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महाराष्ट्र में मराठाओं को मिला 16% आरक्षण, कुल आरक्षण हुआ 68%

30 साल पुरानी मांग माने जाने का फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी?

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महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने मराठा के लिए 16 फीसदी आरक्षण की मांग मान ली है. विधानपरिषद और विधानसभा से ये बिल पास भी हो गया है, लेकिन अब भी कई चुनौतियां हैं.
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सरकार ने मराठाओं के लिए 16 फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी है. इसके लिए देवेंद्र फडणवीस ने 29 नवंबर को पिछड़ा आयोग की सिफारिश पर मराठाओं के लिए आरक्षण का एक बिल विधानसभा में पेश किया, जो ध्वनिमत से पास हो गया. बिल को विधान परिषद से भी पास करवा लिया गया और इस तरह से महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो गया. अब इस बिल को कानूनी जामा पहनाना बाकी है. कानूनी मान्यता मिल जाने के बाद सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठाओं को 16 फीसदी का आरक्षण मिलने लगेगा.
पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश पर सरकार ने लिया फैसला
महाराष्ट्र के मुख्यमंंत्री रहे पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठाओं के लिए 16 फीसदी और मुस्लिमों के लिए पांच फीसदी आरक्षण की वयवस्था की थी.
महाराष्ट्र के मुख्यमंंत्री रहे पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठाओं के लिए 16 फीसदी और मुस्लिमों के लिए पांच फीसदी आरक्षण की वयवस्था की थी.

2014 में महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे पृथ्वीराज चव्हाण. उन्होंने 25 जून, 2014 को एक आर्डिनेंस निकालकर मराठा समुदाय को 16 फीसदी और मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण दे दिया. इस ऑर्डिनेंस के खिलाफ बंबई हाई कोर्ट में याचिकाएं लग गईं और हाई कोर्ट ने इसपर स्टे लगा दिया. सरकार से कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन कीजिए तभी जाकर आरक्षण टिकेगा. इसके बाद सरकार ने महाराष्ट्र बैकवर्ड क्लास कमीशन को ज़िम्मेदारी दी कि वो राज्य में जातियों के पिछड़ेपन पर एक रिपोर्ट तैयार करे. रिटायर्ड जस्टिस गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले इस कमीशन ने महाराष्ट्र के हर जिले में जनसुनवाई शुरू की. जब तक इस कमीशन की रिपोर्ट आती, महाराष्ट्र में चव्हाण सरकार चली गई और देवेंद्र फडणवीस की सरकार आ गई.
बांबे हाई कोर्ट ने पृथ्वीराज चव्हाण के फैसले को खारिज कर दिया.
बांबे हाई कोर्ट ने पृथ्वीराज चव्हाण के फैसले को खारिज कर दिया.

लेकिन कमीशन अपनी जांच करता रहा. कुल 25 मानकों पर मराठों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ा होने की जांच की गई और उसमें सभी मानकों पर मराठों की स्थिति दयनीय पाई गई. इस दौरान किए गए सर्वे में 43 हजार मराठा परिवारों की स्थिति जानी गई. इसके अलावा जन सुनवाइयों में मिले करीब 2 करोड़ ज्ञापनों का भी अध्ययन किया गया. और फिर इस कमीशन ने तीन सिफारिशें की, जिसमें मराठा समुदाय को सोशल एंड इकनॉमिक बैकवर्ड कैटेगरी (SEBC) के तहत अलग से आरक्षण दिए जाने की बात कही गई. फडणवीस सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और इस पर अमल के लिए एक कैबिनेट सब कमिटी बना दी. इस कैबिनेट सब कमिटी ने भी आरक्षण की सिफारिश को मंजूरी दे दी, जिसके बाद फडणवीस सरकार की कैबिनेट ने भी 16 फीसदी आरक्षण की सिफारिश कर दी और इसे कैबिनेट से पास कर दिया. इसके बाद महाराष्ट्र की विधानसभा और विधानपरिषद ने भी इसे पास कर दिया.
1980 के दशक से लंबित पड़ी थी मांग
शिवाजी महाराज भोंसले के जमाने में मराठा बेहद ताकतवर थे.
शिवाजी महाराज भोंसले के जमाने में मराठा बेहद ताकतवर थे.

मराठा महाराष्ट्र का एक ताकतवर जाति समूह है. इसमें कई जातियां आती हैं. शिवाजी महाराज भोंसले मराठा थे. उनके ज़माने से मराठा महाराष्ट्र में कभी कमज़ोर नहीं रहे. इनके पास खेती लायक ज़मीनें हैं और राजनीति से लेकर पढ़ाई-लिखाई-नौकरी में मराठा समाज का पर्याप्त दखल है. आज़ादी के बाद महाराष्ट्र में पहले मास लीडर वसंत दादा पाटील और आज के ज़माने में महाराष्ट्र में रसूख और खासकर धनबल के मामले में सबसे मज़बूत नेता शरद पवार, दोनों मराठा हैं. हालांकि सभी मराठा समृद्ध नहीं होते. ये समाज महाराष्ट्र में जनरल कैटेगरी में आता है और राज्य की आबादी का तकरीबन 30 फीसदी हैं. लेकिन ये मराठा अपने लिए आरक्षण की मांग करता रहा है. 1980 के दशक में पहली बार मराठाओं ने खुद के लिए आरक्षण की मांग की थी और तब से अब तक इस आंदोलन ने कई पड़ाव तय किए हैं. कई बार हिंसा हुई है, कई लोगों की जान गई है और उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने ये मांग मान ली है.
मराठा क्या चाहते थे?
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मराठा खुद के लिए 16 फीसदी का आरक्षण चाहते थे, जिसे महाराष्ट्र सरकार ने मान लिया है.

विलासराव देशमुख ने 2001 में कुनबी मराठाओं को ओबीसी में शामिल किया था. लेकिन महाराष्ट्र में पहले ही 350 जातियां ओबीसी में शामिल हैं. मराठा भी ओबीसी हो गए तो किसी भी ओबीसी को आरक्षण का लाभ मिलना दूभर हो जाएगा. क्योंकि कंपटीशन बहुत ऊपर पहुंच जाएगा. फिर मराठा भी ओबीसी होने में खास दिलचस्पी नहीं ले रहे थे. उन्हें कैटेगरी वाला आरक्षण नहीं चाहिए. उन्हें सिर्फ अपने लिए 16 % आरक्षण ही चाहिए था और महाराष्ट्र सरकार ने अब सोशल एंड इकनॉमिक बैकवर्ड कैटेगरी (SEBC) के तहत अलग से 16 फीसदी का आरक्षण दे दिया है.
अब आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी जा सकती है.

महाराष्ट्र में पहले से ही 52 फीसदी का आरक्षण है. इसमें ओबीसी के लिए 19 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी, अनुसूचित जनजाति के लिए 7 फीसदी, स्पेशल बैकवर्ड कास्ट के लिए 13 फीसदी का आरक्षण है. यानी कुल मिलाकर 52 फीसदी. अब अगर इसमें मराठाओं के लिए अलग से 16 फीसदी का आरक्षण जोड़ दिया जाए तो ये पहुंच जाएगा 68 फीसदी तक. इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग की सुनवाई के दौरान इंदिरा साहनी केस में कहा था कि केंद्र और राज्य में 50 फीसदी से ज्यादा का आरक्षण नहीं हो सकता है. हालांकि तमिलनाडु में 69 फीसदी का आरक्षण है और ये एक अपवाद है. इसके अलावा महाराष्ट्र में भी 52 फीसदी का आरक्षण पहले से ही है और ये भी एक अपवाद है, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है.
धनगरों ने भी अपने लिए आरक्षण की मांग की थी और देवेंद्र फडणवीस ने भी इसका समर्थन किया था.
धनगरों ने भी अपने लिए आरक्षण की मांग की थी और देवेंद्र फडणवीस ने भी इसका समर्थन किया था.

लेकिन मराठा अकेले नहीं हैं जिन्हें आरक्षण चाहिए. धनगर समुदाय (माने गड़रिया समुदाय, राज्य की 8 फीसद के करीब आबादी) की मांग है कि उसे एसटी के तहत आरक्षण मिल जाए. फिर कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने जाते-जाते मुसलमानों को भी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी, जिसपर हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया था. अब धनगर और मुस्लिमों को आरक्षण नहीं मिला, लेकिन मराठा को आरक्षण मिल गया. इसे मुद्द बनाकर धनगर या मुस्लिम समुदाय हाई कोर्ट पहुंच सकता है. वहां सरकार को जवाब देना होगा कि क्यों वो आरक्षण की 50 फीसदी सीमा से आगे निकलकर इसे 68 फीसदी तक करना चाहती है. तय कोर्ट ही करेगा कि ये आरक्षण रहेगा या खत्म होगा. ऐसे उदाहरण पहले भी देखने को मिले हैं. हरियाणा में जाटों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया था. राजस्थान में भी जाट आरक्षण को कोर्ट ने खारिज कर दिया था. और यही क्यों, महाराष्ट्र की पिछली सरकार ने भी तो मराठा आरक्षण दिया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
फिर देवेंद्र फडणवीस ने क्यों चला आरक्षण का दांव?
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मराठा आरक्षण की मांग लंबे समय से चलती आ रही है और इसके लिए कई हिंसक प्रदर्शन हो चुके हैं.

महाराष्ट्र में मराठा आशीर्वाद के बिना सत्ता में आना या बने रहना हमेशा मुश्किल ही रहेगा. इसलिए महाराष्ट्र में कोई सियासी पार्टी ये कह ही नहीं सकती कि वो मराठा आरक्षण के पक्ष में नहीं. तो देवेंद्र फडनवीस भी यही कहते रहे कि मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना चाहिए. 29 नवंबर 2018 के फैसले से पहले फडनवीस सरकार ने दिसंबर 2016 में 2,500 पन्नों का एफिडेविट बंबई हाई कोर्ट को दिया था. इसमें 80 फीसद मराठाओं को ‘सामाजिक और आर्थिक’ रूप से पिछड़ा बताया गया था. इस एफिडेविट में पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट की चार रिपोर्ट्स का ज़िक्र किया गया है, जिसके मुताबिक मराठा समाज से आने वाले लोग गन्ना कटाई, खेत मजूरी, हम्माली और दूसरों के घरों में भी काम करते हैं. जब महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार ने भर्तियां निकालीं, तो उन्होंने कहा कि वो 16 फीसदी सीटें छोड़कर भर्ती करवाएंगे, ताकि जब आरक्षण का रास्ता साफ हो तो बैकलॉग भर्ती में मराठा नौकरी पा सकें.

देवेंद्र फडणवीस ने आरक्षण की मांग पूरी करके अपना अंतिम दांव चल दिया है.

इसके बाद फडणवीस ने हर ज़िले में हॉस्टल, स्कॉलरशिप और ब्याज़ माफी योजनाएं भी लागू कीं, ताकि मराठाओं को खुश रखा जा सके. और अब फडणवीस सरकार ने 16 फीसदी आरक्षण देकर अपना आखिरी दांव भी चल दिया है. 2019 में लोकसभा का चुनाव है. 2020 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव है और दोनों ही चुनावों में मराठा वोटों की खासी अहमियत है. अब अगर कोर्ट सरकार के फैसले के खिलाफ जाती भी है, तो फडणवीस ये कहने की हालत में होंगे कि उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी.


 

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