत में सैनिक के रूप में भर्ती किए जाते थे. और दक्कन की राजनीति में इनका काफी दखल हुआ करता था. पीराम खान ने जब सिद्दियों के साथ जंजीरा की तरफ कूच किया. उनके पास बड़ी सेना थी. लेकिन वो जंजीरा पर सीधे हमले से बच रहे थे. समंदर के बीचों बीच बने किले पर चढ़ाई मुश्किल थी. इसलिए पीरम खान ने एक दूसरा प्लान बनाया. उसने राम राव पाटिल के पास सन्देश भेजा कि वो शराब के व्यापारी हैं और कुछ देर किले में शरण लेना चाहते हैं. पाटिल तैयार हो गए. इसके बदले पीरम खान ने उन्हें शराब के कुछ ड्रम तोहफे में दे दिए. किले पर मौजूद पाटिल और उनके आदमियों ने शराब पी. जैसे हे वे लोग नशे में धुत हुए, पीरम खान और सिद्दियों की फौज ने उन पर हमला कर किले को कब्ज़ा लिया.
किले पर कब्ज़ा होने के बाद अहमदनगर के निजाम ने इसे सिद्दियों के हवाले कर दिया. सिद्दियों के ताकतवर जनरल मलिक अंबर ने जंजीरा में विशाल और ताकतवर किले का निर्माण कराया. मलिक अम्बर अफ्रीका से आए एक गुलाम थे, जो आगे चलकर दक्कन में एक बड़े पावर ब्रोकर बने और ताउम्र मुगलों के लिए सरदर्द बने रहे. मलिक अम्बर की ही रणनीति बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनाई थी. बहरहाल नोट करने वाली बात है कि मलिक अंबर ने जंजीरा किले को इतना ताकतवर बना दिया था कि 400 साल के इतिहास में कोई इसे नहीं जीत पाया. बल्कि 1947 में आजादी तक ये किला, सिद्दियों के ही कंट्रोल में रहा. हालांकि ऐसा नहीं कि इस किले को जीतने की कोशिश नहीं हुई. छत्रपति शिवाजी ने इस किले को जीतने की कोशिश की थी. क्या हुआ था इस हमले में. ये जानने से पहले जरा इस किले की खासियत जान लेते हैं. ऐसा क्या था इस किले में?
किले की खासियतजंजीरा किले की ऊंचाई 90 फ़ीट है. नींव ज़मीन में 20 फ़ीट तक, इसी बात से इसकी मज़बूती का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. पूरा किला 22 एकड़ में फैला है. साथ ही इसमें 22 सुरक्षा चौकियां भी हैं. किले के अंदर घुसते ही सबसे पहले एक चीज़ नज़र आती है, नागरखना. प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर संगमरमर का ये शिलालेख अरबी में किले के बारे में जानकारी देता है. किले के अंदर ही बीचो-बीच एक छोटी पहाड़ी है, जिसकी ऊंचाई करीब 80 मीटर है. इसपर खड़े होकर आप पूरे किले को देख सकते हैं. इस किले की सबसे विचित्र चीज़ है इसके अंदर बनी एक झील. ताज्जुब की बात ये है कि समुद्र के खारे पानी के बीच होने के बावजूद इस झील का पानी मीठा है.

मुरुड-जंजीरा किले का दरवाजा दीवारों की आड़ में बनाया गया है, जो किले से कुछ मीटर दूर जाने पर दीवारों के कारण दिखना बंद हो जाता है. यही वजह रही है कि दुश्मन किले के पास आने के बावजूद चकमा खा जाते थे और किले में घुस नहीं पाते थे. किले के पत्थरों को मजबूती से एक साथ बांधने के लिए रेत, चूना-पत्थर, गुड़ और पिघले हुए शीशे का इस्तेमाल किया गया है. इन सबके अलावा इस किले पर कई मजबूत तोपें तैनात हुआ करती थीं. इसके चलते बड़ी नावों से इस पर अटैक करना और भी मुश्किल हो जाता था. हालांकि तमाम मुश्किलों के बावजूद इस किले की अहमियत बहुत ज्यादा थी. लिहाजा इस पर हमले की कई बार कोशिश हुई.
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छत्रपति शिवाजी और जंजीरामराठा शासक छात्रपति शिवाजी महाराज किलों का महत्व अच्छे से जानते थे. लिहाज़ा उन्होंने भी जंजीरा किले पर पैर जमाने की कोशिश की. शिवाजी ने जब जंजीरा पर हमला किया. अहमदनगर की निजामशाही कमजोर हो चुकी थी. इसलिए जंजीरा के सिद्दियों ने बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत से हाथ मिला लिया. बीजापुर की तरफ से फत्ते खां को जंजीरा का लीडर बनाया गया था. फत्ते खां के अधीन 7 और किले थे, जिन्हें मराठा जीत चुके थे. बाकी बचा जंजीरा.

जंजीरा जीतने के शुरुआती अभियानों के फेलियर के बाद 1669 में शिवाजी महाराज ने खुद जंजीरा पर हमले की अगुवाई की. शिवाजी महाराज ने फत्ते खां को एक सन्देश भेजा कि हम आपको मुआवजा देंगे, सम्मान देंगे और आपके साथ किसी भी तरह का गलत सलूक नहीं किया जाएगा. फत्ते खां मान गए. लेकिन किले में एक तबके को उनका शिवाजी महाराज से हाथ मिलाना रास नहीं आया. फत्ते खां के खिलाफ विद्रोह छिड़ गया. उन्हें कैद कर लिया गया. इसके बाद सिद्दियों ने किले पर अपना एकाधिकार जमा लिया और आदिलशाही के साथ रिश्ते तोड़ कर मुग़लों से हाथ मिला लिया. शिवाजी के खिलाफ सिद्दियों ने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब से मदद मांगी. दुश्मन का दुश्मन दोस्त की तर्ज़ पर औरंगज़ेब ने सिद्दियों से हाथ मिला लिया.
इसके बाद औरंगज़ेब ने सिद्दियों की मदद के लिए अपनी फौज भेजी. मराठा फौज को दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ी. इसी के चलते जंजीरे पर कब्ज़े का प्लान फेल हो गया. जंजीरा किले का महत्व देखते हुए औरंगज़ेब ने सिद्दियों के लीडर को अपना नेवल कमांडर बनाया और उसे याकूत खान की उपाधि से नवाज़ा. जंजीरा पर मराठों ने एक बार फिर हमला किया. साल 1671 में. इस बार भी मायूसी हाथ लगी. जंजीरा पर जीत का कोई रास्ता न मिलता देख शिवाजी ने जंजीरा से कुछ दूर पद्मदुर्ग नामक जगह पर एक किला बनाने की कोशिश की. हालांकि जंजीरा से लगातार तोप के गोले दागे जा रहे थे, जिससे इस किले को बनाने में काफी दिक्कत आ रही थी.

इस मुसीबत से लड़ने के लिए शिवाजी ने फैसला किया कि वो नौसेना तैयार करेंगे. शिवाजी समझ गए थे कि साम्राज्य चलाने के लिए नौसेना बहुत अहम है. लिहाज़ा 20 जहाजों की एक फ्लीट तैयार कर उन्होंने मराठा नौसेना की शुरुआत की. जंजीरा और मराठाओं के बीच अगली लड़ाई हुई साल 1676 में. पेशवा मोरोपंत के नेतृत्व में मराठाओं ने जंजीरा पर चढ़ाई की कोशिश की. पेशवा ने सोचा था सीढ़ियां लगाकर डायरेक्ट किले के दरवाज़े पर उतरा जाए. लेकिन इससे पहले वो वहां पहुंचते, मुग़ल फौज ने एक बार फिर मराठा सैनिकों पर हमला कर दिया. इस तरह ये प्लान भी फेल हो गया. शिवाजी महाराज के बाद उनके बेटे संभाजी महाराज ने भी जंजीरा को जीतने की कोशिश की. 1682 में उन्होंने समुद्र में पुल बनाने की कोशिश की. लेकिन इसी बीच मुगलों ने रायगढ़ पर हमला कर दिया. मुग़ल सरदार हसन अली ने 40 हज़ार की फौज के साथ रायगढ़ पर हमला किया. इसके चलते संभाजी को जंजीरा छोड़कर रायगढ़ की सुरक्षा के लिए वापस लौटना पड़ा. और जंजीरा पर हमले की आख़िरी कोशिश भी फेल हो गई.
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अजेय दुर्गजंजीरा फोर्ट मराठा साम्राज्य पर एक नासूर की तरह लगा हुआ था. लिहाजा संभाजी के बाद भी मराठाओं ने इसे जीतने की कई बार कोशिश की. औरंगज़ेब के बाद मुग़ल कमजोर हुए. तब जाकर मराठा फौज को सिद्दियों के खिलाफ कुछ सफलता मिलनी शुरू हुई. साल 1736 में पेशवा बाजीराव की लीडरशिप में मराठाओं और सिद्दियों के बीच एक बड़ी जंग हुई. इसमें मराठाओं को जीत मिली. हालांकि, तब भी जंजीरा पर मराठाओं का कब्ज़ा नहीं हो पाया. युद्ध के बाद संधि के तहत सिद्दियों का बड़ा इलाका मराठाओं के अधीन हो गया और सिद्दी सरदार सिर्फ जंजीरा किले तक सीमित हो गए. मराठाओं के कमजोर हो जाने के बाद सिद्दियों ने जंजीरा में एक रियासत की नींव रखी. 1803 तक सिद्दी लीडरों को वजीर की उपाधि मिली हुई थी. 1803 के बाद ये नवाब कहलाए जाने लगे.
बाकायदा जब अंग्रेज़ों का भारत में वर्चस्व स्थापित हुआ. सिद्दियों की रियासत को भी वही ओहदा मिला, जैसा बाकी रियासतों को मिला हुआ था. जंजीरा का किला, 1947 तक सिद्दी नवाबों के अधीन रहा. इसके बाद जंजीरा का भारत में विलय हो गया. सिद्दी नवाब 1971 तक प्रिवी पर्स लेते रहे. लम्बे समय सिद्दियों के कई परिवार जंजीरा में रहा करते थे. लेकिन फिर पुरातत्व विभाग के यहां रेस्टोरेशन का काम शुरू किया और इन परिवारों को जंजीरा छोड़ना पड़ा. आज जंजीरा एक पर्यटन स्थल है. जहां लोग घूमने जाते हैं. यहां आज भी यहां सैकड़ों साल पुरानी सिद्दी रियासत के अवशेष देखे जा सकते हैं.
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