योगी आदित्यनाथ के इस बयान का जवाब देने के लिए एआईएमआईएम मुखिया असुद्दीन ओवैसी सामने आए. उन्होंने योगी आदित्यनाथ का जवाब देते हुए कहा कि ये मुल्क सबका है. ओवैसी ने कहा कि योगी हिस्ट्री में जीरो हैं. अगर पढ़ना नहीं आता, थम्स अप हैं, तो पढ़ने वालों से पूछो. मुझे मालूम है आप थम्सअप हैं. अगर पढ़ते तो पता होता कि निज़ाम हैदराबाद छोड़कर नहीं गए, उनको राजप्रमुख बनाया गया था.
बात इतने पर ही नहीं रुकी और सामने आए असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी. हैदराबाद के चारमिनार विधानसभा क्षेत्र में रैली को संबोधित करते हुए अकबरुद्दीन ने कहा कि आज एक और आया, वो कैसे-कैसे कपड़े पहनता है, तमाशे जैसा दिखता है. किस्मत से चीफ मिनिस्टर भी बन गया, कह रहा है निज़ाम की तरह ओवैसी को भगाऊंगा, अरे तू क्या, तेरी हैसियत क्या, तेरी बिसात क्या, तेरे जैसे 56 आए और चले गए, अरे ओवैसी को छोड़ो, उसकी आने वाली 1000 नस्लें भी इस मुल्क में रहेंगी और तुझसे लड़ेंगे. तेरा मुकाबला करेंगे और तेरी मुखालफत करेंगे. पीएम मोदी पर भी हमला करते हुए अकबरुद्दीन ने कहा कि चाय वाले, हमें मत छेड़, चाय-चाय चिल्लाते हो, याद रखो इतना बोलूंगा कि कान में से मवाद निकलने लगेगा, खून निकलने लगेगा.
Akbaruddin Owaisi Bold & Firing Reply to #UP CM Yogi Adityanath.
Akbaruddin Owaisi Bold & Firing Reply to UP CM Yogi Adityanath.
Posted by Viquar e deccan
on Sunday, 2 December 2018
दुनिया के सबसे धनी लोगों में से एक निज़ाम चाहते थे अलग देश

निज़ाम उस्मान अली खान (फोटो : वीकिपीडिया)
जब भारत आजाद हुआ, तो उस वक्त वो 562 रियासतों में बंटा हुआ था. सरदार पटेल ने एकीककरण की शुरुआत की और 559 रियासतें भारत में मिल गईं. लेकिन तीन रियासतें राजी नहीं हुईं. कश्मीर, जूनगढ़ और हैदराबाद. कश्मीर बाद में भारत में शामिल हुआ, जिसपर अब तक विवाद चल रहा है. जूनागढ़ भारत में शामिल हो गया और उसका निज़ाम पाकिस्तान भाग गया. लेकिन हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. यहां पर समरकंद से आए आसफजाह की वंशावली चलती थी. ये लोग मुगलों की तरफ से इस रियासत के गवर्नर थे. औरंगजेब के बाद इनका राज हो गया था यहां. इनको निज़ाम कहते थे. तो 1948 में निज़ाम उस्मान अली खान आसफजाह सातवें उस प्रजा पर राज करते थे, जिसमें 85 फीसदी लोग हिंदू थे. निज़ाम उस वक़्त दुनिया के सबसे धनी लोगों में से एक थे.

निज़ाम हैदराबाद को एक अलग देश बनाना चाहते थे.
निज़ाम का सपना था कि अपना एक अलग देश हो. इसके लिए अपनी आर्मी के अलावा उन्होंने एक अलग आर्मी बना रखी थी. जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग थे. इनको रजाकार कहते थे. इसके पहले निज़ाम ब्रिटिश सरकार के पास भी जा चुके थे और मांग की थी कि कॉमनवेल्थ के अधीन इनका अपना देश हो. पर माउंटबेटन ने मना कर दिया था. हैदराबाद में पहले से ही कम्युनल टेंशन था. इसी के साथ तेलंगाना को लेकर विरोध था. उसी वक़्त मुसलमानों का एक ग्रुप बना था MIM जिसके मुखिया थे नवाब बहादुर यार जंग. इनके मरने के बाद मुखिया बने कासिम रिजवी. कासिम रजाकारों के नेता थे. इन लोगों का उद्देश्य था इस्लामिक राज्य बनाना. ये डेमोक्रेसी को नहीं मानते थे. इन लोगों ने आतंक फैला दिया. जो भी इनके खिलाफ था, इनका दुश्मन था. कम्युनिस्ट और मुसलमान जो इनसे अलग थे, वो भी इनके टारगेट थे. मेन टारगेट थे हिन्दू. नतीजन हजारों लोगों को मारा जाने लगा. औरतों का रेप हुआ. इनको लगा कि ऐसा करने से इनका महान राज्य बन जायेगा.
भारत सरकार का टूट गया धैर्य और भारत का हो गया हैदराबाद

हैदराबाद के मेजर जनरल सैयद अहमद ने भारत के मेजर जनरल जे एन चौधरी के सामने सरेंडर किया था.
इसके बाद भारत सरकार का धैर्य टूट गया. सरदार पटेल ने सेना की टुकड़ी हैदराबाद में भेज दी. सेना के पहुंचने के बाद 5 दिन तक जबरदस्त लड़ाई हुई. पुलिस एक्शन बताने के चलते दुनिया के किसी और देश ने हाथ नहीं डाला. मिलिट्री एक्शन कहते ही दुनिया के बाकी देश भारत पर इल्जाम लगा देते कि भारत ने किसी दूसरे देश पर हमला कर दिया है. रजाकारों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया. कासिम को जेल में डाल दिया गया. इनके ऑफिस दारुस्सलाम को फायर स्टेशन बना दिया गया. MIM के नेताओं को पाकिस्तान भेज दिया गया या पब्लिक में निकलने से रोक दिया गया. बाद में कासिम को जेल से निकलने पर दो दिन का टाइम दिया गया पाकिस्तान जाने के लिए. जब कासिम को दो दिन का वक्त मिल गया, तो उनके सामने सबसे बड़ा सवाल था कि अब MIM का क्या होगा. इसके लिए MIM की एक बैठक हुई. इस बैठक में अब्दुल वाहिद ओवैसी नाम का एक वकील भी था. उसने जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. पार्टी का नाम बदलकर कर दिया AIMIM यानी कि ऑल इंडिया मजलिए-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन. ये वही पार्टी है, जिसे अब ओवैसी भाई चलाते हैं.
लेकिन निज़ाम का क्या हुआ?

निज़ाम को हैदराबाद का प्रमुख बना दिया गया, लेकिन निज़ाम के पास ताकत नहीं बची थी. उसे हर फैसला कैबिनेट की सलाह से करना पड़ता था.
हैदराबाद के भारत में इस विलय को नाम दिया गया ऑपरेशन पोलो. ये नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज़्यादा 17 पोलो के मैदान थे. पांच दिनों तक चली इस कार्रवाई में 1373 रज़ाकार मारे गए थे. हैदराबाद के निज़ाम के 807 जवान भी मारे गए, वहीं भारतीय सेना ने 66 जवान शहीद हो गए. ये लड़ाई तब खत्म हुई, जब निज़ाम उस्मान अली खान आसफजाह ने भारत सरकार के सामने घुटने टेक दिए. सरदार पटेल ने हैदराबाद का भारत में विलय कर लिया और निज़ाम उस्मान अली खान आसफजाह को हैदराबाद का राष्ट्रप्रमुख बना दिया. हालांकि निज़ाम सिर्फ कहने के लिए राष्ट्रप्रमुख रह गए थे, क्योंकि उन्हें कैबिनेट मंत्रियों की सलाह पर ही चलना पड़ता था. ये स्थिति 1956 तक कायम रही थी. 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया, जिसने राज्यों की सीमाएं निर्धारित कीं. इसके बाद निज़ाम की रियासत अलग-अलग भारतीय राज्यों में बंट गई और निज़ाम अपने महल तक सीमित हो गए.
भारत की सेना के लिए दान कर दिए 1600 करोड़ रुपये

निज़ाम उस्मान अली खान आसफजाह बेहद अमीर थे. इतने अमीर कि कहा जाता है कि जब भारत आजाद हुआ तो देश का कुल राजस्व करीब 1 अरब डॉलर था और निज़ाम के पास 2 अरब डॉलर की संपत्ति थी. इतने अमीर कि वो करीब 1340 करोड़ रुपये के हीरे का इस्तेमाल पेपर वेट की तरह करते था. इतने अमीर कि ब्रिटेन के अंग्रेजी अखबार द इंडिपेंडेंट ने उन्हें दुनिया के छह सर्वकालिक धनवानों की सूची में छठे नंबर पर रखा है और टाइम मैगज़ीन ने 22 फरवरी 1937 के इश्यू में अपने कवर पर जगह दी है. इतने अमीर कि कहा जाता है कि 1912 में ही इनके पास 50 रॉल्स रॉयल गाड़ियां थीं. इतने अमीर कि जब निज़ाम को लगा कि भारत हैदराबाद को अपने कब्जे में ले लेगा तो उन्होंने करीब 3 अरब डॉलर लंदन के नेटवेस्ट बैंक में जमा कर दिए. अब भारत, पाकिस्तान और उनके वंशज तीनों इस पैसे पर अपना-अपना दावा करते हैं.

22 फरवरी 1937 की टाइम मैगज़ीन.
इतने अमीर कि जब द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ तो उसने अंग्रेजों को नौसैनिक जहाज और दो रॉयल एयरफोर्स स्क्वाड्रन दिए थे. जब भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में युद्ध हुआ तो भारत की जीत हुई. लेकिन चीन और भारत के बीच 1962 में युद्ध हुआ था तो भारत का नुकसान हुआ था. भारत फिर से अपनी ताकत बढ़ाने में लगा हुआ था. चीन की सामरिक ताकत के बरक्स खुद को खड़ा रखने के लिए भारत तैयार हो रहा था. इसके लिए भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय रक्षा कोष बनाया. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने रेडियो पर लोगों से मदद मांगी. जब लाल बहादुर शास्त्री रेडियो पर लोगों से पैसे मांग रहे थे, हैदराबाद में बैठे निज़ाम उस्मान अली खान आसफजाह भी उसे सुन रहे थे. बात सुनने के बाद निज़ाम ने पीएम शास्त्री को दिल्ली से हैदराबाद आने का निमंत्रण भेजा. लाल बहादुर शास्त्री बिना देर किए 11 दिसंबर, 1965 को हैदराबाद पहुंचे, जहां उन्हें लेने के लिए खुद निज़ाम बेगमपेठ एयरपोर्ट पर मौजूद थे. निज़ाम ने एयरपोर्ट पर ही पांच बक्से मंगवाए, जिनमें सोना भरा था. निज़ाम ने कहा-
'मैं ये पांच टन सोना भारतीय सेना को दान कर रहा हूं. इसे स्वीकार करें और निडर होकर जंग लड़ें. हम ज़रूर जीतेंगे.'

निज़ाम ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को 5 टन सोना दिया था.
उस्मान अली खान ने पीएम शास्त्री को 5 टन सोना यानी कि 5,000 किलो सोना दे दिया और इसकी कीमत इस वक्त करीब 1600 करोड़ रुपये होगी. पैसे देने के एक साल बाद लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें फोन करके हालचाल पूछा. निज़ाम ने सारी बातें करने के बाद कहा कि शास्त्री जी, मैंने आपको जिन बक्सों में सोना दिया था वो मेरे पुरखों की निशानी है. अगर आपने सोना खाली कर लिया हो तो वह बक्से मुझे लौटा दीजिए. इसके बाद वो बक्से निज़ाम को सौंप दिए गए थे. अखबार द हिंदू की ये रिपोर्ट
इस दावे की पुष्टि करती है. इसके अलावा न्यूज़ मैगजीन द वीक की रिपोर्ट
और डेक्कन क्रानिकल की रिपोर्ट
में भी इस बात का दावा किया गया है. हालांकि द हिंदू की ही एक रिपोर्ट
कहती है कि निजाम ने सोना दान नहीं किया था, बल्कि उन्होंने नेशनल डिफेंस गोल्ड स्कीम में 6.5 फीसदी की दर से 425 किलो सोने का निवेश किया था.
खुद पर नहीं खर्च करते थे पैसे, मरे तो जुलूस में पहुंचे 10 लाख लोग

निज़ाम की मिट्टी में करीब 10 लाख लोग जुटे थे.
मीर उस्मान अली खान जितना अपनी अमीरी के लिए मशहूर थे, उतना ही अपनी कंजूसी के लिए भी जाने जाते थे. कहा जाता है कि वो अपने मोजे खुद सिलते थे. पैबंद लगे हुए कपड़े महीनों पहनते थे. टीन की प्लेट में खाना खाते थे और सिगरेट भी अपने मेहमानों से मांगकर पीते थे. 35 साल तक एक ही टोपी पहनी थी और कपड़े कभी प्रेस नहीं होते थे. लेकिन 24 फरवरी 1967 को जब निज़ाम की मौत हुई, तो उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए करीब 10 लाख लोग पहुंचे थे. पांच किलोमीटर तक लोगों की भीड़ जमा थी और लाखों लोगों ट्रेन, बसों और बैल गाड़ियों से हैदराबाद पहुंचे थे. हैदराबाद की सड़कें और फुटपाथ महिलाओं की टूटी हुई चूड़ियों से भर गए थे. खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंची थीं और आंध्रप्रदेश सरकार ने राजकीय शोक घोषित कर दिया था.
चल रहा है संपत्ति का विवाद, 400 लोग हैं दावेदार

मुकर्रम जाह निज़ाम के वारिस हैं.
ये कहानी उसी निज़ाम की है, जिसके बारे में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि निज़ाम भाग गया था. लेकिन वो निज़ाम आज भी वहां के लोगों के जेहन में बसा हुआ है. इस निज़ाम के 86 बच्चे और 104 पोते-पोतियां हैं, जिनके बीच संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है. इसकी वजह ये है कि उस्मान अली खान ने किसी बेटे को अपना वारिस नहीं बनाया था. उनकी पूरी दौलत का वारिस नाती मुकर्रम जाह था. मुकर्रम जाह की मां तुर्की की ही रहने वाली थीं. मुकर्रम की शादी भी पूर्व मिस तुर्की से हुई थी और अब भी मुकर्रम जाह फिलहाल तुर्की के शहर इस्तांबुल में रहते हैं और पारिवारिक संपत्ति को हासिल करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. 1990 के आखिर में कुल 400 लोगों ने निज़ाम की संपत्ति पर अपना दावा जताया था, जिसके बाद से संपत्ति पर विवाद चल ही रहा है.